उदय दिनमान डेस्कः बर्फ के ग्लेशियर (Glacier) यूं तो पूरी तरह सफेद और मंत्रमुग्ध कर देने वाले दिखते हैं. ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते इनका पिघलना लगातार प्रॉब्लम बना रहा है, लेकिन इन दिनों यूरोप (Europe)के ग्लेशियर एक रहस्मय लाल रंग उगल रहे हैं. वैज्ञानिक ये देखकर हैरान हैं कि बर्फ के ऊपर जमी सफेद बर्फ लाल कैसे हो गई है? ये लाल रंग तेज़ी से फैल रहा है और काफी ऊंचे ग्लेशियर तक देखा जा सकता है.
ग्लेशियर पर फैलने वाले लाल रंग को ग्लेशियर का खून (Glacier Blood) कहा जाता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसा एक सूक्ष्म जीव शैवाल (Microalgae) की वजह से होता है. आम तौर पर समुद्र की सतह पर पाए जाने वाले इन जीवों का ग्लेशियर तक जाना चौंकाने वाली घटना है. अब वैज्ञानिक इसके ज़रिये जलवायु परिवर्तन को समझने की कोशिश करेंगे. एल्पएल्गा प्रोजेक्ट (AlpAlga Project)के तहत वैज्ञानिकों की टीम इसका अध्ययन कर रही है.
सफेद ग्लेशियर पर एक खास तरह की माइक्रोएल्गी (Microalgae) शैवाल इस वक्त पनप रही है. यूं तो ये पानी में रहती है, लेकिन जब ये एल्गी पहाड़ों के मौसम में रिएक्ट करती है तो लाल रंग छोड़ने लगती है और काफी दूर तक ग्लेशियर लाल दिखने लगते हैं. ये शैवाल जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण बर्दाश्त नहीं कर सकती. फ्रांस के ग्रेनोबल में स्थित लेबोरेटरी ऑफ सेल्युलर एंड प्लांट फिजियोलॉजी के डायरेक्टर एरिक मार्शल का कहना है कि माइक्रोएल्गी बर्फ और हवा के कणों के साथ उड़कर ग्लेशियरों तक जा पहुंचे हैं.
माइक्रोएल्गी बेहद छोटी होती हैं. एक इंच का कुछ हजारवें हिस्से के बराबर की ये एल्गी जब एक साथ होती हैं तो कॉलोनी बना लेती हैं. फ्रेंच एल्प्स पहाड़ों पर मौजूद ग्लेशियरों का रंग बदलने वाली एल्गी हरी एल्गी है. इस एल्गी में क्लोरोफिल (Chlorophyl) के साथ एक और रसायन पाया जाता है जिसे कैरोटिनॉयड्स (Carotenoids) कहते हैं. इसी रसायन के चलते ये नारंगी और लाल रंग का पिगमेंट बनाते हैं. इनका काम एल्गी को सूर्य की किरणों से बचाए रखना है.