एक घर में विराजमान है 16वीं सदी रहस्यमय मंदिर

द्वाराहाट: धरातल से विलुप्त उत्तराखंड की इकलौती धरोधर कुटुंबरी देवी मंदिर की थाह लेने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इकाई (एएसआइ) अंतिम बार गहन जमीनी जायजा लेगी। पुरातात्विक लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण यह ऐतिहासिक स्मारक एएसआइ के दस्तावेजों में तो है मगर मौके मंदिर अस्तित्व में कब तक रहा यह अब भी रहस्य बना हुआ है।

पिछले एक दशक से चल रही खोज में अवशेष जुटाना तो दूर मंदिर का वास्तविक स्थल तक पता नहीं लगाया जा सका है। उधर उत्तराखंड प्रभारी (एएसआइ) ने जो रिपोर्ट भेजी है, उसमें ऐतिहासिक मंदिर के अवशेष जैसे कटस्टोन आसपास के घरों में लगे होने की संभावना जताई गई है। बहरहाल, वास्तविकता जानने के उद्देश्य से एएसआइ की दिल्ली व उत्तराखंड की संयुक्त टीम जल्द फाइनल निरीक्षण कर किसी नतीजे तक पहुंच सकेगी।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन संरक्षित, लेकिन गायब 24 स्मारकों में से उत्तराखंड का एकमात्र कुटुंबरी देवी मंदिर किसी अजूबे से कम नहीं। पुराने जानकार बताते हैं कि 1950-60 तक द्वाराहाट के कनार क्षेत्र में 16वीं सदी के इस मंदिर के अवशेष मौजूद रहने का जिक्र होता था। मगर इस मंदिर का वास्तविक स्थल का अब तक पता नहीं लगाया जा सका है। इसी अवधि में पर्वतीय क्षेत्रों में बंदोबस्ती की गई।

तब बेनाप भूमि जरूरतमंदों में आवंटित कर दी गई। स्थानीय बाशिंदों ने आवंटित भूमि पर अपने मकान बनाने के साथ कृषि कार्य भी शुरू किया। बताया जाता है कि तब अवशेष के रूप में मौजूद कुटुंबरी मंदिर का वजूद भी मिट गया। कालांतर में गहन बस्ती हो जाने के कारण वर्तमान में उसकी खोज करना बड़ी चुनौती बन चुका है।

लोकमान्यता व प्राचीन कथाओं की मानें तो चंद शासनकाल में द्वाराहाट क्षेत्र में बुजुर्ग महिला धान (चावल) कुटाई में निपुण थी। उसकी कोई संतान नहीं थी। बेसहारा थी लेकिन दानवीर और धार्मिक प्रवृत्ति वाली रही। धान कुटाई से जो धन एकत्र किया उससे आमा (दादी) ने एक मंदिर बनवाया, जिसे बाद में कुटुंबरी देवी मंदिर के रूप में प्रसिद्धि मिली। यह भी कथा है कि बुजुर्ग महिला जब स्वर्ग सिधार गई तो एक अन्य बेसहारा आमा ने भी इसी मंदिर में सेवादारी कर जीवन बिताया था।

हमारी रिपोर्ट बहुत पहले जा चुकी है। फाइनल निरीक्षण और होना है। दिल्ली से निदेशक वगैरह आएंगे। उनके साथ निरीक्षण किया जाना है। कुटुंबरी देवी मंदिर अस्तित्व में ही नहीं है इसलिए कहना थोड़ा मुश्किल है। कहीं कहीं कटस्टोन लगे मिलते हैं। मंदिर अस्तित्व में न होने से लोगों ने घर बनाने में अवशेषों का इस्तेमाल किया ही होगा। पूर्व के सर्वे में हम उस स्थल तक पहुंच चुके, जहां मंदिर बताया जाता है।

– मनोज सक्सेना, उत्तराखंड प्रभारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इकाई

कुटुंबरी देवी मंदिर का वजूद कब तक रहा, अब तक यही स्पष्ट नहीं हो सका है। बुजुर्ग किसी पुराने दौर में मंदिर होने का जिक्र जरूर करते थे। यह दावा करना गलत है कि मंदिर के अवशेष रूपी पत्थर व अन्य सामग्री गांव के घरों में इस्तेमाल की गई है। पूरा द्वाराहाट स्थापत्यकला की दृष्टि से बहुत समृद्ध रहा है। कत्यूरकालीन मंदिरों में प्रयुक्त पत्थरों जैसे पाषाणखंड जहां तहां बिखरे पड़े हैं। चांचरी यानि चंद्रपर्वत से ही कत्यूरकालीन मंदिरों के निर्माण को पत्थर निकाले गए थे। कालांतर में द्वाराहाट क्षेत्रवासियों ने भी अपने घरों के निर्माण में इसी चंद्रपर्वत के पत्थरों का उपयोग किया था। लिहाजा दोनों समानता होना स्वाभाविक है।

– अनिल चौधरी पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष

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