आटे के लिए मर रहे लोग !

इस्लामाबाद : साल 1947 में विभाजन के बाद अस्तित्व में आए पाकिस्तान में यूं तो कभी ‘स्वर्णिम काल’ नहीं रहा, लेकिन वर्तमान में उसके सबसे बुरे दिन चल रहे हैं। लोगों के पास न रोजगार है और न ही खाने को रोटी। ऐसी परिस्थितियों में भी पाकिस्तान सरकार की प्राथमिकताएं आईने की तरह साफ हैं। देश के प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के हालिया बयानों से तो ऐसा ही लगता है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से बेलआउट पैकेज हासिल करने और एक आम आदमी की मुश्किलें कम करने पर ध्यान लगाने के बजाय पाकिस्तान सरकार का ध्यान देश के परमाणु कार्यक्रम पर है। वित्त मंत्री इशाक डार ने गुरुवार को एक सवाल के जवाब में कहा कि उनकी सरकार देश के परमाणु या मिसाइल कार्यक्रम पर कोई समझौता नहीं करेगी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि कंगाली में भी पाकिस्तानी हुकूमत का ध्यान परमाणु बमों पर क्यों है?

सबसे पहले जानते हैं कि वित्त मंत्री इशाक डार ने क्या कहा। गुरुवार को सीनेट में एक सवाल के जवाब में डार बोले, ‘मैं पारदर्शिता और वित्तीय अनुशासन में विश्वास करता हूं। मैं आपको भरोसा दिलाना चाहता हूं कि कोई भी पाकिस्तान के परमाणु या मिसाइल कार्यक्रम पर समझौता करने नहीं जा रहा है, बिल्कुल नहीं।’

उन्होंने कहा कि किसी को भी पाकिस्तान को यह हुक्म देने का हक नहीं है कि ‘पाकिस्तान कितनी रेंज की मिसाइलें और कौन से परमाणु हथियार रख सकता है।’ डार बोले कि हम पाकिस्तान के लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं और हमें अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करनी है।

इसके कुछ देर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का भी इस मामले पर बयान आ गया। अपने बयान में शहबाज ने कहा, ‘पाकिस्तान का परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम एक राष्ट्रीय संपत्ति है जिसकी रक्षा सरकार करती है। पूरा कार्यक्रम सुरक्षित है और किसी भी तरह के दबाव में नहीं है।’

उन्होंने कहा, ‘जिस उद्देश्य के लिए यह ताकत विकसित की गई थी, यह पूरी तरह से उस उद्देश्य को पूरा करने के लिए जारी है।’ शहबाज ने एक ट्वीट में कहा कि पाकिस्तान के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम के बारे में भ्रामक अटकलें दुर्भाग्यपूर्ण हैं।

अब बताते हैं कि पाकिस्तानी हुकूमत को इस तरह के बयान क्यों जारी करने पड़े। दरअसल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के वरिष्ठ नेता और सीनेटर रजा रब्बानी ने देश के परमाणु कार्यक्रम को लेकर कुछ चिंताएं जाहिर करते हुए सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान के लोगों को यह जानने का पूरा हक है कि क्या मुल्क की परमाणु संपत्ति किसी तरह के दबाव में है?

उनका इशारा आईएमएफ बेलआउट पैकेज में हो रही देरी की तरफ था। पाकिस्तानी अधिकारियों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि एक पश्चिमी देश की तरफ से लंबे समय से लॉन्ग-रेंज परमाणु मिसाइलों को छोड़ने की लगातार मांग की जा रही है।

किसी ने भी इस पश्चिमी देश का नाम खुलकर नहीं लिया है लेकिन अटकलें लगाई जा रही हैं कि अमेरिका पाकिस्तान क परमाणु क्षमताओं से नाखुश है। मौजूदा आर्थिक संकट और हालिया आतंकवादी हमलों के चलते परमाणु शस्त्रागार को सुरक्षित करने की पाकिस्तान की क्षमता सवालों के घेरे में आ गई है। पिछले साल अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने पाकिस्तान को ‘दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक’ करार दिया था क्योंकि उसके पास ‘बिना किसी सुरक्षा के परमाणु हथियार’ हैं।

इतनी चर्चा के बाद यह जानना जरूरी हो जाता है कि पाकिस्तान का परमाणु शस्त्रागार वास्तव में कैसा दिखता है? स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की 2022 की एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के पास करीब 100 से 120 परमाणु हथियार हैं जिन्हें विमान और जमीन से मार करने वाली मिसाइलों से दागा जा सकता है।

वहीं भारत के पास 90 से 110 परमाणु हथियार है। इंटरनेशनल पीस रिपोर्ट के लिए एक कार्नेगी एंडोमेंट ने रिपोर्ट किया है कि अनुमान है कि पाकिस्तान 2025 में दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी परमाणु हथियार शक्ति बन जाएगा। तब उससे आगे सिर्फ अमेरिका और रूस होंगे।

पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की कीमत गरीब अवाम भूखे रहकर चुका रही है। देश की मुद्रा अपने सबसे निचले स्तर पर है। पेट्रोल और डीजल की कीमतें 300 रुपए प्रति लीटर के आंकड़े को छूने वाली हैं। अस्पतालों से मरीजों को बिना इलाज की लौटना पड़ रहा है क्योंकि जरूरी दवाइयों और मेडिकल सप्लाई खत्म हो चुकी है।

बाजार में अनाज, सब्जी और फल आम आदमी के लिए सपना बनते जा रहे हैं। हालात कितने खराब हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मुल्क में आटे का अकाल पड़ा हुआ है। सिंध में सब्सिडी वाला आटा हासिल करने के लिए ऐसी भगदड़ मची कि एक व्यक्ति की मौत हो गई।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *