सीता की “विदाकोटी” को ये कैसा अज्ञातवास!

मुहुर्मुहु: परावृत्य दृष्ट्वा सीतामनाथवत्।
चेष्टन्तीं परतीरस्थां लक्ष्मणा: प्रययावथ।
उदय दिनमान डेस्कःगंगा जी के तट पर अनाथ की तरह रोते हुऐ धरती पर लोट रही विदेहनन्दिनी सीता के लिऐ वाल्मीकी रामायण उत्तरकाण्ड ४८ सर्ग में वर्णित इस श्लोक का सार आज भी नही बदला है। विलख रही सीता को विदा करते हुऐ तब लक्ष्मण बार बार मुंह घुमाकर देखते हुऐ चल दिऐ वैसे ही आज हम सभी देवप्रयाग में गंगा अलकनन्दा के तट पर रामायणकाल के इस अलौकिक तीर्थ ” विदाकोटी ” को देखकर भी मुंह मोड़ देते है।
विडम्बना देखे की ” सीता सर्किट ” की जोर शोर घोषणा होने के बाद भी सरकार और पर्यटन विभाग की जिम्मेदारियां यहां शून्य है। जबकि उत्तराखण्ड सरकार अपनी महत्वपूर्ण योजना ” सीता सर्किट ” के अन्तर्गत विदाकोटी, सीतासैंण, कोट सीता मंदिर को विकसित करने जा रही है। लेकिन इस योजना के परवान चढ़ते-चढ़़ते गंगा तट पर मां सीता के पहले आश्रयस्थल विदाकोटी का अस्तित्व संकट में आ चुका होगा।
दरसल विदाकोटी के नारायण मंदिर की दीवारे और शिखर अधिकांशत: क्षतिग्रस्त हो चुका है। जिसके कभी भी ढहने की आशंका बनी हुई है। कभी गुलजार रहने वाला इसका रास्ता झाड़ियो से ढककर जंगली जानवरो की शरणस्थली बन चुका है। आखिर राम को आदर्श मानने वाली सरकार में राम की सीता को लेकर भाव क्या कुंद हो चुका है ?
वियावान बसेरे में 80 साल के बुजुर्ग का अज्ञातवास
विदाकोटी के नारायण मंदिर में 80 साल से पूजा कर रहे बुजुर्ग पुजारी सुदंरलाल भट्ट अपने पुत्र के साथ इस वियावान में अकेले रह रहे है। यहां आने का रास्ता आज भी वही पुराना बद्रीनाथ मार्ग है जिस पर आजादी से पूर्व पैदल यात्रा चला करती थी। हालांकि अब यहां सड़क कट रही है जिस पर भी फिलहाल काम बंद है। जंगल का रास्ता होने से यहां आवाजाही ना के बराबर है।
भगवान की नियमित पूजा और उनकी गुजरबसर कैसे होती होगी यह भगवान भरोसे ही है। यहा बसे सभी परिवार पलायन कर चुके है। बावजूद अपने आराध्य की पूजा के लिऐ वो 80 बरस अर्पित कर चुके है। वो चाहते है उनके बाद भी यह ऐतिहासिक स्थली बची रहे। सीता माता की यह धरोहर टूटने को है समय रहते इसे बचा दिया जाय। सड़क और रास्ता बने तो आवाजाही सरल हो जायेगी। राम की सीता के लिऐ उत्तराखण्ड सरकार कुछ तो राजधर्म निभाऐ।
विदाकोटी जहां विदा हुई सीता
देवप्रयाग के निकट अलकनंदा के दूसरे छोर पर दिखाई देने वाला विदाकोटी का यह प्राचीन मंदिर नारायण का है। इसका नाम विदाकोटी सीता की विदाई से उपजा है। रामायण के उत्तरकाण्ड के सर्ग ४७ – ४८ में इससे जुड़े प्रसंग का जिक्र है। त्रेतायुग में इसी स्थान पर लक्ष्मण जी मां सीता को विदा करने पहुंचे थे। कुछ समय तक भगवान नारायण की पूजा करने के उपरांत मां सीता यहा से दो किलोमीटर आगे एक समतल सैंण में कुटिया बनाकर रहने लगी।
बाद में वे यहां से कोट गांव चली गयी। तब से सीतापथ का यह रास्ता ऐतिहासिक हो गया। किन्तु बद्रीनाथ के सड़क मार्ग बन जाने के बाद यहा आवाजाही लगभग बंद हो गयी। विदाकोटी से दो किलोमीटर आगे सीतासैंण से सीता की मूर्ति को मुछियाली गांव ले जा दिया गया। सीता का यह पथ विदाकोटी से सीतासैंण, मुछियाली, कोट, फलस्वाड़ी तक फैला है।
पुरातत्व और पर्यटन विभाग ले सुध
विदाकोटी नारायण मंदिर धार्मिक दृष्टि से जितना महत्वपूर्ण है, पुरातत्व की दृष्टि से उतना ही ऐतिहासिक भी। इसस मंदिर का शिखर, गर्भगृह की दीवारे क्षतिग्रस्त हो चुकी है। समय रहते इसे बचाया न गया तो यह विरासत नष्ट हो जायेगी।
कब साकार होगी सीता सर्किट योजना
उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत, पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज सीता सर्किट के लिऐ घोसणा कर चुके है। उत्तराखण्ड सरकार द्वारा भी केन्द्र सरकार को भी इसे विकसित करने का प्रस्ताव भेजा जा गया है। लेकिन अभी तक यह योजना धरातल पर नही उतर पायी है।
दीपक बेंजवाल

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