मौसम ने बदली करवट, पहाड़ों पर बारिश

देहरादून : दून समेत पूरे उत्तराखंड में मौसम ने करवट बदल ली है। प्रदेश के ज्यादातर क्षेत्रों में बादल मंडराने के साथ ही कई स्थानों पर वर्षा व ओलावृष्टि हुई। जिससे तापमान में भी मामूली गिरावट आई है। वहीं हवाएं चलने से सुबह-शाम ठिठुरन महसूस होने लगी है। मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह के अनुसार, अगले कुछ दिन मौसम का मिजाज बदला रह सकता है।

उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर और पिथौरागढ़ में हल्की वर्षा-बर्फबारी के आसार हैं। जबकि, देहरादून और टिहरी में कहीं-कहीं बौछारें व ओलावृष्टि हो सकती है। कहीं-कहीं गरज के साथ बिजली चमक सकती है। इससे तापमान में मामूली की गिरावट आ सकती है। प्रदेश में लंबे समय से शुष्क मौसम बना हुआ था।

उत्तराखंड में धरती इस बार पूरे शीतकाल (नवंबर से फरवरी) में वर्षा के लिए तरसती रही। मेघों की सबसे ज्यादा बेरुखी फरवरी में देखने को मिली, मौसम विज्ञान केंद्र के अनुसार इस माह सामान्य से 89 प्रतिशत कम वर्षा हुई। यह फरवरी में आलटाइम सबसे कम वर्षा है। सामान्यत: फरवरी में प्रदेश में 59.5 मिमी वर्षा होती है, लेकिन इस बार महज 6.7 मिमी वर्षा ही हुई। हरिद्वार और पौड़ी जिले में तो वर्षा की एक बूंद नहीं गिरी।

इससे पहले वर्ष 2018 में फरवरी में सबसे कम आठ मिमी वर्षा हुई थी। जनवरी में भी वर्षा में 40 प्रतिशत की कमी रही। जनवरी और फरवरी को मिलाकर दोनों महीनों में सामान्य से 63 प्रतिशत कम वर्षा हुई है। आमतौर पर जनवरी और फरवरी में कुल 101.7 मिमी वर्षा होती है, जो इस बार 37.6 मिमी पर सिमट गई।

मानसून की विदाई के बाद से ही बदरा देवभूमि से रूठे हुए हैं। मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह का कहना है कि मौसम का यह असामान्य मिजाज पश्चिमी विक्षोभ के कमजोर पड़ने और उत्तर भारत में समतापमंडल में हो रहे परिवर्तन के कारण देखने को मिला। अब मार्च के प्रथम सप्ताह में वर्षा और ओलावृष्टि की संभवाना बन रही है।

गत वर्ष नवंबर में वर्षा में 65 प्रतिशत की कमी देखने को मिली थी। इसके बाद दिसंबर में भी मेघ सामान्य से 68 प्रतिशत कम बरसे। इस तरह पूरे शीतकाल में 68 प्रतिशत कम वर्षा हुई। शीतकाल में सर्वाधिक वर्षा उत्तरकाशी और सबसे कम वर्षा पौड़ी जनपद में दर्ज की गई।

वर्षा में कमी का असर बढ़ते तापमान के रूप में नजर आ रहा है और फरवरी में ही गर्मी का एहसास होने लगा है। बर्फबारी कम होने और समय से पहले तापमान बढ़ने से ज्यादातर चोटियां बर्फविहीन हो चुकी हैं।

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