अधिकारियों ने लगाया 30 करोड़ का चूना

देहरादून। लोनिवि अधिकारियों ने सरकार को 30 करोड़ रुपये से अधिक की चपत लगा दी। गंभीर यह है कि कैग की आपत्ति पर अधिकारी ठोस जवाब भी नहीं दे पाए। लोक निर्माण विभाग (लोनिवि) के तीन खंडों में कैग (भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक) ने बड़े स्तर पर वित्तीय गड़बड़ी पकड़ी है। इन गड़बड़ियों को देखकर लगता है कि अधिकारियों ने इसे जानबूझकर अंजाम दिया। इसमें टेंडर से पहले ही कार्य आवंटित कर देना, परफॉर्मेंस सिक्योरिटी जमा नहीं करने वाले ठेकेदार पर क्षतिपूर्ति न लगाना और अनाधिकृत रवन्नों से ठेकेदार को भुगतान जारी करना शामिल है।

लोनिवि के एडीबी खंड रुद्रपुर ने वुडहिल इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को मोटर मार्ग निर्माण संबंधी कार्य दिए थे। कैग ने खंड कार्यालय के वर्ष 2018 के अभिलेखों की जांच में पाया कि कंपनी ने रेत, स्टोन डस्ट, ग्रिट आदि के प्रयोग के जो रवन्ने लगाए थे, वह संबंधित क्षेत्र के लिए मान्य नहीं थे। इसके बाद भी अधिकारियों ने कंपनी को 41.16 लाख रुपये का भुगतान कर दिया। नियमों के मुताबिक बिना अनुमति उपखनिज के प्रयोग पर रॉयल्टी धनराशि का पांच गुना जुर्माना वसूल किया जाना चाहिए। यह धनराशि 14.08 करोड़ रुपये थी और अधिकारियों की अनदेखी के चलते इसे वसूल नहीं किया जा सका।

कैग की रिपोर्ट के मुताबिक प्रांतीय खंड लोनिवि रुद्रप्रयाग ने विजयनगर-तैला मोटर मार्ग की वित्तीय एवं प्रशासनिक स्वीकृति प्राप्त किए बिना ही टेंडर आमंत्रित कर दिए। इसके अलावा दो जॉब में मांगे गए टेंडर में एक-एक ठेकेदार ने ही प्रतिभाग किया। इसके बाद भी कार्य आवंटित कर दिया गया। इस मार्ग पर पहाड़ कटान संबंधी कुछ काम प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के तहत किया गया था। संबंधित भाग पर कार्य करने के लिए 3.80 करोड़ रुपये का आकलन किया गया, जबकि ठेकेदार ने 3.25 करोड़ रुपये की बोली लगाई।

मोलभाव के बाद ठेकेदार को यह कार्य 2.03 करोड़ रुपये में दे दिया गया। हालांकि, कटान संबंधी कार्य की लागत बिल ऑफ क्वांटिटी के आधार पर निकाली गई तो यह 98 लाख 80 हजार रुपये आई। अधिकारियों ने इस भारी अंतर को देखते हुए भी नए टेंडर नहीं कराए और सरकार को एक करोड़ चार लाख रुपये से अधिक की चपत लगा दी।

मुख्य अभियंता राष्ट्रीय राजमार्ग, देहरादून के अभिलेखों की जांच में कैग ने पाया कि अधिकारियों ने परफॉर्मेंस सिक्योरिटी जमा न करने वाले ठेकेदारों से क्षतिपूर्ति वसूल ही नहीं की। नियमों के मुताबिक ठेकेदार को अनुबंध करने के 10 दिन के भीतर परफॉर्मेंस सिक्योरिटी जमा करनी होती है। यहां 16 में से छह अनुबंध में सिक्योरिटी जमा करने में 133 दिन तक का विलंब हुआ। लिहाजा, इनसे अनुबंध मूल्य की 0.01 फीसद धनराशि बतौर क्षतिपूर्ति वसूल की जानी चाहिए थी। यह धनराशि 1.39 करोड़ रुपये थी, मगर अधिकारियों ने इस पर पर्दा डाल दिया।

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