अदभुत और रहस्यमयी ब्रह्मकमल संजीवनी बूटी से कम नहीं

उदय दिनमान डेस्कः ब्रह्म कमल पुष्प का हिंदू धर्म में काफी अधिक महत्व है। विशेष रूप से ये भारत के उत्तराखंड का एक स्वदेशी फूल है जिसका वैज्ञानिक नाम सासेरिया ओबोवेलटा है। राज्य के कुछ हिस्सों में इस फूल की खेती की जाती है और बहुत कम समय के लिए ये दिखता है। उत्तराखंड में पिंडारी से लेकर चिफला, रूपकुंड, हेमकुंड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ में भी इस फूल को देख सकते हैं।

इस फूल को लेकर हमने ओरियन ग्रीन की फाउंडर नीता उपाध्याय से बातचीत की। उन्होंने इसके कई लाभ बताए जिसके बारे में शायद ही आपको जानकारी होगी। साथ ही इस पर कई शोध भी हुए हैं। खास बात ये है कि इस फूल का कई औषधियां बनाने में भी प्रयोग किया जाता है। यही वजह है कि उत्तराखंड में इसकी खेती बड़े पैमाने पर होने लगी है। आज हम आपको ब्रह्म कमल से होने वाले कई फायदों के बारे में बता रहे हैं।

ब्रह्म कमल या ब्रह्म कमलम एक स्थानीय और दुर्लभ फूल वाले पौधे की प्रजाति है जो मुख्य रूप से भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाती है। फूल को ‘हिमालयी फूलों के राजा’ के रूप में भी जाना जाता है। स्टार जैसा दिखने वाला फूल दिखने में बहुत की खूबसूरत है।ब्रह्मकमल का अर्थ ही है ‘ब्रह्मा का कमल’ कहते हैं और उनके नाम ही इसका नाम रखा गया है। ऐसा माना जाता है कि केवल भग्यशाली लोग ही इस फूल को खिलते हुए देख पाते हैं और जो ऐसा देख लेता है, उसे सुख और संपत्ति की प्राप्ति होती है। फूल को खिलने में 2 घंटे का समय लगता है। फूल मानसून के मध्य के महीनों के दौरान खिलता है। माना जाता है कि यह पुष्प मां नंदा का पसंदीदा फूल है। इसलिए इसे नंदा अष्टमी में तोड़ा जाता है।

ब्रह्म कमल के खांसी और सर्दी के इलाज से लेकर यौन स्वास्थ्य को बढ़ावा देने तक कई अद्भुत औषधीय लाभ हैं। एक अध्ययन से पता चला है कि ब्रह्म कमल दिखने में भले ही आकर्षक हो लेकिन इसकी गंध बहुत तेज और कड़वी होती है। अपने इसी गुण के कारण फूल एक एक्सीलेंट लिवर टॉनिक है। यह लिवर पर फ्री रेडिकल्स के हानिकारक प्रभावों को कम करने में मदद करता है। ब्रह्म कमल के फूल से तैयार सूप लिवर की सूजन (inflammation) का इलाज करने और शरीर में रक्त की मात्रा बढ़ाने में मदद कर सकता है। [1]

इस फूल यौन स्वास्थ्य (sexual health) को मेंटेन करने में भी मददगार है। एक शोध के अनुसार, ब्रह्म कमलम फूल (Brahma Kamalam flower) बैक्टीरिया के चार स्ट्रेन और फंगस के तीन स्ट्रेन के खिलाफ रोगाणुरोधी (antimicrobial properties) गुण रखता है। बैक्टीरिया के स्ट्रेन में S.aureus और E.coli शामिल हैं, जो यूरिनरी ट्रेक इंफेक्शन (urinary tract infection) के संक्रमण का कारण बन सकते हैं, जबकि फंगस स्ट्रेन में C. albicans शामिल हैं, जो जननांग यानी प्राइवेट पार्ट में खमीर संक्रमण (genital yeast infection) का कारण बनते हैं।इसलिए, ब्रह्म कमलम का फूल जननांग के संक्रमण का इलाज करने और अच्छे यौन स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद कर सकता है। फूल रोगजनकों (antibiotics) के खिलाफ भी असरदार है। [2]

