स्वरोजगार के लिए औद्योगिक भांग की खेती की नीति बनेः मैठाणी

देहरादूनः उत्तराखण्ड में इंडस्ट्रियल हैम्प आधारित स्वरोजगार सृजन और रिवर्स माइग्रेशन को गति प्रदान करने के लिए वर्ष 2003-04 से ही इंडस्ट्रियल हैम्प की खेती, प्राकृतिक रेशों, बीज और डंठलों का उपयोग कर लघु कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए नीति निर्माता प्रयासरत् रहे हैं।

गौरतलब है कि पूर्व में उत्तराखण्ड कैनेबिस चिकित्सीय व वैज्ञानिक प्रयोजन और औद्योगिक हैम्प की खेती को एक साथ रख कर वर्ष 2016 में पहली इंडस्ट्रियल हैम्प पॉलिसी बनायी गयी थी।

इसकी अंतिम बैठक तत्कालीन मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह की अध्यक्षता में 20 मार्च 2020 को हुई थी। इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए ‘‘औद्योगिक हैम्प एवं चिकित्सीय कैनाबिस’’ की नियमावली, 2023 पर स्टेक होल्डर्स की परामर्श बैठक का आयोजन सचिव, कृषि एवं कृषक कल्याण, उत्तराखण्ड शासन की अध्यक्षता में होटल अकेता, देहरादून में किया गया । बैठक में राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर के स्टेक होल्डर्स, जिनमे उद्यमी एवं कृषकों द्वारा प्रतिभाग किया गया।

बैठक के प्रारम्भ में सगन्ध पौधा केन्द्र के निदेशक, डा0 नृपेन्द्र चौहान द्वारा प्रतिभागियों का स्वागत करते हुये, उनके समक्ष नियमावली के बारे संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करते हुये कहा कि, उत्तराखण्ड राज्य में रोजगारपरक खेती कम होने तथा पारम्परिक खेती को जंगली जानवरों द्वारा पहुंचाये जा रहे नुकसान, पर्वतीय जनपदां में रोजगार की तलाश में पलायन की समस्या के दृष्टिगत रोजगारपरक खेती उपलब्ध कराये जाने की दिशा में ‘‘औद्योगिक हैम्प एवं चिकित्सीय कैनाबिस’’ की खेती के लिए नियामवली तैयार की गई। राज्य के कृषकों एवं इससे सम्बंधित उद्योगों को बढा़वा देने हेतु तैयार नियमावली पर हितधारकों से सुझाव आमंत्रित किये गये।

अधिकांश प्रतिभागियों द्वारा हैम्प बीज की उपलब्धता, लाईसेन्स प्राप्त होने में देरी, जिन पौधों में टी.एच.सी. की मात्रा 0.3 प्रतिशत से अधिक है, के बीज एवं तने के उपयोग की अनुमति प्रदान करने, परीक्षण की व्यवस्था जिला स्तर पर उपलब्ध कराने, चिकित्सीय कैनेबिस की खेती इन्डोर अवस्था में ही करने के साथ-साथ राज्य में 700 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में इसकी ख्ेती हेतु अनुज्ञा जारी करने का सुझाव दिया गया।

बैठक में बॉम्बे हैम्प कम्पनी के प्रतिनिधि दिलजाद देवलीवाला ने अपने सुझाव रखते हुए कहा कि वर्तमान पॉलिसी के भाग 3 में यह कहा गया है कि औद्योगिक हैम्प टी0एच0सी0 की निर्धारित मानक से अधिक पाये जाने पर फसल के तने व शाखा से फाइबर बनाने की अनुमति प्रदान की जाएगी व शेष भाग- फूल, पत्ती व बीज आदि को जिला आबकारी अधिकारी की उपस्थिति में नष्ट कर दिया जाए। यह अनुचित होगा बल्कि ऐसी फसल से उत्पादित बीज का उपयोग किये जाने की अनुमति दी जानी चाहिए। ताकि बीज और बीज से बनने वाले तेल, आटा और प्रोटीन पाउडर आधारित स्वरोजगार विकसित किये जा सकें।

