खून के बदले डॉलर की डील !

इस्लामाबाद: कतर की राजधानी दोहा में हुए इजरायली हमले के बाद सऊदी अरब ने पाकिस्तान के साथ डिफेंस डील करके पूरी दुनिया को चौंका दिया। माना जा रहा है कि कतर पर पहले ईरान और फिर इजरायल के हमले के बाद सऊदी अरब का अमेरिका की सुरक्षा से विश्वास कम हो गया है। सऊदी का मानना है कि अगर किसी दिन इजरायल हमला करता है तो अमेरिका चुप्पी साध लेगा।

ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन के जोशुआ व्हाइट ने लिखा है कि “मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में नाटकीय घटनाक्रमों के आदी लोग भी इस घोषणा से अचंभित रह गए।” व्हाइट ने कहा कि “यह समझौता स्पष्ट रूप से सऊदी-पाकिस्तानी सुरक्षा और रक्षा सहयोग के दशकों को औपचारिक और गहरा बनाता है, जो 1982 के एक ऐतिहासिक प्रोटोकॉल समझौते पर आधारित है, जिसके तहत सऊदी अरब में पाकिस्तानी सैनिकों की महत्वपूर्ण तैनाती हुई थी।”

वहीं पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के इस बयान ने हलचल मचा दी है कि “जरूरत पड़ने पर पाकिस्तान की परमाणु क्षमताएं सऊदी अरब को उपलब्ध कराई जाएंगी।” अगर ऐसा होता है तो यह वैश्विक नॉन-प्रोलिफरेशन व्यवस्था पर सीधा सवाल खड़ा करेगा। हालांकि बाद में ख्वाजा आसिफ अपने बयान से पलट गये।

पाकिस्तान के पास करीब 170 परमाणु बम होने का अनुमान है। लेकिन क्या पाकिस्तान, सऊदी को अपना परमाणु बम देगा, इसको लेकर दोनों ही देशों ने चुप्पी साध रखी है। आज तक, दुनिया में सिर्फ ऐसे दो ही समझौते हुए हैं। एक- अमेरिका का परमाणु छतरी के नीचे यूरोपीय देश और दूसरा- रूसी परमाणु छतरी के नीचे बेलारूस। तो क्या पाकिस्तान के परमाणु छतरी के नीचे सऊदी आ गया है, सवाल का जवाब अस्पष्ट है।

हालांकि सऊदी और पाकिस्तान से आने वाले कुछ आवाजों में इसी संभावना की तरफ इशारे किए हैं। सऊदी अरब के एक रिटायर्ड जनरल ने नाम नहीं छापने की शर्त पर समाचार एजेंसी AFP को कहा कि इस संधि में “पारंपरिक और गैर-पारंपरिक साधनों” को शामिल किया है। उन्होंने कहा कि “हमने यह स्पष्ट और लिखित रूप से कहा है कि इसमें पाकिस्तानी परमाणु हथियार शामिल हैं।”

इसके अलावा सऊदी शाही परिवार के करीबी माने जाने वाले सऊदी विश्लेषक अली शिहाबी ने भी एएफपी को बताया है कि “परमाणु बम इस समझौते का एक अभिन्न अंग है”। लेकिन, क्षेत्रीय विशेषज्ञों का कहना है कि स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है। लाहौर विश्वविद्यालय के सुरक्षा, रणनीति और नीति अनुसंधान केंद्र के सैयद अली जिया जाफरी ने कहा कि “पाकिस्तान के पास कोई परमाणु छतरी नहीं है और इस बात का कोई सबूत नहीं है कि पाकिस्तान, सऊदी अरब को कोई परमाणु छतरी देने की योजना बना रहा है।”

उन्होंने कहा कि “पाकिस्तान का परमाणु सिद्धांत, नीति, रुख, रणनीति और क्षमताएं सिर्फ भारत-केंद्रित हैं।” लेकिन कई एक्सपर्ट्स ये मानते हैं कि परमाणु बम को लेकर शक और कनफ्यूजन पैदा कर रहा है। पेरिस स्थित फाउंडेशन फॉर स्ट्रैटेजिक रिसर्च के ब्रूनो टेरट्राइस ने कहा, “इस क्षेत्र में किसी भी संभावित व्यवस्था का विवरण जानना असंभव है, क्योंकि यह निवारण का एक हिस्सा है, जिसे अक्सर रणनीतिक अस्पष्टता कहा जाता है।”

