जोशीमठ में जमीन धंसने का सच सामने आया

नई दिल्ली: उत्तराखंड के जोशीमठ में धंसी जमीन को लेकर एक बड़ा दावा सामने आया है। इस घटना से कुछ दिन पहले ठीक उसी जगह आईआईटी कानपुर की रिसर्च टीम पहुंची थी। इस टीम को भू वैज्ञानिक प्रो. राजीव सिन्हा ने लीड किया था। टीम ने इस दौरान एक अहम सर्वे किया था।

प्रो. राजीव ने साफ कहा कि फिलहाल जोशीमठ को दोबारा बसाने की बात कहना खतरे से खाली नहीं है। अभी ये बिल्कुल भी रहने के लायक नहीं है। आइए जानते हैं सर्वे के दौरान वैज्ञानिकों की टीम ने क्या-क्या देखा? आखिर जोशीमठ में जमीनें क्यों धंसी? प्रो. राजीव क्यों बोल रहे हैं कि अभी जोशीमठ लोगों के रहने लायक जगह नहीं है?

जोशीमठ में भू-धंसाव के मामले दिसंबर से ही आने शुरू हो गए थे। पिछले महीने क्षेत्र में कई जगहों पर भू-धंसाव की घटनाएं आई थीं। शहर के मनोहर बाग वार्ड, गांधी वार्ड और सिंधार वार्ड में लोगों ने घरों में दरार आने की बातें कही थीं। नगर क्षेत्र में भू-धंसाव से मकानों के साथ कृषि भूमि के भी प्रभावित होने की घटनाएं आईं। यहां खेतों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ी और कई जगहों पर तो खेतों की दरारें एक फीट तक चौड़ी हो गईं।

इन घटनाओं के बाद प्रशासन भी हरकत में आया और चमोली जिला प्रशासन की ओर से संयुक्त टीम गठित की गई। टीम ने दो दिनों तक नगर में भू-धंसाव से प्रभावित मकानों के सर्वे किया। तहसील प्रशासन, नगर पालिका, आपदा प्रबंधन और एसडीआरएफ की संयुक्त टीम ने घर-घर जाकर बारीकी से निरीक्षण किया। जोशीमठ नगर में करीब दो हजार मकान हैं। रविवार तक भू-धंसाव से 600 से ज्यादा मकानों में दरारें आ चुकी थीं।

भू-धंसाव का सिलसिला सोमवार रात सामने आया जब कई मकानों में अचानक बड़ी दरारें आ गईं। इसके बाद तो पूरे नगर में खौफ फैल गया। मारवाड़ी वार्ड में स्थित जेपी कंपनी की आवासी कॉलोनी के कई मकानों में दरारें आईं। कॉलोनी के पीछे पहाड़ी से रात को ही अचानक मटमैले पानी का रिसाव भी शुरू हो गया।

दरार आने से कॉलोनी का एक पुश्ता भी ढह गया। साथ ही बदरीनाथ हाईवे पर भी मोटी दरारें आईं। वहीं, तहसील के आवासीय भवनों में भी हल्की दरारें दिखीं। भू-धंसाव से ज्योतेश्वर मंदिर और मंदिर परिसर में दरारें आ गई।

सिंहधार वार्ड में बहुमंजिला होटल माउंट व्यू और मलारी इन जमीन धंसने से तिरछे हो गए। स्थानीय लोगों के मुताबिक सोमवार रात करीब 10 बजे होटल की दीवारों से चटकने की आवाज आनी शुरू हो गई, जिससे इन होटलों के पीछे रहने वाले पांच परिवारों के लोग दहशत में आ गए।

जोशीमठ में भू-धंसाव की स्थिति मंगलवार को और खराब हुई। स्थानीय लोगों ने मंगलवार को जोशीमठ रॉक से पानी रिसता देखा। जमीन से निकल रहा पानी खेतों की दरारों में घुस रहा है इससे खतरा और भी बढ़ गया। मंगलवार को नगर के सभी नौ वार्डों में किसी न किसी मकान में दरारें आई। यहां से प्रशासन ने पांच प्रभावित परिवारों को मंगलवार को शिफ्ट किया, जबकि कई प्रभावित घर छोड़कर चले गए।

जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव ने बुधवार को विकराल रूप ले लिया। क्षेत्र के भी वार्डों के घरों दरारें आने से लोग दहशत में आ गए। बुधवार को जेपी कॉलोनी के 50 प्रभावितों को जेपी कंपनी ने और अलग-अलग वार्डों से 16 प्रभावित परिवारों को प्रशासन ने सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया।

वहीं, मारवाड़ी में भूमि से लगातार पानी का रिसाव होने से निचले क्षेत्र के भवन भी खतरे की चपेट में आ गए। नगर के सिंहधार वार्ड में स्थित बीएसएनएल के कार्यालय और आवासीय भवनों में भी दरारें आईं। जोशीमठ स्थित औली रोपवे टावर के इर्दगिर्द की जमीन में भी दरारें आ गईं जिसके बाद रोपवे का संचालन अग्रिम आदेशों तक बंद कर दिया गया।

इसे समझने के लिए हमने आईआईटी कानपुर के अर्थ साइंस विभाग के सीनियर प्रोफेसर डॉ. राजीव सिन्हा से बात की। प्रो. सिन्हा जोशीमठ की घटना से कुछ दिन पहले अपनी टीम के साथ वहीं थे। प्रो. सिन्हा और उनकी टीम ने जोशीमठ के इलाके का ड्रोन सर्वे किया था। अभी इसकी रिपोर्ट तैयार हो रही है। हालांकि, प्रो. सिन्हा ने कई अहम बातों को नोटिस किया।

जोशीमठ में जमीनें धंसने का बड़ा कारण बताया। प्रो. सिन्हा ने कहा, ‘जोशीमठ और आसपास का पूरा इलाका खतरे से भरा है। ये लैंड स्लाइडिंग जोन में है। यहां दशकों तक लैंड स्लाइडिंग होती रही है।

हालांकि, पिछले कुछ सालों में ये स्थिर रहा। बार-बार लैंड स्लाइड के कारण यहां पत्थर कमजोर हो गए हैं। इसके बावजूद लोगों ने यहां मलबे पर घर, होटल बना लिए। पिछले कुछ सालों में काफी विकास कार्य यहां हुए। अब एक बार फिर से पहाड़ अपलिफ्ट हो रहे हैं। मतलब उठ रहे हैं। इसके चलते अंदर से मलबा खिसक रहा है और जमीन धंसने लगी है।’

प्रो. सिन्हा कहते हैं, ‘सर्वे के दौरान ये भी बात सामने आई कि घाटी में नदियों के ठीक किनारे आबादी बस गई है। ये बेहद खतरनाक है। अनप्लांड डेवलपमेंट के चलते अब लोगों की जान खतरे में पड़ गई है। अगर समय रहते इसे सुधारा नहीं गया, तो आने वाले समय में और भयावह स्थिति देखने को मिल सकती है।’

प्रो. सिन्हा के अनुसार, जब बिना भूकंप और बारिश के जमीन धंसने लगी है तो अंदाजा लगाइए अगर बारिश हो जाएगी या फिर भूकंप आ जाएगा तो स्थिति कितनी भयावह हो जाएगी।

अब ये इलाका खतरे से खाली नहीं है। जब बिना बारिश और भूकंप के जोशीमठ, कर्णप्रयाग जैसे इलाकों में इस तरह की तबाही आ सकती है तो सोचिए अगर हल्की से बारिश हो जाए या भूकंप आ जाए तो क्या होगा? इसलिए सरकार को चाहिए कि फिलहाल के लिए पूरे इलाके को तुरंत खाली करवा दिया जाए।

उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश व अन्य सभी हिमालयन रेंज की तुरंत स्टडी शुरू होनी चाहिए। घाटियों को बफर जोन में बांटना चाहिए। इसकी स्टडी करके ये पता करना चाहिए नदी के किनारे कितनी दूरी तक का इलाका सेंसेटिव है। जहां किसी भी तरह के निर्माण कार्य पर प्रतिबंध लगाना होगा। अगर ये अभी नहीं होगा तो जोशीमठ और कर्णप्रयाग की तरह कई और इलाकों में इस तरह की घटनाएं हो सकती हैं।

घाटी पर स्टडी करवाने के बाद उसकी रिपोर्ट के अनुसार ही कहीं भी पहाड़ों पर गांव और कस्बे बसाए जाएं। जरूरी नहीं कि अगर कहीं लंबे समय तक भूकंप या लैंड स्लाइड नहीं आता है तो वह सुरक्षित जगह हो जाती है।

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