600 साल बाद दुर्लभ संयोग में उत्तरायण पर्व

उदय दिनमान डेस्कः आज मकर संक्रांति मनाई जा रही है। लेकिन कुछ पंचांग में ये पर्व 14 तारीख को बताया है। ग्रंथों में सूर्य के राशि बदलने के समय से ही संक्रांति मनाने का फैसला किया जाता है। 14 जनवरी की रात करीब 9 बजे सूर्य मकर राशि में आ गया था। ज्योतिषियों का कहना है कि अस्त होने के बाद सूर्य ने राशि बदली इसलिए मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाना चाहिए।

रविवार को संक्रांति पर्व शश, पर्वत, शंख, हर्ष और सत्कीर्ति नाम के राजयोग में मनेगा। इस दिन रविवार होगा और सूर्य अपने ही नक्षत्र यानी उत्तराषाढ़ में रहेगा। इस शुभ संयोग में किए गए स्नान-दान और पूजा का फल और बढ़ जाएगा। इनके लिए पुण्यकाल सुबह करीब 7 बजे से शाम 6 बजे तक रहेगा। मान्यता है कि इस दौरान किए गए शुभ कामों से अक्षय पुण्य मिलता है। ज्योतिषियों के मुताबिक मकर संक्रांति पर बन रहा ऐसा दुर्लभ संयोग पिछले 600 सालों में नहीं बना।

इस मौके पर उत्तर और मध्य भारत में तिल-गुड़ की मिठाइयां बांटते हैं। गुजरात में पतंगबाजी और महाराष्ट्र में खेलकूद होते हैं। पंजाब और जम्मू-कश्मीर में लोहड़ी मनाते हैं। सिंधी समाज के लोग लाल लोही के तौर पर ये त्योहार मनाते हैं। असम में बिहू और दक्षिण भारत में इसे पोंगल के रूप में मनाते हैं। तमिल पंचाग का नया वर्ष पोंगल से शुरू होता है। इसी दिन सबरीमाला मंदिर में मकरविलक्कु पर्व मनाते हैं। इस दिन भगवान अय्यप्पा की महापूजा होती है।

मकर संक्रांति की परंपराओं के बारे में पुरी के ज्योतिषाचार्य और धर्म ग्रंथों के जानकार डॉ. गणेश मिश्र का कहना है कि इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। इसलिए इसे उत्तरायण पर्व कहते हैं। सूर्य के राशि बदलने से मौसम भी बदलता है। इस दिन से शिशिर ऋतु शुरू हो जाती है। ठंड के मौसम को देखते हुए मकर संक्रांति पर तिल-गुड़ खाने और दान करने की परंपरा शुरू हुई। इस दिन गर्म कपड़ों का दान भी किया जाता है।

कुछ साल पहले मकर संक्रांति 13 जनवरी को होती थी। लेकिन फिर 14 और अब 15 को आने लगी। इस बारे में हमने पुरी, बनारस, तिरूपति और उज्जैन के ज्योतिषियों से बात की तो उन्होंने ज्योतिष ग्रंथ सूर्य सिद्धांत और खगोल विज्ञान केंद्र से जारी हुए राष्ट्रीय पंचांग का हवाला देते हुए बताया कि सूर्य हर साल तकरीबन 20 मिनट देरी से मकर राशि में आता है। इस तरह हर तीन साल में एक घंटे और 72 साल में एक दिन की देरी से मकर संक्रांति होती है। इसी गणित के हिसाब से 2077 के बाद से 15 जनवरी को ही मकर संक्रांति हुआ करेगी।

मकर संक्रांति से शुरू होने वाले उत्तरायण को समझाते हुए काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो.रामनारायण द्विवेदी बताते हैं कि ये 6 महीने का समय होता है, जो कि करीबन 15 जुलाई तक रहता है। इस दौरान पृथ्वी का उत्तरी हिस्सा सूर्य की तरफ ज्यादा देर तक रहने लगता है। जिससे धीरे-धीरे दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं।

मकर संक्रांति के बाद ही देवताओं का सवेरा होता है। इसलिए ही उत्तरायण के बाद शादी, सगाई, गृह प्रवेश और अन्य मांगलिक काम शुरू हो जाते हैं। श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि उत्तरायण के वक्त जिसके प्राण निकलते हैं उसे मोक्ष मिलता है।

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