उदय दिनमान डेस्कः गूगल पर हम शब्द या फिकरे डालकर जानकारी खोजते हैं और सर्च इंजन वांछित जानकारी के सही संदर्भ और विषय के बजाय जहां-जहां शब्द और फिकरा मिले उसे पेश कर देता है, लेकिन यदि कल्पना करें कि आप किसी सर्च इंजन से सधे हुए सवाल करें और वह उसके एकदम सटीक उत्तर खोज दे तो कितना अच्छा होगा? माइक्रोसाफ्ट को ‘ओपन-एआइ’ से इसी तरह के सर्च इंजन की दरकार है, जिसके सहारे वह गूगल सर्च इंजन के एकछत्र राज को चुनौती देना चाहता है।
यह सब इसलिए संभव हो रहा है, क्योंकि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस प्रोग्राम अब अपनी डीप लर्निंग की पीढ़ी से फाउंडेशन माडल के पड़ाव पर पहुंच गए हैं। पिछले दस वर्षों से हम गूगल और एपल नक्शों के सहारे घूमने के आदी हो गए हैं।
अमेजन की एलेक्सा और एपल की सीरी से भी छोटे-मोटे काम करा लेते हैं, लेकिन फाउंडेशन माडल के बोट एकदम अगली पीढ़ी के होंगे। पायलट से कहीं भूल हो रही होगी तो वे चेतावनी देंगे। आपकी कार चलाएंगे। ड्रोन उड़ाएंगे।
डाक्टर को बीमारी का सही निदान बताएंगे। संगीतकार के गुनगुनाते ही धुन और संगीत के नोट बनाकर दे देंगे। यह सब इसलिए संभव लगता है, क्योंकि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के कोड अब मशीनों को हमारे मस्तिष्क की तंत्रिकाओं के करोड़ों नेटवर्कों की तर्ज पर प्रशिक्षित कर रहे हैं।
मशीनें अपनी भूलों से खुद सीख रही हैं। वैसे अभी भी हवाई और रेल यातायात नियंत्रण, विमान नियंत्रण और चालन, मौसम पूर्वानुमान, मिसाइल, राकेट और उपग्रह प्रक्षेपण जैसे काम मशीनों की आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ही करती है। नई पीढ़ी की एआइ मशीनों में भूल सुधार की क्षमता भी होगी।
टोरी बाश का मानना है कि लगभग हर काम में प्रयोग आने वाली मशीनों के कोड लिखने वाले लोग हम और आप ही हैं। इसलिए ये उनकी धारणाओं से अछूते नहीं रह सकते। नीति-निर्माताओं के लिए चुनौती यह है कि ये मशीनें आंकड़ों को खंगाल और समझ तो सकती हैं, परंतु इनकी नैतिक और सामाजिक जरूरत का सही फैसला नहीं कर सकतीं। आम लोगों के लिए चुनौती यह है कि एक बार जब सब मशीनों में हर जगह एआइ की कोई न कोई मात्रा लग जाएगी तो उन्हें चलाने और उनकी मरम्मत करने वालों को भी उनकी कुछ जानकारी चाहिए होगी।
अन्यथा ये कैसे चलेंगी और ठीक होंगी? संभवतः इसी सोच-विचार के बाद ब्रितानी प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने हाल में कहा कि स्कूलों में बारहवीं कक्षा तक गणित को अनिवार्य किया जाएगा। उनका कहना था कि तेजी हो रहे तकनीकी विकास और बदलाव को देखते हुए गणित की बुनियाद मजबूत किए बिना युवाओं को रोजगार मिलने में दिक्कतें होंगी।
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और मशीन लर्निंग में हो रहे विकास और रोजगार के प्रत्येक क्षेत्र में गणित की महत्ता को सुनक से बेहतर और कौन समझ सकता है? ऐसे में, भारत के नेताओं और नीति निर्माताओं को भी इस विषय पर जागने की जरूरत है। बुद्धिमान मशीनों की क्रांति औद्योगिक क्रांति के बाद होने वाला सबसे बड़ा परिवर्तन है।
लोगों के रोजगार पर इनके संभावित असर को लेकर अभी गहरे मतभेद हैं, लेकिन इस परिदृश्य में हमारे समक्ष दो ही विकल्प हैं- या तो एआइ और उसकी कोडिंग के बारे में जानकारी हासिल करें और मशीनों को अपनी जरूरतों और चुनौतियों के हिसाब से ढालें। या सब कुछ कोड लिखने वालों और मशीनें बनाने वालों पर छोड़ दें।