100 सालों की सबसे भीषणतम गर्मी झेल रही दुनिया

उदय दिनमान डेस्कः इस साल गर्मी का पूरी दुनिया में रिकॉर्ड टूट रहा हैं. हर महीने किसी न किस देश में रिकॉर्ड गर्मी की खबरें आ रही हैं. हाल में नासा ने चेतावनी जारी की है कि इस साल का जुलाई में संभवतः 100 सालों की सबसे भीषणतम गर्मी पड़ सकती है. वहीं, यूरोपियन यूनियन और मेन यूनिवर्सिटी ने दुनिया भर में बढ़ते गर्मी के ग्राउंड और सैटेलाइट डेटा को स्टडी किया है.

नासा के क्लाइमेटोलॉजिस्ट गेविन श्मिट ने बताया कि जलवायु परिवर्तन की वजह से अमेरिका, यूरोप और चीन में हीटवेव की वजह से हालात बदतर होते जा रहे हैं. पूरी दुनिया में इतनी भयंकर गर्मी के क्या कारण हैं और इसके क्या दुष्परिणाम होंगे आइए जानते हैं,

पूरी दुनिया में जुलाई में भयंकर गर्मी के लिए मौसमी कारक अल नीनो काफी हद तक जिम्मेदार है. अल नीनो प्रशांत महासागर में चिली के तट पर उठने वाली गर्म हवा है जिसके वजह से समुद्री सतह काफी गर्म हो जाता है. मौसम विज्ञानियों का मानना है कि ये कारक भारत में मानसून प्रभावित करता है, साथ ही दुनिया भर के देशों के तापमान पर काफी बुरा असर डालता है. WMO का मानना है कि अल नीनो की वजह से ईस्ट प्रशांत महासागर की सतह का औसत तापमान फरवरी में 0.44 डिग्री सेल्सियस से बढ़कर जून के मध्य तक 0.9 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है.

अलनीनो जिसे कि एक प्राकृतिक घटना (Phenomena) माना जाता है इसके काफी दुष्प्रभाव होते हैं. ये मुख्यतः सूखा, महंगाई, कृषि उत्पादों और समुद्री इकोलॉजी को तबाह करने के लिए जिम्मेदार है. अलनीनो की वजह से भारत का मानसून काफी प्रभावित होता है जिसके वजह से भारत की बारिश आधारित कृषि काफी प्रभवित होती है. वहीं, WEF के मुताबिक, दुनिया की महंगाई दर 8.8% से घटकर 6.5 तक पहुंच गई थी, लेकिन एक बार फिर सूखे की वजह से इसके बढ़ने की संभावना हो गई है. वहीं, अलनीनो की वजह से 135 से अधिक मछलियों और समुद्री जीवों के स्पेसीज का अस्तित्व ख़त्म हो जाता है.

नासा के मुख्य क्लाइमेटोलॉजिस्ट श्मिट का मानना है कि, अभी अलनीनो का जलवायु परिवर्तन पर काफी कम असर हो रहा है. लेकिन आने वाले समय में इसका असर बढ़ सकता है. हर साल दुनिया भर से 4000 करोड़ टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन (कार्बन एमिशन) होने की वजह से समुद्र की ऊपरी सतह गर्म होती जा रही है. जलवायु विज्ञानियों का मानना है कि इस साल के अंत तक इसका असर बढ़ने लगेगा. अगर ऐसा हुआ, तो 2024 का साल पूरी दुनिया के लिए कष्टदायी हो सकता है.

मालूम हो कि इस साल (2023) जुलाई दुनिया का सबसे गर्म दिन बन गया था. अमेरिका के नेशनल सेंटर्स फॉर एनवायर्नमेंटल प्रेडिक्शन ने बताया कि इस दिन औसत ग्लोबल तापमान 17 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया था. साल 2016 में अब तक का सबसे गर्म दिन का रिकॉर्ड था वह 16.92 डिग्री सेल्सियस था. माना जा रहा है कि हालत ऐसा ही रहा तो जल्द ही रिकॉर्ड टूट जाएंगे.

अमेरिका खुद हीटवेव के चपेट में है. अभी तक 11 करोड़ 30 लाख लोग इससे प्रभावित हैं. फ्लोरिडा, कैलिफोर्निया और वॉशिंगटन में इसे लेकर एडवाइजरी जारी की जा चुकी हैं. 15 जुलाई को एरिज़ोना (अमेरिकी राज्य) में तापमान 48 डिग्री पहुंच गया था,

डेथ वैली (दुनिया के सबसे गर्म जगह) में तापमान 54 डिग्री सेल्सियस पहुंच चुका है. वहीं, इटली, स्पेन, फ्रांस, जर्मनी और पोलैंड में गर्मी को लेकर अलर्ट जारी करते हुए लोगों को दिन के 11 बजे से शाम के 6 बजे तक घरों में रहने की सलाह दी गयी है. कई देशों में जंगलों में आग लगने का खतरा बढ़ गया है. चीन में भी हीटवेव से जनजीवन प्रभावित है.

मालूम हो कि साल 2050 दुनिया के तापमान में 1.5 से 2 डिग्री की बढ़ोतरी होती है तो धरती पर क्या प्रभाव पड़ेगा. मुंबई, चेन्नई, विशाखापट्टनम जैसे 12 तटीय शहर 3 फ़ीट तक जलमग्न हो जाएंगे. मालदीव जैसे देश समुद्र में समां जाएंगे. आर्कटिक महासागर की पूरी बर्फ 10 साल के भीतर पिघल जाएगी. क्वाला, सफ़ेद भालू समेत 4%व् जानवर विलुप्त हो सकते हैं.

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