अफ्रीकी देशों ने 35 दवाओं का आयात रोका

इंदौर। अफ्रीकी देश कांगो ने 35 दवाओं के फार्मूलेशन की सूची जारी कर उनके आयात को प्रतिबंधित कर दिया है। इससे क्षेत्रीय दवा उद्योगों को अफ्रीकी देशों से कारोबारी झटका लगा है।

इन देशों की नीति से इंदौर-उज्जैन क्षेत्र की दवा कंपनियों के निर्यात में सालाना करीब 25 प्रतिशत की कमी आने की आशंका जताई जा रही है। दवा उद्योग मांग कर रहे हैं कि निर्यात में हो रहे नुकसान के लिए अब सरकार को अपने स्तर पर नीतिगत सुधार करना चाहिए।

मालूम हो कि इससे पहले नाइजीरिया, घाना, इथोपिया और अल्जीरिया जैसे देश भी अपने यहां दवा आयात सूची को छोटी कर चुके हैं। अफ्रीकी देश अपने देश की दवा कंपनियों को संरक्षण देने और दवा निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए ऐसे कदम उठा रहे हैं।

कांगो ने एमाक्सीसिलिन के यौगिकों से लेकर डाक्सी, मेट्रोनाइडाजोल के पैरासिटामाल के अलग-अलग काम्बिनेशन और आइब्रुफेन व विटामिन बी-1, बी-6 और बी-12 के साथ विटामिन सी की सिरप के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है।

स्थानीय दवा निर्माताओं के अनुसार अब भी अफ्रीकी देशों में सभी दवाएं नहीं बन पा रही हैं। स्थानीय कंपनियां एनाल्जेसिक, एंटी कोल्ड, आयरन सप्लीमेंट, कफसिरप से लेकर आइंटमेंट और इंजेक्शन के साथ ही कोरोना से चर्चा में आई फैबिफ्लू जैसी दवाएं निर्यात कर रही हैं।

दवा निर्माताओं के अनुसार निर्यातक कंपनियों को राज्य और केंद्र सरकार के दोहरे नियम से जूझना पड़ रहा है। चीन जैसे देश ने अपने घरेलू उपभोग वाली दवाओं के लिए कड़े नियम लागू किए हैं, लेकिन निर्यात के लिए संबंधित देश के नियमन और निर्यातक कंपनी पर छोड़ दिया है। ऐसे में जिस देश को जो फार्मूला चाहिए होता है, चीन की दवा कंपनियां उसे बिना रोक-टोक बनाकर निर्यात कर देती हैं।

हमारे यहां विदेश भेजने के लिए भी दवा निर्माण की अनुमति केंद्र और राज्य दोनों के एफडीए से जूझना पड़ता है। स्थानीय सूची में फार्मूला शामिल होने पर अनुमति मिलती नहीं या फिर महीनों लग जाते हैं। ऐसे में निर्यात के लिए दवा निर्माण की अनुमति आसान हो जाए तो नए फार्मूले बनाकर बाजार ढूंढना भी आसान हो जाएगा।

मप्र स्माल स्केल ड्रग मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष के अनुसार बीते वर्षों में कोरोना के दौर में स्थानीय दवा कंपनियों का निर्यात का आंकड़ा 400 करोड़ रुपये तक जा चुका है। सामान्य तौर पर कम से कम 300 करोड़ रुपये की दवा अफ्रीकी देशों को आपूर्ति की जाती है।

छोटे-छोटे देशों के ताजा सामान्य से प्रतिबंध निर्यात के इस आंकड़ों को 25 प्रतिशत तक घटाते दिख रहे हैं। दूसरी ओर दवाओं के कच्चे माल की लगातार बढ़ती कीमत भी चिंता बढ़ा रही है। उदाहरण के तौर पर पैरासिटामाल जैसे सामान्य कच्चे माल (एपीआइ)का दाम मई 2020 में 350 रुपये किलो था, जो अब 715 रुपये किलो हो गया है।

कंटेनरों का बढ़ा हुआ भाड़ा भी कंपनियों पर भारी पड़ रहा है। अफ्रीकी देशों के लिए दो साल पहले कंटेनर का भाड़ा करीब दो लाख रुपये था, जो अब बढ़ते हुए 9 लाख रुपये तक पहुंच गया है। कच्चे माल में हम चीन पर निर्भर हो गए हैं। ऐसे में अब कच्चे माल के निर्माण में आत्मनिर्भर बनना और दवा के विनियमन की प्रक्रिया को आसान करने की आवश्यकता है।

क्षेत्र के दवा निर्माता व निर्यातक के अनुसार हर देश ने अपनी-अपनी सूची में मात्र 25 से 35 दवाओं को शामिल किया है, लेकिन स्थानीय कारोबार पर इसका व्यापक असर हो रहा है। इन आदेशों से कम से कम 100 करोड़ रुपये का निर्यात इंदौर-उज्जैन क्षेत्र की कंपनियों का घट जाएगा। अफ्रीकी देशों में निर्यात करने वाली कंपनियां ज्यादातर छोटी व मध्यम स्तर की हैं। ऐसे में निर्यात का यह घाटा इन पर भारी पड़ रहा है।

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