राह में चुनौतियों का अंबार, फिर सब हुआ मंगलकारी

देहरादून: दिवाली की सुबह सिलक्यारा-डंडालगांव सुरंग का एक हिस्सा धंस गया था। मलबा करीब 60 मीटर तक फैल गया और टनल से बाहर निकले का रास्ता बंद हो गया। अंदर 41 मजदूर फंस गए थे। उन्हें बचाने में कई तरह की रुकावटें आईं। हालांकि, तकनीक और एक्सपर्ट्स की सूझबूझ से उन्हें बचाने में कामयाबी मिली।

मलबा गिरने के बाद मजदूरों से संपर्क टूट गया। वॉकी-टॉकी भी काम नहीं कर रहा था। टनल से पानी निकालने के पाइप बिछाया गया था। उसके पास वॉकी-टॉकी का सिग्नल मिला और मजदूरों से बात हुई। उसी पाइप से कंप्रेसर के जरिए ऑक्सिजन, दवाएं और चना-मूंगफली अंदर भेजे गए।

पहले मलबा हटाने के लिए ऑगर मशीन लगाई गई। मगर, 20 मीटर तक ही मिट्टी हटाई गई थी कि और मलबा गिरने लगा। जितना मलबा हटाया जाता उतना ही गिर जाता था। रेस्क्यू टीम ने मलबा हटाने की जगह उसे ड्रिल करके 900 एमएम की पाइप डालने का प्लान बनाया। पाइप से मजदूरों को बाहर निकालने का प्लान बनाया गया।

ऑगर मशीन से पाइप डाली जा रही थी, लेकिन स्पीड धीमी थी। तेज काम के लिए दिल्ली से 25 टन का अमेरिकी ऑगर मशीन टनल में लाई गई। 25 मीटर तक पाइप डाला गया था कि ज्यादा दबाव की वजह से मशीन खराब हो गई। इसके बाद 900 एमएम के बदले 800 एमएम के पाइप डालने शुरू किए गए।

बचाव के काम में 8 दिन से ज्यादा हो गए थे, लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद पांच तरफ से ड्रिलिंग का प्लान बनाया गया। इसमें वर्टिकल ड्रिलिंग का काम ONGC को दिया गया। ‌BRO ने सड़क बनाई।लंबे समय तक मजदूर सबसे दूर अंधेरे में थे। सिर्फ सूखे खाने से काम नहीं चलने वाला था। 6 इंच का पाइप ड्रिल करके उन तक प्रॉपर खाना पहुंचाया गया। इसमें दाल, दलिया, चावल-रोटी शामिल थे। 10 दिन बाद उन्होंने खाना खाया। मजदूरों को परिजनों से भी बात कराई गई। सायकायट्रिस्ट की मदद ली गई।

60 मीटर मलबे में से 45 मीटर तक 800 एमएम पाइप पहुंच गया था। मगर, अमेरिकन ऑगर मशीन की ड्रिलिंग के रास्ते में सरिया और प्लेटें आई गईं। मशीन का ब्लेड टूट गया और ड्रिलिंग रुक गई।ऑगर मशीन खराब होने के बाद 6 रैट माइनर्स की टीम पाइप के जरिए अंदर गए और हाथ से मलबे को खोदकर रास्ता बनाया।

सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों के लिए 4 इंच डायमीटर का 70 मीटर लंबा स्टील का पाइप वरदान साबित हुआ। 12 नवंबर की शाम कोटद्वार के रहने वाले मजदूर गब्बर सिंह ने सुरंग से इसी पाइप के जरिए पानी बाहर छोड़कर संकेत दिया कि वह सुरक्षित हैं और उन्हें बाहर निकाला जाए। इसके बाद ऑक्सिजन और खाने की चीजें भेजी गईं। साथ ही मजदूरों को बचाने के लिए अलग-अलग तरह की दवाएं भी इसी पाइप के जरिए उन तक पहुंचाई जाती रही।