ब्रह्म कमल में ज्वरनाशक (antipyretic properties) गुण होते हैं, जिसका अर्थ है कि यह बुखार का इलाज करने में मदद करता है। हालांकि इस क्षेत्र में अभी और अधिक शोध की आवश्यकता है। कई अध्ययनों में बुखार के इलाज में ब्रह्म फूल के पारंपरिक उपयोग का जिक्र किया गया है, इसका काढ़ा दिन में दो बार पीने से फीवर में राहत मिलती है।

ब्रह्म कमल पौधे के फूल व पत्ते खांसी और सर्दी (cough and cold) के इलाज में मदद कर सकते हैं। फूल के एंटी इन्फ्लेमेटरी (anti-inflammatory) और एंटी माइक्रोबियल (antimicrobial) गुण श्वसन मार्ग (respiratory tract) में होने वाली सूजन को कम करने और माइक्रोबेस को रोकने में मदद कर सकते हैं, इसलिए खांसी और सर्दी का इलाज कर सकते हैं। ब्रह्मा फूल अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी अन्य श्वसन समस्याओं के इलाज में भी हेल्प करता है। (3)

​घावों को भरने में मदद करता है
ब्रह्म कमल में एंटीसेप्टिक गुण पाए जाते हैं और इसलिए यह चोटों के घाव भरने को ठीक करने में मदद कर सकता है। अध्ययनों से पता चलता है कि जब घावों पर लगाया जाता है, तो फूल उस क्षेत्र से चिपक जाता है और उसे सील कर देता है, जिससे रक्तस्राव (Bleeding) बंद हो जाता है और इसके उपचार में मदद मिलती है। इसके अलावा यह तंत्रिका विकारों (nervous disorders) का इलाज करने में भी सहायक है। इस फूल में एसिटिन नामक एक फ्लेवोन होता है जो एक प्राकृतिक एंटी कॉन्वेलसेंट है। ब्रह्मा फूल में कई प्रकार के एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जैसे एल्कलॉइड, फ्लेवोनोइड्स, टरपेनोइड्स, ग्लाइकोसाइड्स, सैपोनिन्स जो एक अच्छे तंत्रिका तंत्र को बनाए रखने में भी मदद कर सकते हैं।

​ब्रह्म कमल के फायदे
ब्रह्म कमल शरीर में ब्लड प्यूरीफाई यानी खून साफ करने में मदद करता है।यह प्लेग के इलाज में उपयोगी है।सांप के काटने का इलाज कर सकते हैं।गठिया के लिए एक उपाय के रूप में कार्य कर सकता है।मानसिक स्वास्थ्य विकारों के लिए सहायक।हृदय विकारों के इलाज में मदद करें।

कमल पुष्प अनेक तरह के होते हैं। उत्तराखंड में ब्रह्म कमल की 24 प्रजातियां मिलती हैं पूरे विश्व में इसकी 210 प्रजातियां पाई जाती है। ब्रह्म कमल के पौधों की ऊंचाई 70 से 80 सेंटीमीटर होती है। बैगनी रंग का इसका पुष्प टहनियों में ही नहीं बल्कि पीले पत्तियों से निकले कमल पात के पुष्पगुच्छ के रूप मे खिलता है जिस समय यह पुष्प खिलता है उस समय वहां का वातावरण सुगंधित से भर जाता है। ब्रह्मकमल की खुशबू या गंध बहुत तीक्ष्ण- तेज होती है।

ब्रह्मकमल उत्तराखंड राज्य का पुष्प है। केदार नाथ से 2 किलोमीटर ऊपर वासुकी ताल के समीप तथा ब्रह्मकमल नामक तीर्थ पर ब्रह्मकमल सर्वाधिक उत्पन्न होता है। इसके अतिरिक्त फूलों की घाटी एवं पिंडारी ग्लेशियर रूपकुंड, हेमकुंड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी में यह पुष्प बहुतायत पाया जाता है इस पुष्प का वर्णन वेदों में भी मिलता है।

