उत्तराखंड में मतदाता खामोश!

देहरादूनः  चुनावी गर्मी में मौसम नहीं बल्कि मतदाताओं की खामोशी प्रत्याशियों का जोश ठंडा कर रही है। जातीय और राजनीतिक समीकरणों के आधार पर जिले की आठ सीटों पर भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। जबकि तीन सीटों पर भाजपा-कांग्रेस और बसपा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है।

कांटे के बीच फंसी सीटों पर मतदाता अभी खामोश हैं। चुनावी माहौल को प्रत्याशी और राजनीति के धुरंधर तक नहीं भांप पा रहे हैं। इससे भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की धड़कनें बढ़ रही हैं। प्रत्याशियों ने मतदाताओं का मन टटोलने के लिए गैर राजनीतिक लोगों से अलग-अलग क्षेत्रों में जासूसी करवानी शुरू कर दी है। गैर राजनीतिक लोगों की ग्राउंड रिपोर्ट के आधार पर प्रत्याशी अपने अगले दिन का उन इलाकों में जनसंपर्क का प्लान तैयार कर रहे हैं।

हरिद्वार जिले में 11 विधानसभा सीटें हैं। मौजूदा आठ सीटों पर भाजपा के सीटिंग विधायकों में छह विधायक फिर से चुनाव मैदान में हैं। भाजपा ने झबरेड़ा से देशराज कर्णवाल का टिकट काटकर कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए राजपाल को मैदान में उतारा है। जबकि खानपुर से कुुंवर प्रणव सिंह चैंपियन का टिकट काटकर उनकी पत्नी रानी देवयानी को मैदान में उतारा है।

कांग्रेस से पिरान कलियर, भगवानपुर और मंगलौर से मौजूदा तीनों विधायकों को चुनाव मैदान में उतारा है। बाकी आठ सीटों पर कांग्रेस ने नए चेहरों पर दांव खेला है। अधिकतर सीटों पर कांग्रेस-भाजपा के बीच मुकाबला है। भाजपा को कई सीटों पर सत्ता विरोधी लहर से जूझना पड़ रहा है। जबकि कांग्रेस महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को भुनाकर सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचना चाह रही है।

सभी सीटों पर मतदाताओं की खामोशी ने प्रत्याशियों की उलझनें बढ़ा दी हैं। मतदाता खुलकर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं। जिले में मुस्लिम, हिंदू ओबीसी और दलित वोटर बड़े फैक्टर हैं। जातीय वोटरों के ध्रुवीकरण होने से किसी भी प्रत्याशी को सत्ता तक पहुंचा सकते हैं। आम आदमी पार्टी भी कई सीटों पर समीकरण बिगाड़ रही है।

मतदाताओं की खामोशी और आम पार्टी की सेंधमारी से भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की नींद उड़ी है। हरिद्वार ग्रामीण और हरिद्वार शहर जिले ही नहीं प्रदेश की सबसे हॉट सीट हैं। 14 फरवरी को मतदान है। ऐसे में प्रत्याशियों के लिए हर क्षेत्र में पहुंचने के लिए वक्त कम है। जो प्रत्याशी जिस क्षेत्र में कमजोर हैं वहां ताकत झोंक रहे हैं।

प्रत्याशी ने गैर राजनीतिक लोगों से क्षेत्रों में जासूसी करवा रहे हैं। जिन इलाकों में प्रत्याशी और पार्टी का जनाधार कमजोर हैं वहां अगले दिन जनसंपर्क किया जा रहा है। पूरे दिन के जनसंपर्क के बाद प्रत्याशियों के कार्यालयों में जासूसी के आधार पर रणनीति बन रही है। उसी के बाद उन इलाकों पर फोकस किया जा रहा है। उस क्षेत्र के मतदाताओं को साधने के लिए वहां के प्रभावशाली लोगों को विश्वास में लिया जा रहा है।

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