लाइसेंस धारक सर्व हैम्प कम्पनी के सचित अवस्थी ने सुझाव रखा कि मेडिसनल कैनेबिस और औद्योगिक हैम्प दोनों को अलग-अलग पॉलिसी में नहीं रखना चाहिए था। बल्कि दोनों को एक साथ रखा जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि हमारे राज्य की पॉलिसी से पूरे एशिया में औद्योगिक हैम्प की खेती को बढ़ावा मिलेगा और स्वरोजगार विकसित होगा।

ज्ञ3ै प्रोजेक्ट्स इंडिया लि0/भंगोला डॉट कॉम के अखिलेश सिंह ने सुझाव दिया कि ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों को लाइसेंस बनाने की कठिन प्रक्रिया से ना गुजरना पड़े इसके लिए जिला स्तर पर समन्वय समिति में समाजसेवी संगठन और किसानों को अवश्य शामिल किया जाए।

धर्मशाला के सृजन शर्मा ने भी इस बात को दोहराया कि औद्योगिक भांग की खेती में मानक से अधिक टी0एच0सी0 के बीजों के उपयोग की अनुमति दी जानी चाहिए। लाइसेंस धारक संकेत जैन ने सुझाव दिया कि लाइसेंस के आवेदन और लाइसेंस मिलने तक की अवधि को तीन माह की बजाय दो माह किया जाना उचित होगा।

काशीपुर से आए रघुवेन्द्र सिंह ने कहा कि अभी तक इंडस्ट्रियल हैम्प के बीज को बीज प्रमाणिकरण नहीं मिला है। जिसकी वजह से औद्योगिक भांग की फसल का उपयोग नहीं हो पाता है। इसलिए भांग के बीज को बीज प्रमाणिकरण सम्बन्धित एक्ट में शामिल किया जाना चाहिए।

पिछले लगभग डेढ़ दशक से प्राकृतिक रेशा, इंडस्ट्रियल हैम्प आधारित स्वरोजगार एवं औद्योगिक भांग पर शोध कार्य कर रहे आगाज फैडरेशन पीपलकोटी चमोली के अध्यक्ष एवं हैम्प शोधार्थी जे0पी0 मैठाणी ने कहा कि यह पॉलिसी राज्य के हित में है।

उन्होंने मांग की कि औद्योगिक भांग की खेती से सम्बन्धित नीति बनाने की राज्य सरकार की फिलॉसफी यह थी कि उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार की कमी, जंगली जानवरों द्वारा परम्परागत फसलों और फल उद्यानों को नुकसान पहुंचाने की वजह से कृषि भूमि बंजर हो रही है। अतः ऐसे और प्रमुखतः भौगोलिक दृष्टि से पहाड़ी क्षेत्रों में ही औद्योगिक भांग की खेती के लाइसेंस दिये जाएं।

इसके लिए समुद्र तल से 600 मीटर या उससे ऊपर के क्षेत्रों में स्थित गाँवों की कृषि योग्य भूमि को ही शामिल किया जाए। ताकि उत्तराखण्ड में रोजगार के लिए पलायन, घोस्ट विलेज की संख्या में कमी के साथ-साथ कृषि योग्य भूमि का सदुपयोग उत्तराखण्ड राज्य के निवासियों के लिए हो सके।

मैदानी क्षेत्रों में सुगमता से उत्तराखण्ड कैनेबिस (चिकित्सीय व वैज्ञानिक प्रयोजन) एवं औद्योगिक हैम्प की खेती, प्रसंस्करण व उत्पाद निर्माण के लाइसेंस देने से सिर्फ औद्योगिक घरानों या पूंजीपतियों को ही लाभ मिलेगा ना कि ग्रामीण क्षेत्र के गरीब किसानों को। जिनके लिए यह मुहिम शुरू की गयी थी।

श्री मैठाणी ने सचिव, कृषि एवं कृषक कल्याण, उत्तराखण्ड शासन और निदेशक सगंध पादप केन्द्र को दिये गये अपने 11 बिन्दुओं के सुझाव पत्र में यह भी मांग की कि अगर औद्योगिक भांग की खेती आबादी वाले क्षेत्र या मैदानी क्षेत्र जैसे तराई, हरिद्वार, उधमसिंह नगर और देहरादून के अलावा नैनीताल के कुछ हिस्सों में औद्योगिक भांग की खेती के अधिकतर लाइसेंस दिये जाते हैं तो इससे उत्तराखण्ड के उन पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों या भूमिधारकों को स्वरोजगार के लाभ नहीं मिलेंगे जिनके लिए शुरू से ही उत्तराखण्ड सरकार स्वरोजगार हेतु औद्योगिक भांग खेती की नीति बना रही थी।

