अमेरिका के हाथ लगा हिटलर का ‘परमाणु खजाना’

वॉशिंगटन: द्वितीय विश्व युद्ध में नाजियों ने विनाश के लिए बड़े पैमाने पर हथियारों और यूरेनियम का इस्तेमाल किया। कई असफल प्रयोगों में यूरेनियम को इस्तेमाल के बाद आज 1000 में से सिर्फ 14 क्यूब ही बचे हैं। हालांकि ये सभी इस्तेमाल नहीं किए गए बल्कि 1945 में ए़डॉल्फ हिटलर के पतन के बाद सेना ने इन्हें अमेरिका भेज दिया। अमेरिका पहुंचने के बाद इन टुकड़ों का क्या हुआ? यह रहस्य अभी भी बना हुआ है। कुछ संस्थानों के पास अभी भी नाजियों ‘खतरनाक’ अवशेष मौजूद हैं।

ऐसा ही एक टुकड़ा दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के लगभग 70 साल बाद 2013 में मैरीलैंड यूनिवर्सिटी पहुंचा जिसे देखकर वैज्ञानिक चौंक गए। भौतिक वैज्ञानिक टिमोथी कोथ ने कहा कि, ‘मैं स्तब्ध था, मेरे पास शब्द नहीं थे।’ प्रोफेसर कोथ और इतिहासकार मिरियम हाइबर्ट ने रहस्यमयी टुकड़े के बारे में किताब भी लिखी है। उनका मानना है कि यह नाजी से जुड़े रहस्यों पर से पर्दा हटाएगी। उनकी रिसर्च 2019 में फिजिक्स टुडे मैग्जीन में छपी थी। वैज्ञानिकों का मानना है कि यूरेनियम के टुकड़े परमाणु बम बनाने के नाजी प्रयासों के ‘एकमात्र जीवित अवशेष’ हैं।

प्रोफेसर कोथ ने इनसाइडर को बताया कि उन्होंने Manhattan Project को बढ़ावा देने के रूप में काम किया, जिसने 1945 में दुनिया का पहला परमाणु बम बनाया था। यूरेनियम के प्रयोग के दौरान नाजियों ने कम से कम दो प्रोटोटाइप परमाणु रिएक्टर बनाए। 7 मई 1945 को जर्मनी के सरेंडर करने से एक महीना पहले सहयोगी देशों की सेना ने जर्मन शहर हैगरलोच के पास लगभग 1.6 टन यूरेनियम को जब्त किया और इसे वापस अमेरिका भेज दिया।

अमेरिका पहुंचने के बाद इन क्यूब्स का कुछ पता नहीं चल सका। Dr Hiebert ने कहा कि हम 1000 में से सिर्फ 14 के बारे में जानते हैं। उनमें से ज्यादातर अभी भी गायब हैं। मैरीलैंड के शोधकर्ताओं के अनुसार उनके रिसर्च के माध्यम से ऐसे सुराग मिले हैं जिनसे यह साबित होता है कि दोबारा हासिल किए गए नाजी यूरेनियम को अमेरिका के अपने परमाणु कार्यक्रम में फिर से इस्तेमाल किया गया था।

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