वैदिक पद्धति से बन रहा अयोध्या का राम मंदिर

अयोध्या: 500 वर्षों से जिस स्वरुप में मंदिर निर्माण का इंतजार करोड़ों राम भक्त कर रहे थे। वह समाप्त होने जा रहा है। मंदिर निर्माण के लिए सीएम योगी गर्भगृह के मूल पत्थर को विधि विधान पूर्वक रखेंगे। राम मंदिर ट्रस्ट की मानें तो ये दुनिया का सबसे अनोखा मंदिर होगा। जिसमें 1 या 2 नहीं बल्कि हजारों विशेषताएं होंगी जो दुनिया भर के मंदिरों से अलग होगी।

70 एकड़ में फैली राम जन्मभूमि परिसर में विश्व की ऐतिहासिक मंदिर का निर्माण आधुनिक तकनीक से वैदिक पद्धति पर हो रहा है। और इसके निर्माण में जल, थल और नभ में रिसर्च करने वाले वैज्ञानिक भी शामिल हैं।

इसमें निर्माण कंपनी एलएंडटी मुख्य भूमिका निभा रही है। तो वहीं जमीन व उसके नीचे जल में भी रिसर्च करने वाली भारतीय भू भौतिक संस्थान के साथ राम मंदिर के गर्भगृह में सूर्य की पहली किरण भगवान श्री रामलला को सुशोभित करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष के बैज्ञानिक अनुसन्धान परिषद भी कार्य कर रही है।

अयोध्या का राम मंदिर पांच गुम्बद वाला दुनिया अकेला राम मंदिर होगा। जिसके निर्माण के लिए गर्भगृह, रंगमंडप, नृत्यमण्डप के साथ दो और मंडप बनाये जाएंगे। साथ मंदिर में आधुनिक व्यवस्थाए होंगी। जिसके तहत मंदिर में ऑटोमेटिक साउंड व लाइटिंग होगी।

इसके साथ ही मंदिर की सुरक्षा के लिए आधुनिक यंत्रों का प्रयोग किया जाएगा। जिसमे ऑटोमैटिक एक्सरे मशीन, स्क्रीन मशीन के साथ आने वाले श्रद्धालुओं के सामानों को रखने के लिए बनने वाली यात्री सुविधा केंद्र में पासवर्ड से चलने वाली लॉकर की लगाए जाएंगे।

अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण आधुनिक यंत्रों से किया जा रहा है लेकिन मंदिर के निर्माण में प्राचीन पद्धति अपनाई गई है राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय निर्माण जानकारी देते हुए बताया कि 40 फुट जमीन में मंदिर की नींव तैयार किया गया है। जिसमें लोहे के सरिया का प्रयोग नहीं किया गया है। बल्कि ईञ्जिरिंग के जारिए जमीन को ठोस बनाया गया है।

वही अब मंदिर निर्माण के लिए ग्रेनाइट पत्थर से ही 21 फुट ऊंचा चबूतरा बनाया जा रहा है जिस पर राजस्थान के पिंक सैंड स्टोन से मंदिर का निर्माण होगा। लगभग 3 एकड़ में तैयार होने वाले इस मंदिर के पत्थरों को जोड़ कर ही बनाया जाएगा। न ही किसी केमिकल का इस्तेमाल होगा और नही लोहे का उपयोग किया जाएगा। ट्रस्ट की मानें तो प्राचीन पद्धति ही मंदिर को हजारों वर्षों तक सुरक्षित रख सकती है।

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