ब्रह्मकमल पुष्प की कोई जड़ नहीं होती यह पत्तो से ही पनपता है यानी इसके पत्तों को बोया जाता है। इसे अधिक पानी और गर्मी से बचाना जरूरी है। भारत में Epiphyllum oxypetalum ब्रह्म कमल तथा उत्तराखंड में इसे कौल पद्म नाम से जानते हैं। जिसमें ब्रह्मकमल का सर्वोच्च स्थान है। यह एक ऐसा फूल है जिसकी महालक्ष्मी वृद्धि के लिए पूजा की जाती है। शेष पुष्पों से भगवान की पूजा करते हैं। यह कभी पानी में नहीं खिलता। इसका वृक्ष होता है। पत्ते बड़े और मोटे होते हैं। पुष्प सफेद होता है।ब्रह्मकमल पुष्प रात्रि में 9 बजे से 12.30 के बीच ही खिलता है। इसे खिलते हुए देखना बहुत सौभाग्य सूचक होता है। इसके दर्शन से अनेक परेशानियों से निजात मिलती है।ब्रह्मकमल साल में केवल एक महीने सितंबर में ही पुष्प देता है। वो भी एक तने से एक पुष्प।

महाभारत के वन पर्व में इसे सौगंधिक पुष्प कहा गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णुजी ने केदारनाथ ज्योतिर्लिंग पर 1008 शिव नामों से 1008 ब्रह्मकमल पुष्पों से शिवार्चन किया और वे, कमलनयन कहलाये। यही इन्हें सुदर्शन चक्र वरदान स्वरूप प्राप्त हुआ था। केदारनाथ शिवलिंग को अर्पित कर प्रसाद के रूप में दर्शनार्थियों को बांटा जाता है।ब्रह्म कमल, फैनकमल कस्तूरा कमल के पुष्प बैगनी रंग के होते हैं। भावप्रकाश निघण्टु नामक आयुर्वेद की एक बहुत ही पुरानी किताब में संस्कृत के एक श्लोक में कमलपुष्प का वर्णन है-

वा पुंसि पद्म नलीनमरविन्दं महोत्पलम्।

सहस्त्रपत्रं कमलं शतपत्रं कुशेश्यम्।।

पक्केरुहं तामरसं सारसं सरसी रुहम्।

बिसप्रसूनराजीवपुष्कराम्भो रुहाणी च।।

कमलं शीतलं वर्णयं मधुरं कफपित्तजित्

अर्थात- कमलपुष्प, पुरहन पद्म, नलिन, अरविंद, महोत्पल, सहस्त्र पत्र, कमल, शतपत्रं, कुशेषय, पक्केरुह, तामरस, सरस, सरसीरुह, विसप्रसून, राजीव, पुष्कर और अम्भोरूह ये सब वैदिक संस्कृत नाम हैं।बंगाल-,उड़ीसा में पदम्, मराठी-गुजरात में कमल, कन्नड़ में बिलिया तावरे, अंग्रेजी में सैक्रेड लोटस नेलंवियम स्पेसियोजम विल्ड कहा जाता है।

कमल सदैव कीचड़ में ही गर्मी तथा वर्षाकाल के वक्त खिलता है। कमल के बीजों को कमलगट्टा कहते हैं।कमल का फूल शीतल वर्ण यानी देह के रंग को निखारने वाला, मधुर रस युक्त, कफ-पित्त नाशक होता है।तृष्णा अर्थात अधिक प्यास लगना, शरीर में दाह-जलन, रक्तविकार, खून की खराबी या अशुद्धि, विस्फोट अर्थात पूरे शरीर में छोटी-छोटी फुंसियां हो जाती हैं इसमें कमल पुष्प का रस लगाने से लाभ होता है।