शुरुआती एक हफ्ते से अधिक वक्त तक यही पाइप सभी मजदूरों के लिए लाइफलाइन बना। इसके बाद बचाव टीम ने 20 नवंबर को 6 इंच डायमीटर का स्टील पाइप सुरंग के अंदर पहुंचाया। इसके बाद ही मजदूरों को पका भोजन भेजना संभव हो पाया। इसके बाद तमाम बाधाओं को पार कर बचाव टीम ने मंगलवार दोपहर के बाद मजदूरों तक राहत टीम पहुंचाने में कामयाब रही।

हाथ से आखिरी 12 मीटर की खुदाई 21 घंटे में करने वाले रैट माइनर्स की टीम ने बचाव में सबसे अहम भूमिका निभाई। टीम में शामिल यूपी के झांसी के निवासी परसादी लोधी कहते हैं कि यहां तो 800 मिमी. का पाइप है। हम लोग तो 600 मिमी. के पाइप में घुसकर रैट माइनिंग कर लेते हैं।

टीम के दिल्ली निवासी सदस्य शंभू ने कहा कि जैसे ही टनल के अंदर पहला मजदूर दिखा, उसने हमारी टीम की ओर हाथ हिलाया। फंसे मजदूरों ने जयकारे लगाए। किसी पतले छेद में घुसकर खुदाई करना रैट माइनिंग कहलाता है। ये लोग बारी-बारी से पाइप के अंदर जाते, फिर हाथ के सहारे छोटे फावड़े से खुदाई करते थे और मलबा बाहर भेजते थे। चूंकि इसमें जोखिम बहुत है, ऐसे में 2014 में NGT ने इस पर बैन लगा दिया था।

सुरंग में फंसे मजदूरों के बाहर आने पर उनके परिजनों ने राहत की सांस ली और कहा कि लंबा इंतजार खत्म हुआ। यूपी के लखीमपुर से आए चौधरी ने कहा कि दिन में ही हमें सुरंग में बुला लिया गया था। हमें कपड़े और अपना सामान तैयार रखने को कहा गया है और कहा गया कि सुरंग से बाहर आते ही हमें भी उनके साथ भेजने का इंतजाम किया जाएगा। एक अन्य श्रमिक गब्बर सिंह नेगी के बड़े भाई जयमल सिंह ने कहा कि मैं अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर सकता। कुदरत भी आज खुश नजर आ रही है और ठंडी हवाओं से पेड़ और पत्ते झूम रहे हैं।

अर्नोल्ड डिक्स और क्रिस कूपर जैसे नामी एक्सपर्ट्स ने रेस्क्यू में बड़ी भूमिका निभाई। डिक्स ऑस्ट्रेलिया के नागरिक हैं और इंटरनैशनल टनलिंग ऐंड अंडरग्राउंड स्पेस असोसिएशन के अध्यक्ष हैं। उन्हें टनल फायर सेफ्टी में 30 साल का अनुभव है। रेस्क्यू मिशन की प्लानिंग का खाका इन्होंने खींचा।

वहीं, 18 नवंबर से सिलक्यारा में डेरा डाले क्रिस कूपर माइक्रो टनलिंग के एक्सपर्ट हैं। वह ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट में प्रमुख सलाहकार भी हैं। डिक्स ने मंगलवार को मंदिर में पूजा के बाद कहा, हम पहाड़ से बच्चों को मांग रहे हैं, वह ऐन मौके पर खेल कर देता है। लेकिन उम्मीद बनाए रखनी है कि वह बच्चों को सौंप देगा। प्रकृति और पर्यावरण से यही हमें सीखना भी होता है।

सिलक्यारा सुरंग में फंसे मज़दूरों की जान बचाने में विज्ञान और तकनीक के साथ आस्था ने भी हौसला बढ़ाया। हादसे के बाद लोगों की मांग पर यहां बाबा बौखनाग का अस्थायी मंदिर बनाया गया और रोज फंसे मजदूरों की सलामती के लिए प्रार्थना की गई। एक्सपर्ट अर्नोल्ड डिक्स ने भी यहां पूजा की।

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