अल्मोड़ा : पर्वतीय क्षेत्रों में हाड़ कंपाने वाली ठंड फिर शुरू हो गई है। पारा शून्य पर ठिठुर रहा। बर्फीली सर्दी के बीच पानी तक जमने लगा है। नलों से निकलने वाले पानी की धारा अपने ही स्वरूप में जम गई है। लगातार पाला गिरने से चुनौतियों के पहाड़ में दुश्वारियां और बढ़ गई हैं। खेत खलिहान सुबह सवेरे चांदी सी चादर ओढ़े हैं। अत्यधिक पाला गिरने से कुछ खास किस्म की सब्जियों की पौध को छोड़ फल के पेड़ों की पत्तियां गलने लगी हैं।
अल्मोड़ा के नगरीय क्षेत्रों में घनी आबादी वाले उन क्षेत्रों में जहां सीधी धूप पड़ती है, वहां तो कुछ गनीमत है। मगर पश्चिमी उत्तर ढाल वाली उन घाटियों में सर्दी का कहर बढ़ता जा रहा है जहां धूप देर से पहुंचती है। तापमान शून्य या उससे भी नीचे गिरने के कारण पेयजल लाइनें जम गई हैं। रात में भरा गया पानी बर्फ की तरह जम चुका है। यहां तक कि नल से पानी निकलना भी बंद हो गया है।
सोमेश्वर रोड पर नमन के पास टूरिस्ट स्पाट मनान हो या रानीखेत का पनियाली, चौबटिया की पिछली ढाल भालू डैम, स्याहीदेवी, शीतलाखेत आदि क्षेत्रों की विपरीत ढाल जहां दिन भर धूप नहीं रहती जलस्रोत भी जम से गए हैं। वहीं सड़कों पर लगातार पाला गिरने व धूप के अभाव में कांच सरीखी परत जमने से हादसों का खतरा भी बढ़ गया है।
पर्यावरण विशेषज्ञ डा. रमेश सिंह बिष्ट लाही व पालक की पौध तो पाले को झेल जाती हैं। मगर कोमल कोशिकाओं वाले आम, लीची, अमरूद फलों व फसलों की पौध को नुकसान पहुंचता है। कोशिकाएं जलने से फसल व पौधों की बढ़वार रुक जाती है। प्रकृति प्रेमी प्रिया मेहता के अनुसार मनान व अन्य सब्जी उत्पादक पश्चिमी उत्तरी ढाल वाले इलाकों में टमाटर की खेती तो अत्यधिक पाले से खत्म सी होने लगी है।