सांविधानिक सुधारों से युवा असंतुष्ट

ढाका :राजनीतिक दलों ने लोकतांत्रिक सुधार सुनिश्चित करने वाले जुलाई चार्टर पर हस्ताक्षर कर दिए लेकिन युवाओं के भारी विरोध व नवगठित (नेशनल सिटिजन पार्टी-एनसीपी) के विरोध के कारण अंतरिम सरकार का जश्न फीका पड़ गया। हालात यह रहे कि जुलाई चार्टर के सांविधानिक प्रावधानों में अपनी मांगों की अनदेखी से नाराज युवा प्रदर्शनकारी मुख्य दरवाजे को फांदकर संसद भवन परिसर में दाखिल हो गए और जमकर बवाल काटा। इस दौरान सरकार विरोधी नारे भी लगे।

खुद को हसीना को सत्ता से बेदखल करने वाले प्रदर्शनकारी बताते हुए युवा शुक्रवार सुबह से ही संसद भवन के पास एकत्र होने लगे थे। वे इस बात पर नाराजगी जता रहे थे कि नए चार्टर में उनकी चिंताओं का समाधान नहीं किया गया है, जबकि हसीना के खिलाफ बड़े पैमाने पर हुए विद्रोह के दौरान उनके कई प्रियजनों की मौत हुई है। देखते ही देखते प्रदर्शन हिंसक हो गया।

प्रदर्शनकारियों ने जब पीछे हटने से इन्कार किया तो पुलिस ने उनको तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े, लाठीचार्ज किया और तेज आवाज करने वाले ग्रेनेड का इस्तेमाल किया। इस बीच यूनुस ने संसद भवन के बाहर एकत्रित जनसमूह को बताया कि जुलाई चार्टर में हस्ताक्षरों का अर्थ है कि एक नया बांग्लादेश आकार ले रहा है। उन्होंने कहा, हम बर्बरता से निकलकर एक सभ्य समाज में प्रवेश कर चुके हैं।

जुलाई 2024 में शुरू हुए राष्ट्रीय विद्रोह के नाम पर रखा गया जुलाई राष्ट्रीय चार्टर सांविधानिक संशोधनों, कानूनी परिवर्तनों और नए कानूनों के लिए एक रोडमैप की रूपरेखा प्रस्तुत करता है। यूनुस सरकार द्वारा गठित एक राष्ट्रीय सहमति आयोग ने हसीना की अवामी लीग पार्टी को छोड़कर, प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ कई दौर की बातचीत के बाद चार्टर तैयार किया। पूर्व पीएम खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और आठ समान विचारधारा वाली पार्टियों ने कहा कि वे चार्टर पर हस्ताक्षर करेंगे जबकि एनसीपी ने इससे इन्कार कर दिया है।

यूनुस ने अगला राष्ट्रीय चुनाव फरवरी में कराने का वादा किया है, 17 करोड़ की आबादी वाले मुस्लिम बहुल देश में इस्लामी पवित्र महीना रमजान शुरू होने से पहले। लेकिन सवाल यह है कि क्या हसीना की पार्टी और उसके सहयोगियों के बिना यह चुनाव समावेशी होगा।

देश की सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी, जमात-ए-इस्लामी ने भी चार्टर पर हस्ताक्षर करने को लेकर अब तक कोई फैसला नहीं लिया है। पिछले अगस्त में भारी विरोध प्रदर्शनों के बाद सत्ता से बेदखल हुईं हसीना भारत में निर्वासन में हैं और मानवता के विरुद्ध अपराधों के आरोपों में उनकी अनुपस्थिति में उन पर मुकदमा चल रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि हफ्तों तक चले विद्रोह में करीब 1,400 लोग मारे गए हैं।

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