चीन की कुंडली खोलने का आ गया वक्त

नई दिल्ली: क्या अब चीन (China) को उसी की भाषा में जवाब देने का वक्त आ गया है। चीन में शी जिनपिंग (Xi Jinping) की सरकार पड़ोसी देशों को परेशान करने के अलग-अलग तरीके अपना रही है। चीन की नजर ताइवान (Eye on Taiwan) पर है और इस पर वह कब्जे की फिराक में है। इसके साथ ही भारत को लेकर भी अलग-अलग प्रोपेगेंडा करता है।

कभी अरुणाचल प्रदेश के गांव-कस्बों का नाम बदलकर तो कभी कुछ और। चीन ने सोमवार को गृह मंत्री अमित शाह के अरुणाचल प्रदेश के दौरे (Amit Shah Arunachal Visit) की आलोचना करते हुए कहा कि इससे उस क्षेत्र पर चीनी संप्रभुता का उल्लंघन हुआ है। हालांकि इसका जवाब थोड़ी ही देर में भारत की ओर से दे दिया गया। चीन ऐसा पहली बार नहीं कर रहा है, उसका यह प्रोपेगेंडा लंबे समय से चला आ रहा है।

बॉर्डर पर तो सेना ने चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया है साथ ही अब उसके प्रोपेगेंडा पर भी वार करना जरूरी है। चीन को उसी के स्टाइल में जवाब देने की जरूरत है जिसका इशारा कुछ विदेशी एक्सपर्ट और भारत में कुछ नेता भी कर रहे हैं। यानी अब चीन के भी शहरों का नाम बदलकर पुकारा जाए। बीजेपी के एक बड़े नेता ने तो बकायदा इसके लिए मुहिम भी शुरू कर दी है।

चीन की नीयत कैसी है इसको आज दुनिया देख रही है। चीन अपने पड़ोसी देशों को परेशान करने की कोई तरकीब नहीं छोड़ता। अमेरिकी प्रोफेसर व ग्लोबल स्ट्रेटजी एक्सपर्ट मुक्तदर खान ने एक कार्यक्रम में कहा कि भारत को भी बीजिंग का नाम बदलकर बीजापुर रखना चाहिए। मुक्तदर खान की तरह कई दूसरे भारतीय रक्षा विशेषज्ञों ने भी भारत सरकार को ऐसे ही कदम उठान की सलाह दी है।

विदेशी मामलों के जानकर इस बात को कहते हैं कि चीन अरुणाचल को लेकर जानबूझकर कई बार ऐसा करता है। पिछले साल यानी 2021 में भी अरुणाचल के कई जगहों का नाम चीन ने बदला था। ऐसा करना उसकी सोची समझी रणनीति है।

बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बैजयंत जय पांडा ने चीन के इस कदम पर निशाना साधा है और कहा कि क्यों न भारत को भी उन स्थानों का पुन: नामकरण करना चाहिए जो पड़ोसी देश के अंतर्गत आते हैं लेकिन उनका भारत से ताल्लुक है। उन्होंने ट्विटर पर लोगों से इस बारे में उनकी राय भी मांगी है। उन्होंने कहा कि चीन ने हमारे अरुणाचल प्रदेश के भीतर कुछ स्थानों का कथित तौर पर नाम बदला है।

इसलिए दीर्घकालीन ऐतिहासिक भारतीय संबंधों और पहचान के आधार पर मैं पूछता हूं कि क्या उन स्थानों के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए जो आज चीन की मौजूदा सीमाओं के तहत आते हैं। उन्होंने कहा कि जब 2,000 साल पहले हान साम्राज्य ने युन्नान पर हमला किया था तो वहां शेंदु नाम की एक भारतीय बस्ती होती थी।

चलिए उस इलाके को सिंधु नगर बताना शुरू करें। 800 साल पहले एक तमिल बस्ती थी जो अब क्वांझू शहर है जिसमें 12 से अधिक मंदिर हैं। संभवत: हमें उसे न्यू कांचीपुरम कहना चाहिए। पांडा ने कहा कि आज के गान्सू प्रांत में प्रसिद्ध मोगाओ गुफाओं में कई भारतीय शैली के भित्तिचित्र और मूर्तियां हैं। कैसा रहेगा अगर हम इसे अजंता ईस्ट बुलाएं?

चीन की ओर से ऐसा पहली दफा नहीं किया गया है। नाम बदलने की साजिश उसकी वर्षों पुरानी है। साल 2017 और 2022 में भी चीन ने ऐसा ही किया था। साल 2017 में उसकी ओर से अरुणाचल के 6 जगहों के नाम बदले गए। साल 2022 में उसकी सूची और लंबी हो जाती है। चीनी नक्शों में इन जगहों को उन्हीं के नाम से उसके दर्शाने की साजिश है।

चीन को भी यह पता है कि उसके इस कदम का जमीन पर कोई असर नहीं पड़ने वाला लेकिन वह प्रोपेगेंडा करने में माहिर है। भारतीय नेताओं के अरुणाचल दौरे को लेकर वह पहले भी बयान जारी करता रहा है और भारत भी जवाब देता है कि जमीनी हकीकत इससे बदल नहीं जाएगी। चीन के बयान को भारत खारिज करता है लेकिन चीन जो नाम का खेल, खेल रहा है उसका उसे जवाब उसी तरीके से दिया जाना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *