वाराणसी: सावन के पहले सोमवार का उल्लास शिवभक्तों पर ही नहीं काशीपुराधिपति के दरबार में भी बिखरा है। काशी विश्वनाथ मंदिर में कुछ ही अवसर होते हैं जब गर्भगृह में ज्योतिर्लिंग के बजाय स्वरूप के दर्शन होते हैं। सावन में पड़ने वाले सोमवार भी उन्हीं अवसरों में एक हैं।
चार सोमवार वाले सावन के महीने में बाबा विश्वनाथ का रूप अद्भुत होता है। भगवान शिव का हर स्वरूप भक्तों के लिए कल्याणकारी होता है। वह सावन में हर सोमवार और पूर्णिमा पर अपने भक्तों को अलग-अलग स्वरूपों में दर्शन देते हैं।
काशी विद्वत कर्मकांड परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य अशोक द्विवेदी का कहना है कि सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। प्रकृति हो, मनुष्य हो चाहे देवता हर किसी को यह ऋतु आनंद ही देती है। औघड़दानी शिव भी काशी में अपने राजराजेश्वर स्वरूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। भक्तों के भाव से रिझने वाले महादेव तो मात्र एक लोटा जल से प्रसन्न होकर सर्वमनोकामना पूर्ति का वर देते हैं।
सावन के पहले सोमवार यानी आज श्री काशी विश्वनाथ शिव स्वरूप में भक्तों को दर्शन दे रहे हैं। लिंग पुराण के अनुसार भगवान शिव ज्योतिर्लिंग स्वरूप में प्रकट हुए थे। इसलिए पहला श्रृंगार मानव आकृति के रूप में किया जाता है।
सावन के दूसरे सोमवार 25 जुलाई को भक्त बाबा विश्वनाथ के शिव शक्ति स्वरूप के दर्शन करते हैं। इस दिन बाबा के ज्योतिर्लिंग पर शिवशक्ति के स्वरूप में विग्रह का श्रृंगार किया जाता है।
सावन के तीसरे सोमवार एक अगस्त को भगवान शिव का अर्द्धनारीश्वर स्वरूप भक्तों पर अपनी कृपा बरसाएगा। मनुस्मृति के अनुसार महादेव ने स्वयं को दो भागों में विभक्त करके अर्द्धनारीश्वर स्वरूप के दर्शन कराए थे।
सावन के चौथे सोमवार आठ अगस्त को बाबा विश्वनाथ का रुद्राक्ष श्रृंगार किया जाता है। इसमें रुद्राक्ष के दाने से बाबा की झांकी सजाई जाती है, मंदिर के परिसर में भी रुद्राक्ष सजाए जाते हैं। इसे प्रसाद स्वरूप भक्तों में वितरित किया जाता है।
श्रावण पूर्णिमा 12 अगस्त को काशीपुराधिपति सपरिवार झूले पर विराजमान होंगे और काशीवासी अपने आराध्य को झूले पर झूलाएंगे। श्रद्धालुओं को भगवान विश्वेश्वर चांदी के झूले में शिव-पार्वती, कार्तिकेय और गणेश के साथ दर्शन देते हैं।