कानपुर: कड़ाके की ठंड और प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर क्रानिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के मरीजों को लंग्स (फेफड़ा) अटैक पड़ता था, लेकिन अब गर्मी में भी सीओपीडी के मरीजों को लंग्स अटैक पड़ रहा है।
जीएसवीएम मेडिकल कालेज के रेस्पेरेटरी मेडिसिन विभाग में मौसम के हिसाब से बीमारियों के प्रकार में बदलाव पर हुए शोध में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ती गर्मी के साथ वातावरण में प्रदूषण का स्तर बढ़ना और गर्मी में वाहनों के धुएं से उत्सर्जित होने वाली ओजोन गैस समस्या बढ़ा रही है।
जीएसवीएम मेडिकल कालेज के मुरारी लाल चेस्ट अस्पताल में सांस और फेफड़े से संबंधित बीमारियों से पीड़ित गंभीर मरीज इलाज के लिए 10-12 जिलों से आते हैं। यह कई जिलों का एमडीआर और एक्सडीआर टीबी के इलाज का नोडल सेंटर भी है,
इसलिए सांस और फेफड़े से जुड़ी बीमारियों के साथ टीबी के मरीज भी आते हैं। मेडिकल कालेज के रेस्पेरेटरी मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर डा. सुधीर चौधरी ने मौसम में बदलाव से बीमारियों की समयावधि बदलने पर अध्ययन किया।
रिसर्च के पहले चरण में ओपीडी व इमरजेंसी के मरीज को लिया गया। उसमें आए नतीजे पर मंथन के लिए उसको इंडियन चेस्ट सोसाइटी के मंच पर रखा जाएगा। हालांकि प्रोफेसर चौधरी मेडिकल कालेज से सेवानिवृत्त हो चुके हैं लेकिन वह दूसरे चरण के रिसर्च की योजना तैयार कर रहे हैं।
ओपीडी में जुलाई 2018 से जून 2019 तक आए 1127 मरीजों की केस हिस्ट्री ली गई, जिसमें में 47 प्रतिशत सीओपीडी, 12.5 प्रतिशत वायरल संक्रमण, 12 प्रतिशत दमा, फेफड़े की झिल्ली में पानी भरने के 11 प्रतिशत, निमोनिया के पांच प्रतिशत, लंग्स कैंसर के चार प्रतिशत, ब्रांकिथेसिस (सांस नली डैमेज होने से बलगम भरना) के 3.5 प्रतिशत, आइएलडी के 2.5 प्रतिशत रहे।
अप्रैल में सर्वाधिक 60 फीसद सीओपीडी के गंभीर मरीज लंग्स अटैक के साथ आए, जबकि सबसे कम मरीज मार्च में 32.5 फीसद आए। पहले सीओपीडी के गंभीर मरीज दिसंबर से जनवरी के बीच आते थे,उसकी वजह होती थी वातावरण में बढ़ा प्रदूषण। वायरल इंफेक्शन के मरीज मार्च में सर्वाधिक 26 फीसद और सबसे कम अक्टूबर में आए। वहीं दमा के सर्वाधिक मरीज दिसंबर में 23 फीसद और सबसे कम जुलाई में आए।
जयपुर के अस्थमा भवन के अध्यक्ष डा. वीरेंद्र सिंह, एसएमएस मेडिकल कॉलेज, जयपुर के रेसपेरेटरी मेडिसिन के विभागाध्यक्ष प्रो. भारत भूषण शर्मा एवं जीएसवीएम के रेसपेरेटरी मेडिसिन विभागाध्यक्ष डा. आनंद कुमार। रिसर्च डाटा का एनलिसिस डा. अजय भगोलीवाल ने किया।
-मौसम के हिसाब से बीमारियों की समयावधि बदलना गंभीर संकेत है। अध्ययन पर राष्ट्रीय स्तर पर विशेषज्ञों के साथ मंथन चल रहा है। शोध का दूसरा चरण कोविड की वजह से अब तक शुरू नहीं हो सका है। उसको जल्द शुरू किया जाएगा।