उदय दिनमान डेस्कः बसुकेदार अत्यन्त धार्मिक पोराणिक एवं एतिहासिक महत्व वाला स्थान है. इसके महत्व का वर्णन केदारखण्ड व स्कन्दपुराण मे भी किया गया है माना जाता है कि जब पाण्ङव स्वर्गारोहण के लिए इस पावन भूमि मेँ आये थे तो उनका एक रात्रि का विश्राम इस स्थान पर हुआ था.
यहाँ पर उनके द्वारा एक भव्य मन्दिर समूह का निर्माण किया गया ओर यह सर्वविदित है कि केदार भूमि के मन्दिरो का निर्माण पाण्डवो ने किया था. इसलिए यहाँ पर इनकी पुजा की जाती है कहा जाता है कि जब पाण्डवो द्वारा इस स्थान पर मन्दिरो का निर्माण किया जा रहा था तो उनके कार्य मे कुछ विघ्न उत्पन हुआ ओर तत्पश्चात सवेरा हो गया ओर पाण्डव यहाँ से केदारनाथ को प्रस्थान कर गये .वहाँ पर भी उनके द्वारा एक भव्य मन्दिर समूह का ऩिर्माण किया गया.
प्राचीन ग्रन्थो व पुराणो मे बसुकेदार को भी केदारनाथ के समतुल्य माना गया है कुछ समय पूर्व तक बसुकेदार मे केदारनाथ के समान ही तप्तकुण्ड आदि पाये जाते थे जो वर्तमान मे देखरेख के अभाव मे विलुप्त हो चुके हैँ .बसुकेदार को आज भी प्रथम केदार के रुप मे माना जाता है. बसुकेदार शब्द के बसु से तात्पर्य है कि बासा।हिन्दी मे बसेरा।अर्थात् भगवान केदार या शिव का इस स्थान पर बसेरा है.
इस स्थान के पोराणिक एवं धार्मिक महत्व को देखते हुए आज अन्य स्थानो के नाम भी बसुकेदार पडने लगे हैं पर वास्तव मे यही एक पोराणिक एवं धार्मिक स्थान है जो उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जनपद-विकासखण्ड अगस्त्यमुनी से 22कि.मी. दूर है यहाँ अनेक सडक मार्गोँ जैसे पठालीधार-बसुकेदार; गुप्तकाशी-डडोली; जखोली-गुप्तकाशी आदि मार्गोँ से पहुँचा जा सकता है.
यह एक अत्यन्त सुन्दर व मनोहारी स्थल है इसके उत्तर मेँ हिमालय पर्वत(चोखम्भा)स्पष्ट रुप से दृष्टिगोचर होता है यह ब्रिटिशकाल से ही शिक्षा केऩ्द्र के रुप मे प्रसिद्ध रहा है लेकिन सरकारी मशीनरियो की अनदेखी के कारण यह स्थान आज भी विकास को तरस रहा है जबकि यहाँ पर्यटन की अपार सम्भावनाएं उपस्थित हैँ