अब बंगाल में ममता बनर्जी पर मंडरा रहा ‘संवैधानिक संकट’

उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत को 4 महीने के अंदर छोड़नी पड़ी कुर्सी
विधानसभा के सदस्य नहीं थे, कोरोना की वजह से अभी चुनाव मुश्किल
बंगाल में ममता बनर्जी की कुर्सी पर भी मंडरा रहा है संवैधानिक संकट
ममता ने भवानीपुर सीट खाली कराई लेकिन अभी चुनाव पर सस्पेंस
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कोलकाता: उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा। संवैधानिक संकट की वजह से उन्होंने राज्यपाल को इस्तीफा सौंप दिया। दरअसल तीरथ सिंह रावत विधानसभा के सदस्य नहीं थे और वर्तमान हालात में उपचुनाव होना भी मुश्किल था। ऐसे में उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। इस बीच तीरथ सिंह रावत के बाद अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए भी मुश्किल हो सकती है।

10 मार्च 2021 को तीरथ सिंह रावत ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की शपथ ली थी। ऐसे में 10 सितंबर से पहले उन्हें किसी सदन का सदस्य होना जरूरी थी। तीरथ ने संवैधानिक संकट और अनुच्छेद 164 का हवाला देते हुए इस्तीफे की बात कही है। अनुच्छेद 164(4) के अनुसार, कोई मंत्री अगर 6 माह की अवधि तक राज्य के विधानमंडल (विधानसभा या विधान परिषद) का सदस्य नहीं होता है तो उस समयसीमा के खत्म होने के बाद मंत्री का कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा। इस लिहाज से पश्चिम बंगाल की स्थिति भी उत्तराखंड जैसी ही दिख रही है। यहां सीएम ममता बनर्जी अभी विधानसभा की सदस्य नहीं हैं।

ममता बनर्जी ने 4 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। ऐसे में उन्हें शपथ लेने के दिन से छह महीने के अंदर यानी 4 नवंबर तक विधानसभा का सदस्य बनना जरूरी है और यह संवैधानिक बाध्यता है। उन्होंने अपने लिए एक सीट (भवानीपुर) खाली भी करा ली है लेकिन वह विधानसभा की सदस्य तभी बन पाएंगी जब तय अवधि के अंदर चुनाव हो सके। कोरोना की वजह से केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने सभी चुनाव स्थगित किए हुए हैं। चुनाव प्रक्रिया कब से शुरू होगी, इस बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे में अगर नवंबर तक भवानीपुर उपचुनाव के बारे में चुनाव आयोग फैसला नहीं लेता है तो ममता की गद्दी के लिए भी खतरा हो सकता है।

बंगाल में जब आयोग चुनाव करा रहा था तब कई राजनीतिक दलों ने आयोग पर लोगों की जान से खेलने के आरोप लगाए थे। ऐसे में अब जब तक यह सुनिश्चित नहीं हो जाता कि चुनाव कराने से किसी की जान को खतरा नहीं है तो चुनाव होने की सूरत बनती नहीं दिख रही है। ममता ने हालात को समझते हुए, विधान परिषद वाला रास्ता निकालने की कोशिश की थी। उन्होंने विधानसभा के जरिए प्रस्ताव पास कराया कि राज्य में विधान परिषद का गठन हो लेकिन बगैर लोकसभा की मंजूरी के यह संभव नहीं है। केंद्र सरकार के साथ उनके रिश्ते जगजाहिर हैं। ऐसे में विधान परिषद वाला रास्ता भी मुमकिन नहीं है।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी इसी तरह की मुश्किल में फंस चुके हैं। उन्होंने 28 नवंबर 2019 को जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तो किसी सदन के सदस्य नहीं थे। उन्हें 27 मई 2020 तक किसी सदन का सदस्य बनना था। उनके लिए तसल्ली की बात यह थी कि महाराष्ट्र में विधान परिषद है और उसकी सात सीटों के लिए अप्रैल 2020 में चुनाव होने थे।

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