मुंबई : प्राचीन काल में भारत के लोग संस्कृति और विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए दुनिया भर में घूमें लेकिन इस दौरान उन्होंने कभी भी किसी पर न तो आक्रमण किया और न ही धर्मांतरण कराने में शामिल हुए.
उक्त बातें आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने ‘आर्य युग विषय कोश’ की शुरुआत के अवसर पर कही. भागवत ने कहा, “यह हमारा कर्तव्य है कि हम ऐसे व्यक्ति की तरह बनें जिसके पास शास्त्र और शास्त्र दोनों हों – शक्ति और भक्ति दोनों. समय ने करवट ली है; दुनिया भर के लोगों को अब यह एहसास हो गया है कि वे जिन रास्तों पर चले हैं, वे विनाश की ओर ले जाते हैं.
वे हर रास्ता आजमाकर और अलग-अलग प्रयोग करके एक नया रास्ता खोज रहे हैं. भारत एक नया रास्ता पेश करता है और बुद्धिजीवियों को भारत से उम्मीदें हैं. हम जानते हैं कि सभी जुड़े हुए हैं और राहत पहुंचाना हमारा कर्तव्य है. लेकिन अगर कोई बाधा डालने की कोशिश करता है, तो हमारे पास शक्ति होनी चाहिए.”
मोहन भागवत ने कहा, “मैंने पश्चिम के किसी व्यक्ति का एक लेख पढ़ा, जिसमें लिखा था कि दुनिया को पूर्व की ओर देखना चाहिए, खासकर भारत और उसके प्राचीन ग्रंथों की ओर. उन्होंने पतंजलि और वशिष्ठ का भी नाम लिया. दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि हमें इस मान्यता के लिए पश्चिम का संदर्भ लेना पड़ता है. लेकिन अब चीजें बदल रही हैं. हमें उस पर गर्व होना चाहिए जो हमारे पास था, हालांकि हम अपना इतिहास भूल गए हैं. सुखद बात यह है कि अब हम आगे बढ़ रहे हैं और याद कर रहे हैं कि हमारे पास क्या था.”
उन्होंने कहा कि कई आक्रमणकारियों ने हालांकि भारत को लूटा और दास बनाया और अंतिम बार आक्रमण करने वालों ने भारतीयों के मस्तिष्क को लूटा. भागवत ने कहा, ‘‘हमारे पूर्वज मैक्सिको से साइबेरिया तक गए और विश्व को विज्ञान और संस्कृति से रूबरू कराया. लेकिन उन्होंने किसी का न तो धर्मांतरण किया और न ही आक्रमण किया. हम सिर्फ सद्भावना और एकता का संदेश लेकर गए.’’
उन्होंने कहा, ‘‘कई आक्रमणकारी भारत आए और हमको लूटा, दास बनाया. लेकिन अंतिम आक्रमणकारियों ने हमारे मस्तिष्क को लूटा. हम अपनी ताकत ही भूल गए और यह भी भूल गए कि हम दुनिया के साथ क्या साझा कर सकते है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘आध्यात्मिक ज्ञान अब भी फल-फूल रहा है और आर्यवर्त के वंशज के तौर पर हमारे पास विज्ञान व अस्त्र-शस्त्र, शक्ति व सामर्थ्य, आस्था व ज्ञान है.