उत्तराखंड में पहली बार विकसित होगा फूड फारेस्ट

हल्द्वानी: उत्तराखंड में पहली बार वन विभाग फूड फारेस्ट (food forest) तैयार करने में जुटा है। मैदान में लालकुआं और पहाड़ में मुक्तेश्वर का इसके लिए चयन किया गया है। अभी तक दक्षिण भारत में कुछ जगहों पर निजी संस्था ने ही इस प्रयोग को किया था। फूड फारेस्ट के तहत एक से डेढ़ हेक्टेयर क्षेत्र को एक पार्क की तरह तैयार किया जाएगा। प्राकृतिक जंगल की तरह ही विकसित इस क्षेत्र में सात अलग-अलग चरणों में भोजन श्रृंखला नजर आएगी।

इस भोजन श्रृंखला का संबंध इंसानों से लेकर शाकाहारी वन्यजीवों और पक्षियों से होगा। खास बात यह है कि इसमें किसी तरह के बाहरी रसायन का प्रयोग नहीं होगा। यहां उगाई जाने वाली दालों से जमीन की नाइट्रोजन डिमांड पूरी होगी तो मछली तालाब के जरिये भी मृदा की उर्वरा क्षमता को बढ़ाया जाएगा। हर्बल प्रजाति के पादप नुकसानदायक कीटाणु को फूड फारेस्ट से दूर करने में मदद करेंगे। यानी वनस्पति की एक से दूसरी प्रजाति को यहां जीवन मिलेगा।

उत्तराखंड वन अनुसंधान के मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक अनुसंधान सलाहकार समिति में फूड फारेस्ट प्रस्ताव को हरी झंडी मिल गई है। इसके लिए लालकुआं व मुक्तेश्वर का चयन किया गया था।

ताकि मैदानी व पहाड़ी दोनों जगहों पर मिलने वाली प्रजातियों पर फोकस हो सके। रेंजर मदन बिष्ट की देखरेख में लालकुआं में एक हेक्टेयर के पार्क में पौधे लगाने का काम शुरू हो चुका है। इसके अलावा मछलियों के लिए तालाब भी तैयार हो चुका है।

जुलाई में बारिश के बाद तेजी से पौधरोपण किया जाएगा। प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल कर कैसे इंसानों से लेकर वन्यजीवों व पक्षियों की भोजन श्रृंखला को तैयार किया जा सकता है, यह फूड फारेस्ट उसी का उदाहरण बनेगा।

दालों से जहां पौधों को नाइट्रोजन मिलेगा, पक्षियों के आने पर उनकी बीट खाद के तौर पर स्वत: इस्तेमाल होगी। मछली तालाब का पानी भी मिट्टी की उर्वरा क्षमता को बढ़ाएगा। इसके अलावा मधुमक्खियां व तितलियां परागण कर पौधों की वृद्धि में योगदान देगी। ऐसे में बाहरी किसी खाद की जरूरत नहीं होगी।

वन अनुसंधान के मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि लालकुआं में एक हेक्टेयर जमीन पर फूड फारेस्ट बनाने का काम शुरू हो चुका है। इसके अलावा मुक्तेश्वर में वन पंचायत की भूमि का चयन किया गया है।

वन विभाग के स्तर पर देश में पहली बार यह प्रोजेक्ट शुरू किया जाएगा। काम पूरा होने में कुछ समय लगेगा। ठोस अध्ययन के बाद पौधों का चयन किया जा रहा है। पूरी उम्मीद है कि फूड फारेस्ट का आइडिया उत्तराखंड में सफल होगा।

मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक 1970 में आस्ट्रेलियन जीव विज्ञानी बिल विलोनिस ने फूड फारेस्ट की शुरूआत की थी। इस विधि को प्रेरमा कल्चर भी कहा जाता है। जिसके बाद पश्चिमी देशों ने फूड फारेस्ट पर फोकस भी किया।

भारत में कर्नाटक, उड़ीसा और तेलांगना में निजी संस्था इस प्रयोग को कर चुकी है। प्राकृतिक रूप से बिना कैमिकल युक्त खादों का इस्तेमाल कर तैयार होने वाला फूड फारेस्ट किसानों के लिए भी फायदेमंद साबित होगा।

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