ब्रह्म कमल के फूल से तैयार सूप लिवर की सूजन (inflammation) का इलाज करने और शरीर में रक्त की मात्रा बढ़ाने में मदद करता है! यकृत केंसर में इसका सुप पिलाते हैं।ब्रह्मकमल एक बेहतरीन लिवर ओषधि-टॉनिक है। यह लिवर पर फ्री रेडिकल्स के दुष्प्रभाव को कम करने में सहायक है।ब्रह्म कमल के पौधे को सदैव छांव में लगाएं, जहां सुबह थोड़ी धूप आती हो। ब्रह्मकमल के पौधे को लगाने के लिए आपको इसकी एक पत्ती लेनी पड़ती है।

कमल पुष्प का रस एवं क्वाथ का उपयोग करने से शरीर के विषैले तत्व दूर होते हैं। यह इम्युनिटी बूस्टर भी होता है। इसका एक चम्मच रस का शर्बत पीने से त्वचा में निखार आता है।ब्रह्मकमल पुष्प यौन स्वास्थ्य (sexual health) या सेक्सुअल पावर बढ़ाने में कारगर है। उत्तराखंड में इस पुष्प को पीसकर मिश्री मिलाकर दूध के साथ पिलाते हैं, जिससे वीर्य गाढ़ा होने लगता है।

बैक्टीरिया के स्ट्रेन में S.aureus और E.coli शामिल हैं, जो यूरिनरी ट्रेक इंफेक्शन (urinary tract infection) के संक्रमण का कारण बन सकते हैं, जबकि फंगस स्ट्रेन में C. albicans शामिल हैं, जो जननांग यानी प्राइवेट पार्ट में खमीर संक्रमण (genital yeast infection) का कारण बनते हैं।

ब्रह्मकमल जीवाणुओं (बैक्टीरिया) के चार स्ट्रेन और फंगस के तीन स्ट्रेन के खिलाफ रोगाणुरोधी (antimicrobial properties) गुण रखता है।महिलाओं के लिए कमल एक सर्वश्रेष्ठ ओषधि है। यह एक बेहतरीन गर्भस्थापक है। कमल के सेवन से गर्भस्त्राव रुकता है। गर्भाशय की विकृति में हितकर है। खड़कर सोमरोग या पीसीओडी स्त्री विकारों में अत्यन्त हितकारी है।श्वेत या सफेद कमल फूल को पुण्डरीक, लाल कमल पुष्प को कोकनद तथा नीलकमल को इंदीवर कहते हैं। नीलकमल केवल मणिधारी नाग के स्थान ही खिलता है। यह दुर्लभ है।

 

हैं। इनका जन्म झांसी के पास बरुआसागर नामक ग्राम में हुआ था। यह जाती से कलार थे। बचपन में इनका सही नाम श्यामलाल था।सफेद कमल यानी श्वेत कुमुद शीतल, मधुर एवं कफ-पित्त का नाधक होता है जबकि रक्तकमल यानि रक्तकुमुद या कल्हार इतनी कारगर ओषधि नहीं है।चरक, सुश्रुत सहिंता व द्रव्यगुण विज्ञान में कमल के अनेक भेदों का वर्णन है।कमल के कंद व बीजों में राल, ग्लूकोज, मेटारविन, टैनिन, वसा नेलंविन क्षाराम पाया जाता है।

कमल की पंखुड़ियां या पुष्प शीतल ठंडक दायक, दाह को मिटाने वाली, ह्रदय की रक्षक व बलदायी, रक्तसंग्राहक और मूत्र को साफ लेन वाली होती हैं। कमल पुष्प का काढ़ा सुबह खाली पेट गर्मी के दिनों में 10 से 15 ml थ रोज लेना हितकारी रहता है। इससे बार-बार आने वाले ज्वर, संक्रमण, अतिसार से राहत मिलती है।

