जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने का रास्ता साफ

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को कहा कि जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलाने के लिए सभी राजनीतिक दल एकमत हैं। इससे संसद के आगामी मानसून सत्र में महाभियोग प्रस्ताव लाने का रास्ता साफ हो गया है। इस वर्ष मार्च में जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित आवास पर आग लगने की घटना हुई थी।

इस दौरान अधजले नोटों से भरी बोरियां बरामद हुई थीं। उस समय जस्टिस वर्मा दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश थे। उनको बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट वापस भेज दिया गया, लेकिन उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजीजू ने कहा कि वह प्रस्ताव पर विभिन्न दलों के नेताओं के साथ समन्वय कर रहे हैं, ताकि संसद का सर्वसम्मत रुख सामने आ सके। महाभियोग प्रस्ताव पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि मैंने विभिन्न राजनीतिक दलों के सभी वरिष्ठ नेताओं से बात की है। मैं उन पार्टियों से भी संपर्क करूंगा, जिनके सिर्फ एक सांसद हैं। मैं किसी भी सदस्य को छोड़ना नहीं चाहता। न्यायपालिका में भ्रष्टाचार एक अत्यंत संवेदनशील और गंभीर मामला है, क्योंकि न्यायपालिका ही वह जगह है जहां लोगों को न्याय मिलता है। अगर न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है, तो गंभीर ¨चता का विषय है।

वहीं, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाना पूरी तरह से सांसदों का मामला है और सरकार इसमें कहीं भी शामिल नहीं है। जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा गठित आंतरिक समिति ने अपनी रिपोर्ट पहले ही सौंप दी है। अगर जस्टिस वर्मा रिपोर्ट से सहमत नहीं हैं और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं, तो यह उनका विशेषाधिकार है। हालांकि, संसद को सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के न्यायाधीश को हटाने का अधिकार है।

जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ लोकसभा में लाए जाने वाले प्रस्ताव का कांग्रेस समर्थन करेगी। कांग्रेस के सांसद इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर भी करेंगे। जस्टिस वर्मा के खिलाफ प्रस्ताव लाने के लिए हस्ताक्षर जुटाने के सरकार के कदम के बारे में पूछे जाने पर कांग्रेस के महासचिव जयराम रामेश ने कहा, सरकार महाभियोग प्रस्ताव नहीं ला सकती। संविधान के अनुच्छेद 124 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि प्रस्ताव सांसद ही लाते हैं।

उन्होंने कहा, हम समर्थन कर रहे हैं। हमारे सांसद भी लोकसभा में प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर रहे हैं। यह महाभियोग के लिए नहीं, बल्कि न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 के तहत अध्यक्ष द्वारा तीन सदस्यीय समिति गठित करने के लिए है। समिति मामले की जांच कर रिपोर्ट सौंपेगी। उस रिपोर्ट के आधार पर, संसद के शीतकालीन सत्र में, पहले लोकसभा में और फिर राज्यसभा में न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।

जयराम ने कहा, तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश ने आंतरिक समिति की रिपोर्ट के आधार पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को रिपोर्ट सौंपकर सांसदों को मजबूर किया है। इस मामले में एफआईआर दर्ज होनी चाहिए थी। हम इस मामले को लेकर चिंतित हैं। इसकी उचित जांच होनी चाहिए। साक्षात्कार में जयराम ने कहा कि विपक्ष जस्टिस न्यायमूर्ति शेखर यादव के मुद्दे को उठाएगा। उनके खिलाफ 55 विपक्षी सांसदों ने पिछले साल दिसंबर में राज्यसभा में महाभियोग नोटिस पेश किया था। जस्टिस यादव पर पिछले साल एक सभा में कथित तौर पर नफरत फैलाने वाला भाषण देने का आरोप है।

कपिल सिब्बल को एक औसत वकील बताते हुए संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजीजू ने शुक्रवार को कहा कि संसद को एक सांसद के ‘निजी एजेंडे’ से नहीं चलाया जा सकता। रिजीजू का यह बयान तब सामने आया, जब सिब्बल ने कहा कि विपक्ष को जस्टिस यशवंत वर्मा पर महाभियोग चलाने के किसी भी कदम का तब तक समर्थन नहीं करना चाहिए, जब तक कि जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ उनकी सांप्रदायिक टिप्पणी के लिए महाभियोग के तहत जांच शुरू नहीं हो जाती।

इस पर रिजीजू ने कहा, मुझे कपिल सिब्बल द्वारा किसी को बचाने और किसी के खिलाफ कार्रवाई करने की कोशिशों के बारे में जानकारी मिली है। मैंने महसूस किया है कि वह एक वरिष्ठ व्यक्ति हैं, लेकिन केवल अपने निजी एजेंडे से प्रेरित हैं।

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