उन्होंने कहा कि, ऐसे क्षेत्र जहाँ औद्योगिक भांग की खेती की जानी प्रस्तावित हुई हो या उसका लाइसेंस लेना वांछित हो वे पूर्णतः गैर आबादी क्षेत्र होने चाहिए। इससे दुरूपयोग, फसल नुकसान, चोरी आदि को रोका जा सकेगा।
हर जनपद जहाँ के लिए औद्योगिक भांग की खेती को उपयुक्त माना गया हो वहाँ लाइसेंस आदि प्रक्रियाओं के लिए िंसंगल विंडो सिस्टम स्थापित किया जाए।


चिकित्सीय एवं वैज्ञानिक प्रयोजन के लिए औद्योगिक भांग की खेती किसी भी प्रकार से खुले स्थान पर न हो बल्कि यह खेती इंडोर या प्रोटेक्टेड कल्टिवेशन ही होना चाहिए। जैसा कि प्रस्तावित नियमावली के पृष्ठ 6 में वर्णित है।
प्रस्तावित नियमावली के पृष्ठ 7 बिन्दु 14 में पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेंट के बिन्दु 2 के अनुसार फसल की कटाई के बाद पौधों के अवशेषों को जिला स्तर पर नामित नोडल अधिकारी की उपस्थिति में नष्ट किया जाना लिखा है- यहाँ यह वर्णित नहीं है कि ये जला कर या कम्पोस्ट बनाकर नष्ट किये जाएंगे। जलाने से वायु प्रदूषण होगा। इसलिए अगर डंठल या रेशे के साथ-साथ बीजों का उपयोग किया जा सके तो नियमावली में इसका प्रावधान होना चाहिए।

राज्य स्तर की इस बैठक में कैनरमा, आईटीएस हैम्प, हिमाचल प्र्रदेश, नेनो टेक कम्पनी, दी जैन्स एण्ड सन्स कम्पनी, रूडकी, इस्टोएग्रोटेक, चण्डीगढ, केनाजो इण्डिया, मुम्बई, भंगोला, रूडकी, बोईको कम्पनी, मुम्बई, जिन्दल ग्लोबल आगाज़ फैडरेशन, हैम्प फाउण्डेशन, घाट चमोली के किसान दिलबर सिंह, बागेश्वर से बिपिन जोशी, राजेश चौबे, जसप्रीत सिंह, संकेत जैन, आर्किटेक्ट इशानी कंडवाल आदि सहित लगभग 55 स्टेक होल्डर्स द्वारा ऑफलाईन एवं लगभग 40 स्टेक होल्डर्स द्वारा ऑनलाईन प्रतिभाग किया गया।

कार्यक्रम मे उपस्थित सचिव, कृषि एवं कृषक कल्याण, उत्तराखण्ड शासन, डा0 वी0बी0आर0सी0 पुरूषोत्तम द्वारा सभी हितधारकों के विचार सुनने के उपरान्त उनको यथाआवश्यक नियमावली में समाहित करने का आश्वासन दिया।

बैठक में श्री विजय कुमार जोगदण्डे, अपर सचिव, आयुष, श्री राजू श्रीवास्तव, अपर सचिव, न्याय, श्री ए0आर0 सेमवाल, अपर आयुक्त, आबकारी, श्री देवानन्द, सहायक निदेशक, नारकोटिक कन्ट्रोल ब्यूरो, सहित अपर ड्रग कन्ट्रोलर, सयुक्त सचिव, कृषि एवं कृषक कल्याण, विधायी तथा आबकारी, श्री अखिलेश रावत, सलाहकार, मा0 मंत्री,कृषि एवं कृषक कल्याण, उत्तराखण्ड सरकार आदि विभागों के अधिकारी भी उपस्थित रहे।

अंत में डा0 सुनील साह, वैज्ञानिक डी, द्वारा प्रतिभागियों का धन्यवाद् ज्ञापित करते हुये, बैठक का समापन किया गया। कार्यक्रम के दौरान श्री आर0के0यादव, वैज्ञानिक सी, डा0 ललित अग्रवाल, वैज्ञानिक बी, डा0 सरकार, डा0 अनिल चौहान आदि प्रतिभाग किया गया।

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