कांवड़ यात्रा की परंपरा

उदय दिनमान डेस्कः सावन का महीना प्रारंभ होते ही कांवड़ यात्रा भी शुरू हो चुकी है। पवित्र सावन मास में शिव भक्त गंगातट से कलश में गंगाजल भरते हैं और उसको कांवड़ द्वारा कंधों पर लटका कर अपने अपने शिवालय में लाते हैं और शिवलिंग पर गंगाजल अर्पित करते हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा करने से भगवान शिव सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं और जीवन के सभी संकटों को दूर करते हैं। पुराणों में बताया गया है कि कांवड़ यात्रा भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे सहज रास्ता है।

कांवड़ यात्रा को लेकर पहली मान्यता
कांवड़ यात्रा को लेकर एक मान्यता यह है कि भगवान परशुराम ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। परशुराम गढ़मुक्तेश्वर धाम से गंगाजल लेकर आए थे और यूपी के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’ का गंगाजल से अभिषेक किया था। उस समय सावन मास ही चल रहा था, इसी के बाद से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई। आज भी इस परंपरा का पालन किया जा रहा है। लाखों भक्त गढ़मुक्तेश्वर धाम से गंगाजल लेकर जाते हैं और पुरा महादेव पर जल अर्पित करते हैं।

कांवड़ यात्रा को लेकर दूसरी मान्यता
कांवड़ यात्रा को लेकर दूसरी मान्यता का जिक्र आनंद रामायण में मिलता है कि भगवान राम पहले कांवड़िया थे। भगवान राम ने बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया था। उस समय सावन मास चल रहा था।

कांवड़ यात्रा को लेकर तीसरी मान्यता
एक अन्य मान्यता के अनुसार प्राचीन ग्रंथों में रावण को पहला कांवड़िया बताया है। समुद्र मंथन के दौरान जब भगवान शिव ने हलाहल विष का पान किया था, तब भगवान शिव का कंठ नीला हो गया था और वे तभी से नीलकंठ कहलाए थे। लेकिन हलाहल विष के पान करने के बाद नकारात्मक शक्तियों ने भगवान नीलकंठ को घेर लिया था। तब रावण ने महादेव को नकारात्मक शक्तियों से मुक्त के लिए रावन ने ध्यान किया और गंगाजल भरकर ‘पुरा महादेव’ का अभिषेक किया, जिससे महादेव नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्त हो गए थे। तभी से कांवड़ यात्रा की परंपरा भी प्रारंभ हो गई।

कांवड़ यात्रा को लेकर चौथी मान्यता
दूसरे कुछ विद्वानो के अनुसार सबसे पहले त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ यात्रा शुरू की थी। श्रवण कुमार ने अंधे माता पिता को तीर्थ यात्रा पर ले जाने के लिए कांवड़ बैठया था। श्रवण कुमार के माता पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की थी, माता पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण कुमार कांवड़ में ही हरिद्वार ले गए और उनको गंगा स्नान करवाया। वापसी में वे गंगाजल भी साथ लेकर आए थे। बताया जाता है कि तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी।

कांवड़ यात्रा को लेकर पांचवी मान्यता
कांवड़ यात्रा को लेकर यह भी एक मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय जब महादेव ने हलाहल विष का पान कर लिया था, तब विष के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए भगवान शिव पर पवित्र नदियों का जल चढ़ाया गया था। ताकि विष के प्रभाव को जल्दी से जल्दी कम किया जा सके। सभी देवता मिलकर गंगा से गंगाजल लेकर आए और भगवान शिव पर अर्पित कर दिया। उस समय सावन मास चल रहा था। मान्यता है कि तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हो गई थी।

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