यह कहानी नहीं हकीकत है !

उदय दिनमान डेस्कः तेईस ( 23 ) साल पहले सन दो हजार (2000) जून माह की बात होगी, नंदा देवी राज जात की तैयारी को लेकर, पूरे राज जात मार्ग की ग्वालदम से लेकर घाट ( नंदा नगर ) तक जिला पंचायत चमोली द्वारा पूरे मार्ग की दो तीन दिन के अंतर्गत ही, फोटोग्राफी करने का आदेश मुझे मिला जो की इतनी जल्दी असम्भव था फिर भी, पहले कभी उस यात्रा मार्ग नहीं गया था पर हां कर दी, पूरे मार्ग में टूटे हुवे रास्ते , पुस्ते और पुलों की फोटोग्रफी करनी थी वो भी, पूरे ही पैदल इस लालच में कि कहीं राज जात यात्रा का फ़ोटोग्राफी काम मिल जाएगा,इस लिए हां बोल दिया था, एक दिन में पैदल ही ग्वालदम से नंद केशरी होते हुए 7.30 बजे शाम को वांण गांव में पहुंच गया था ।

दूसरे दिन सुबह 9 बजे वांण गांव चल कर कनोल गांव के ऊपर एक तालाब के पास थका हुवा पहुंचता हूं , रात को बारिश होने की वजह से सुबह बादलों से तालाब के आस पास कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, जहां पर एक पहाड़ी घट ( घराट ) की घुटुर घुटुर की आवाज सुनाई जरूर दे रही थी आवाज सुन कर घट के पास जाता हूं तो , देखता हूं अंदर एक छोटी बच्ची घुंगराले बालों वाली और नाक भी भरी हुई सुंदर सी अकेले ही वहां बैठ कर गेहूं पीस रही थी, चेहरे और बालों पर आटा ही आटा लगे होने के कारण मेरे लिए फोटो ग्राफी का विषय भी बन रही थी तो अपना उस समय मेरा Sony का कैमरा PD 150 जिससे में पूरे रास्ते वीडियो //फ़ोटोग्राफी कर रहा था इस वीडियो कैमरे के मेमोरी कार्ड से ही फोटोग्राफी कर रहा था,

इस बच्ची को देख कर अपना रोल कैमरा निकॉन FM 2 नहीं होने का मलाल हो रहा था कि कितना अच्छा पोट्रेट मिल गया था और में मेमोरी कार्ड से फोटो खींच रहा हूं , जब में इसकी फोटो खींचता तब तक उसके आस पास से बादल हट रहें थे और सामने नजर पड़ी तो देखा एक ओर छोटी बच्ची अपनी पारम्परिक वेशभूषा में भैंस चरा रही थी , मुझे उसका इस वेशभूषा में फोटो खींचना बहुत आकर्षित कर रहा था ,

और साथ ही अपने आगे के काम के लिए मेमोरी कार्ड का फुल होने का डर सता रहा था,मेने इससे पहले पूरी अभी तक की यात्रा में इस तरह फोटो खींचना बिल्कुल बंद किया हुवा था कि समय बचा कर जितनी जल्दी ये काम जो मिला है उसे पूरा किया जाए पर इन बच्चों को देख कर मेमोरी कार्ड से कुछ फोटुएं भी डिलीट की, कि कुछ फोटूओं की लिए तो जगह मिल जाएगी ओर ये कुछ फोटुएं क्लिक कर दी …..

मेरे गेस्ट हाउस में कनोल गांव के दो भाई हैं नरी और हुकम, दानों को में एक दिन इन बच्चों की फोटो दिखा कर पूछता हूं, तुम्हारे गांव के ऊपर एक तालाब के पास कोई घट ( घराट) है जहां पर मुझे ये बच्चियां मिली थी तुम दोनों भाई इन दानों को बच्चियों को पहचानते हो, दोनों का जवाब था नहीं, मेने कहा अपने फोन में इन फोटुओं को रख और जाकर पूछना अपनी मां जी पिताजी से कि उस समय आज से तेईस (23) पहले वहां कौन रहता था , कुछ समय बाद गांव से आने के बाद नरी और हुकम दोनों भाई बोलते हैं ये तो जो भैंस के साथ है हमारी मौसी है इनका ससुराल भी गांव में ही दूसरी वाली जो घट पर हे उनका ज्यादा पता नहीं चल रहा है इनका ससुराल कहां है,

अच्छा चलो एक का पता चल गया, में अब तुम्हारे गांव में इनको देखने और इनको आज से तेईस साल पहले की फोटो दिखाने आऊंगा, और मौका था हुकम और नरी के भाई हीरा सिंह की पत्नी दोनों भाइयों की भाभी के भाई की शादी में जाने का जो की मेरे घर के मकान में किराए पर हैं , मुझे भी शादी का निमंत्रण मिला और में तेरह अप्रैल (13 अप्रैल)2023 को कनोल गांव जाकर जब ये तस्वीर में दिखता हूं तो अब वो बच्ची नहीं देखती

, अब रूपा नाम की महिला जोर जोर से हंस कर कहती है … ये..ये तो में हूं… में फिर उनसे अभी की कुछ फोटो खींचने के लिए बोलता हूं वो शर्मा कर मना करती हैं पर उनके भतीजे से बोल कर , उनको इस लिए भी राजी करता हूं , कि आज भी न बदला परिवेश न बदला परिधान ओर न बदले संस्कार, देख कर कुछ तो सीखने को मिलेगा .. फिर जो फोटो तेईस (23,) साल पहले क्लिक किए हैं , आज रूपा देवी के रूप में आप के सामने हैं …!

साभार फेसबुक-

Harish Bhatt

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