चंद्रयान-3 को 40 दिन लगेंगे, लूना-25 को बस 10 दिन !

उदय दिनमान डेस्कः भारत ने 14 जुलाई को चंद्रयान-3 लॉन्च किया। करीब महीने भर बाद, 11 अगस्‍त को रूस ने अपना मून मिशन ‘लूना-25’ लॉन्च किया। चंद्रयान-3 को चांद की यात्रा पूरी करने में 40 दिन लगेंगे। रूस का लूना-25 सिर्फ 10 दिनों में चांद तक का सफर तय कर लेगा। ऐसा क्यों? बहुत से लोगों के मन में यह सवाल है। जवाब यह है कि लूना-25 को एक हाई-पावर रॉकेट आगे बढ़ाता है।

वहीं, चंद्रयान-3 आगे बढ़ने के लिए चांद और धरती के गुरुत्वाकर्षण बल का प्रयोग करता है। भारत और रूस, दोनों के मिशन का मकसद चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करना है। चांद की रेस में लूना-25 खरगोश की रफ्तार से बढ़ रहा है। दोनों मिशन का लक्ष्य भले ही एक हो, मगर लूना-25 और चंद्रयान-3 में काफी अंतर है। आइए, समझते हैं कि भारत और रूस के ये महत्वाकांक्षी मून मिशन एक-दूसरे से किस तरह अलग हैं।

भारत का चंद्रयान-3 ग्रेविटेशनल फोर्सेज पर ज्‍यादा निर्भर है। लॉन्च के बाद इसे धरती की दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में स्थापित किया गया। यह उसी रास्ते पर चक्कर काटता रहा जब तक इसरो के वैज्ञानिकों ने कुछ मैनूवर्स के जरिए चंद्रयान-3 का ऑर्बिट नहीं बढ़ाया।

धीरे-धीरे चंद्रयान-3 को धरती से दूर धकेला गया और फिर इसे चांद की कक्षा की ओर गाइड किया गया। चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद, ठीक उसी तरह अब धीरे-धीरे चंद्रयान-3 को चांद की ओर धकेला जा रहा है। भारत ने पहले के चंद्रमा मिशनों- चंद्रयान 1 (2008) और चंद्रयान-2 (2019) में भी यही तरीका अपनाया था।

लूना-25 में हाई-पावर रॉकेट लगा है जो ज्यादा ईंधन ले जा सकता है। रूस ने इसमें सोयुज 2.1 रॉकेट लगाया है। ये 46.3 मीटर लंबा है। 10.3 मीटर व्यास वाले इस रॉकेट का वजन 313 टन है। चार चरणों के इस रॉकेट ने ‘लूना-25’ लैंडर को धरती के बाहर एक गोलाकार कक्ष में छोड़ दिया। यह इसे चांद की सतह तक पहुंचाने के लिए पर्याप्त ताकत देता है।

सोयुज रॉकेट की वजह से लूना-25 को धरती की कक्षा में इंतजार नहीं करना पड़ा।चंद्रयान-3 के चंद्रमा की सतह पर 23 अगस्‍त, 2023 को सॉफ्ट लैंडिंग करने की उम्मीद है। रूस का लूना-25 उससे दो दिन पहले, 21 अगस्‍त को चांद की सतह पर उतर सकता है।

लूना-25 के लैंडर को करीब साल भर तक चांद की सतह पर रहकर स्टडी करना है। वहीं,चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर की मिशन लाइन चंद्रमा के एक दिन के बराबर (धरती के 14 दिन) है। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में वैज्ञानिकों की दिलचस्पी इसलिए है क्योंकि उन्‍हें लगता है यहां पर बर्फ जमा हो सकती है। ऐसा हुआ तो उससे ईंधन, ऑक्सीजन और पीने का पानी निकाला जा सकता है।

लूना-25 में रोवर और लैंडर हैं। इसके लैंडर का वजन 800 किलो है। लूना-25 पहले सॉफ्ट लैंडिंग की प्रैक्टिस करेगा। 1976 के बाद रूस ने अब मून पर यान भेजा है। सिर्फ तीन देश ही चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरने में कामयाब रहे हैं: सोवियत संघ, अमेरिका और चीन।

भारत और रूस का टार्गेट चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सबसे पहले उतरने का है। 1976 में लॉन्च किया गया लूना-24 चांद की करीब 170 ग्राम मिट्टी लेकर सुरक्षित पृथ्वी पर वापस लौटा था। अंतरिक्ष विज्ञानी व्लादिमीर सार्डिन का कहना है कि ‘लूना-25’ मिशन की सफलता की संभावना 50 फीसदी है।

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