तीव्र ज्वर के समय जब कोई उपाय काम न करे, तो कमल फूल का काढ़ा मधु पंचामृत के साथ देने से रोगी की सुरक्षा होती है। इससे ज्वर, संक्रमण का दुष्प्रभाव नहीं होता।अर्थात-घर के मंदिर में देवताओं का मस्तक एवं शिंवलिंग सदैव पुष्प से सुशोभित रहना चाहिए अन्यथा घर में निगेटिव ऊर्जा का आगमन होने लगता है।ईश्वर को नियमित पुष्प चढ़ाने से परिवार के सदस्य रोगी बने रहते हैं। प्रतिदिन पुष्पार्चन, जलार्पण एवं अमृतम द्वारा निर्मित राहुकी तेल का दीपदान राहुकाल में नित्य करना शुभकारी रहता है।

सुख-सपन्नता, शांति और धनवर्षा कारक उपाय…

ॐ असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय।

मृत्योर्मा अमृतं गमय। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

प्रत्येक मंगलवार एवं शुक्रवार उपरोक्त शांति मन्त्र तीन बार पढ़कर माँ महालक्ष्मी तथा शिवलिंग पर श्वेत कमल या ब्रह्मकमल अर्पित करने से घर में सुख-शांति आती है और धन की अपार वृद्धि होती है। यह एक अवधूत द्वारा बताया गया शर्तिया उपाय है।अर्थात – जो शोभा, सुन्दरता बढ़ाये, वह माला है। पूजा में माला का बहुत महत्व है। पंचमहाभूतों में यह पृथ्वीतत्व का प्रतीक है। जिन लोगों का जन्म वृष, हस्त तथा मकर राशि में हुआ हो उन्हें हर महीने की दोनों चतुर्दशी को शिव व दुर्गा शतनाम से शाम को सूर्यास्त के बाद अर्पित करने से सन्तति एवं सम्पत्ति में निश्चय ही बढोत्तरी होती है।

कुलार्णव तन्त्र में उल्लेख है कि शिंवलिंग पर पुष्प और माला अर्पित करने से जीवन में स्थिरता आती है। भय-भ्रम, शंका का नाश हो जाता है। आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। कभी बीमारी नहीं होती।‘विष्णु धर्मोत्तर पुराण’ में वर्णन है कि..पुष्प प्रथ्वी और प्रकृति की देन हैं। यह हल्के और सुगंधित होते हैं।प्रतिदिन ब्रह्मा-विष्णु-महेश इन तीनों के प्रतीक…3 फूल रोज शिंवलिंग पर अर्पित करने से जीवन कभी भारी नहीं लगता।

सिरदर्द, माइग्रेन, मानसिक क्लेश, अवसाद या डिप्रेशन या किसी तरह के मानसिक विकारों में 72 दिन तक लगातार शिंवलिंग पर पुष्प चढ़ाने से चमत्कारी फायदा होता है।कालिका पुराण में लिखा है कि… प्रातः घर के सभी सदस्य बिना अन्न ग्रहण किये शिंवलिंग या देवताओं की पूजा-अर्चना अवश्य करें। यह दुःख नाशक प्रयोग है।“तन्त्र रहस्योपनिषद” एवं वास्तुदोष निवारण कर्म में कहा गया है कि जिस घर में प्रातः या सुबह और शाम या रात को ईश्वर का पुष्प से श्रृंगार नहीं होता, दीपक नहीं जलता, शंखध्वनि नहीं बजती,

शिंवलिंग पर जल नहीं चढ़ाया जाता, उनके घर में धीरे-धीरे प्रेत-पिशाच, भूतों का वास होने लगता है।घर की सकारात्मक ऊर्जा-शक्ति क्षीण होने लगती है। घर की रक्षा करने वाली सूक्ष्म पवित्र-पुण्य आत्माएं, पितृगण आदि कहीं अन्यत्र चली जाती हैं। वह घर दोष, दुख, दरिद्र, रोग कारकहो जाता है।संतान की कामना वालों को 27 दिन तक लगातार 108 पुष्प धतूरे के शिंवलिंग पर अर्पित करना चाहिए।गुरु गोरखनाथ का वचन है कि.. उसे निश्चित रूप से पुत्र या पुत्री की प्राप्ति होती है। यह गुरु वचन कभी खाली नहीं जाएगा

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