पाकिस्तान के कई एक्सपर्ट्स का मानना है पाकिस्तान, सऊदी के साथ समझौता कर फंस गया है। यह समझौता पाकिस्तान के लिए उतना आसान नहीं है, जितना दिखता है। दशकों से पाकिस्तान सऊदी को सैनिक, ट्रेनिंग और सैन्य सलाह देता रहा है। लेकिन अब म्यूचुअल डिफेन्स क्लॉज का मतलब है कि अगर सऊदी अरब ईरान, यमन के हूती विद्रोहियों या किसी और संघर्ष में फंसता है, तो पाकिस्तान को भी सैन्य रूप से उतरना होगा।

पाकिस्तानी एक्सपर्ट का कहना है कि पाकिस्तान पहले ही आतंकी हमलों, राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट से जूझ रहा है। ऐसे में विदेशों के युद्ध में घुसने से उसकी आंतरिक सुरक्षा और कमजोर होगी। इतिहास गवाह है कि “वॉर ऑन टेरर” में अमेरिका का साथ देकर पाकिस्तान ने 90,000 से ज्यादा जानें गंवाईं और आज भी उसका खामियाजा भुगत रहा है।

दूसरी तरफ, सऊदी अरब के भारत के साथ भी बहुत अच्छे संबंध हैं। भारत की तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था पेट्रोलियम आयात पर बहुत ज्यादा निर्भर करती है, और भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार, सऊदी अरब इसका तीसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। यूरोपीयन काउंसिल ऑफ फॉरेन रिलेशन के खाड़ी देशों के एक्सपर्ट कैमिला लोन्स ने यूरेशियन टाइम्स से बात करते हुए सवाल उठाया कि “क्या सऊदी अरब, पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव बढ़ाने में शामिल होगा? मुझे नहीं लगता।

यह सऊदी अरब द्वारा अपनाई जा रही कूटनीति के बिल्कुल विपरीत होगा – जो भारत की तरह, बहु-गठबंधन वाली कूटनीति है।” उन्होंने कहा कि “सऊदी की रणनीति सालों से ऐसे संघर्ष के दौरान निष्क्रीय रहने की रही है। और उसे भारत के साथ कड़ी मेहनत से अर्जित व्यापारिक समानताओं को बनाए रखते हुए पाकिस्तान के प्रति अपने सुरक्षा दायित्वों का सम्मान करना होगा” उन्होंने कहा कि ‘सऊदी को अब भारत-पाकिस्तान के बीच संतुलन बनाए रखना बहुत मुश्किल होगा।’

पाकिस्तान के एक्सपर्ट अब सऊदी के साथ हुए डील को लेकर खतरे की तरफ इशारे कर रहे हैं। उनका मानना है कि यह समझौता पाकिस्तान को यमन और अन्य क्षेत्रों जैसे मध्य पूर्वी संघर्षों में घसीट सकता है। ईरान से पाकिस्तान की नजदीकी और क्षेत्र की अस्थिरता को देखते हुए, यह समझौता इस्लामाबाद को मजबूत करने की बजाय उसे अस्थिर कर सकता है।

उनका मानना है कि पाकिस्तान को अपनी शक्ति का एक बड़ा हिस्सा भारत से हटाकर सऊदी की तरफ करना होगा। पाकिस्तानियों का खून बहेगा, जैसा अफगानिस्तान में हुआ। इसके अलावा, अब पाकिस्तान सीधे इजरायल के निशाने पर होगा और क्या इजरायली मोसाद के छद्म युद्ध का मुकाबला करने की शक्ति पाकिस्तान में है, पाकिस्तान के अंदर सबसे ज्यादा सवाल इसको लेकर उठ रहे हैं।

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