नैनीताल उत्तराखंड में है भारत का पहला मास गार्डन

नैनीताल :  नैनीताल से करीब छह किमी दूर कालाढूंगी मार्ग पर लिंगाधार में वन विभाग की अनुसंधान शाखा की ओर से 2019 में मास गार्डन तैयार किया गया था। इसका मकसद मास और अन्य ब्रायोफाइट्स की प्रजातियों के संरक्षण व पर्यावरण में इसके महत्व के बारे में बताना था। तब इस गार्डन में मास की एक दर्जन से अधिक प्रजातियां थीं। अब वन अनुसंधान शाखा के प्रयासों से इस गार्डन में 50 से अधिक प्रजातियों का संरक्षण किया जा रहा है।

मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान संजीव चतुर्वेदी के अनुसार, यहां पाई जाने वाली मुख्य दो प्रजातियां ह्योफिला इन्वोल्टा सीमेंट मास व प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय संघ की लाल सूची में शामिल ब्राचिथेलेशियम बुकनानी फिगर है। यहां मास की सभी प्रजातियों के बारे में वैज्ञानिक जानकारी भी प्रदर्शित की गई है।

मास गार्डन में हर सप्ताह में दो दिन सरकारी स्कूलों के बच्चों का भ्रमण कराकर उन्हें जागरूक किया जा रहा है। वन क्षेत्राधिकारी नितिन पंत, जेआरएफ तनुजा पांडे समेत अन्य वन कर्मचारी बच्चों को मास की विभिन्न प्रजातियों के बारे में जानकारी देते हैं। स्कूल के बच्चों व शोधार्थिंयों से किसी तरह का शुल्क नहीं लिया जाता है। शोध कार्य में दिलचस्पी लेने वाले पर्यटक भी गार्डन का भ्रमण को आते हैं।

खुर्पाताल की पहचान अब तक झील के साथ ही वाटरफाल के लिए होती थी। अब मास गार्डन भी यहां पर्यटकों के आकर्षण के साथ ही विज्ञानियों व विज्ञान, पर्यावरण प्रेमियों के आवागमन का केंद्र बन रहा है। नैनीताल, भीमताल, सातताल एवं आसपास घूमने आने वाले पर्यटक अब खुर्पाताल में मास गार्डन देखने भी अधिक संख्या में पहुंचने लगे हैं।

जलवायु परिवर्तन, खनन व निर्माण गतिविधियां बढऩे से मास की सैकड़ों प्रजातियों पर अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है। मास पृथ्वी पर अरबों साल पुरानी सबसे प्राचीन वनस्पति है, जो सीधे वायुमंडल से नमी सोखती है, जिससे मास या काई की परत जम जाती है तो भूमि पर भू कटाव रुक जाता है। यह नमी का संरक्षण करती है।

मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान हल्द्वानी संजीव चतुर्वेदी के अनुसार यह विषाणुरोधी, जीवाणुरोधी, कवकरोधी होती है। काई से दवा बनाने का शोध कार्य चल रहा है। इससे चिडिय़ा घोंसला बनाती है। प्रथम विश्व युद्ध में आयरलैंड ने रूई के स्थान पर मास का उपयोग घायल सैनिकों के उपचार में किया था। दुनिया के अनेक देशों में ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत के रूप में इसका उत्पादन किया जा रहा है। जापान व पोलैंड में भी मास गार्डन बनाए गए हैं। भारत में यह पहला गार्डन है।

मास या हरिता पौधों की दुनिया में ब्रायोफाइट््स की एक प्रजाति है। ब्रायोफाइट्स के तीन प्रकार होते हैं। सबसे पहला हिपैटिकऑप्सिडा, एंथोसैरोटॉप्सिडा, ब्रायोप्सिडा। मास ब्रायोप्सिडा के मेंबर होते हैं। इनकी 12 हजार प्रजातियां हैं। यह अपुष्पक पादप हैं। इनमें वास्तविक जड़ों का अभाव रहता है। मास मिट्टी का निर्माण करता है। वर्षा जल को रोकता है।

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