हरिद्वार: उत्तराखंड राज्य आंदोलन के मुख्य स्तंभों में शामिल, उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व कैबिनेट मंत्री दिवाकर भट्ट का मंगलवार शाम निधन हो गया।लंबे समय से बीमार चल रहे 79 वर्षीय भट्ट ने हरिद्वार में तरुण हिमालय स्थित अपने आवास पर करीब साढ़े चार बजे अंतिम सांस ली। बीते कई दिनों से वे महंत इंदिरेश अस्पताल में भर्ती थे।मंगलवार दोपहर परिजन उनका इलाज जारी रखते हुए उन्हें घर लाए थे, जहां कुछ ही समय बाद वे जीवन की लड़ाई हार गए। उनके निधन की खबर से राज्यभर में शोक की लहर फैल गई।
दिवाकर भट्ट उत्तराखंड आंदोलन की उन ऐतिहासिक शख्सियतों में रहे, जिन्होंने युवावस्था से ही अपना संपूर्ण जीवन अलग राज्य की मांग और जनहानि-जनविरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष को समर्पित कर दिया।वर्ष 1968 से सक्रिय राजनीति और आंदोलन में कूद चुके भट्ट उन शुरुआती नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने पहाड़ की समस्याओं को राष्ट्रीय मंच तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।1979 में जब उत्तराखंड क्रांति दल का गठन हुआ, तब वे इसके संस्थापक सदस्यों में थे और संगठन को जन–जन तक पहुंचाने में उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई।
बीएचईएल हरिद्वार में कर्मचारी नेता के रूप में काम करते हुए दिवाकर भट्ट ने वन अधिनियम विरोधी आंदोलन, रोजगार, भूमि अधिकार और प्रशासनिक सुधारों जैसी कई लड़ाइयों में बढ़–चढ़कर भाग लिया। वन अधिनियम विरोध के दौरान वे लंबे समय तक जेल भी रहे, लेकिन संघर्ष से पीछे नहीं हटे।1995 में श्रीनगर में हुए श्रीयंत्र टापू आंदोलन का नेतृत्व करते हुए उन्होंने सरकार का ध्यान विस्थापन और जनहित मुद्दों की ओर खींचा। इसके अलावा टिहरी जिले की सबसे ऊंची चोटी खैट पर्वत और बाद में पौड़ी में आमरण अनशन करके उन्होंने राज्य निर्माण आंदोलन को नई दिशा दी।
उनके खैट अनशन के बाद केंद्र सरकार को वार्ता का निमंत्रण देना पड़ा था। राज्य आंदोलन के गांधीवादी चेहरे और उक्रांद संरक्षक इंद्रमणि बडोनी ने उन्हें “उत्तराखंड का फील्ड मार्शल” की उपाधि से सम्मानित किया था।राज्य गठन के बाद 2007 में भाजपा-उक्रांद की पहली गठबंधन सरकार में दिवाकर भट्ट को महत्वपूर्ण विभागों-राजस्व, आपदा प्रबंधन, महिला कल्याण समेत कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी दी गई।बतौर राजस्व मंत्री उन्होंने जिस सख्त भू-कानून को आगे बढ़ाया, वह आज भी राज्य की भूमि सुरक्षा नीति की मजबूत नींव माना जाता है। उनकी नीतियों और फैसलों का प्रभाव लंबे समय तक राज्य के प्रशासनिक ढांचे में देखा गया।
दिवाकर भट्ट के निधन को राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने गहरी क्षति बताया है। उक्रांद के वरिष्ठ नेता काशी सिंह ऐरी ने कहा कि “यह सिर्फ उक्रांद ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड के लिए अपूरणीय क्षति है। दिवाकर भट्ट ने संघर्ष, सरलता और समर्पण की ऐसी मिसाल पेश की, जिसे भूला नहीं जा सकता।” विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने भी श्रद्धांजलि अर्पित की है।परिजनों के अनुसार, स्व. दिवाकर भट्ट का अंतिम संस्कार बुधवार को हरिद्वार में किया जाएगा। उनके निधन से उत्तराखंड राज्य आंदोलन का एक महत्वपूर्ण अध्याय समाप्त हो गया।

