दुनिया में खत्‍म हो जाएगा डॉलर का दबदबा !

जोहान्‍सबर्ग: पिछले करीब 80 सालों से अमेरिका का डॉलर दुनिया की सभी मुद्राओं पर हावी रहा है। लेकिन वैश्विक शासन और फाइनेंस मैनेजमेंट पर पश्चिमी देशों के दबदबे से अब विकासशील देश थक चुके हैं। विशेषज्ञों की मानें तो इन देशों का समूह अब डॉलर के वर्चस्‍व को खत्‍म करने में लगा है। उनका कहना है कि ब्रिक्‍स, डॉलर का खत्‍म करने का एक जरिया हो सकता है।

रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन के संबोधन से भी कुछ ऐसा ही लगता है। पुतिन ने जोहान्सबर्ग में ब्रिक्स सम्मेलन को वीडियो कॉन्‍फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित किया। उन्‍होंने कहा कि जहां ब्राजील, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के नेता इकट्ठा हुए हैं वहां पर डी-डॉलराइजेशन की प्रक्रिया ‘अपरिवर्तनीय’ और इसमें तेजी आ रही है।

इस साल की शुरुआत में, ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला दा सिल्वा ने सवाल किया था कि सभी देशों को डॉलर पर अपना व्यापार क्यों आधारित करना पड़ता है? उनसे पहले एक टॉप रूसी अधिकारी ने भी कहा था कि ब्रिक्स समूह अपनी मुद्रा बनाने पर काम कर रहा था। डॉलर के वर्चस्‍व को खत्‍म करने की बदलाव की अपील नई नहीं है औरर न ही यह ब्रिक्स में पहली बार है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि हालिया भू-राजनीतिक बदलाव के अलावा पश्चिम देशों के साथ रूस और चीन के बीच बढ़ते तनाव ने इसे सामने ला दिया है।

साल 2022 की शुरुआत में जब यूक्रेन पर हमला हुआ तो कई तरह के पश्चिमी प्रतिबंधों की वजह से रूस का करीब आधा विदेशी मुद्रा भंडार को फ्रीज हो गया। प्रमुख रूसी बैंकों को भी इसकी मार झेलनी पड़ी और उन्‍हें स्विफ्ट से हटा दिया गया। यह एक मैसेजिंग नेटवर्क है जिसे बैंक अंतरराष्‍ट्रीय पेमेंट की सुविधा के लिए उपयोग करते हैं। उसी साल अमेरिका ने चीन को सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया।

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की सीनियर फेलो शर्ली जी यू कहती है कि जैसे-जैसे अमेरिका, रूसी और ईरान प्रतिबंधों में डॉलर को हथियार बना रहा है, बाकी विकासशील देशों में व्यापार, निवेश और भंडार के लिए वैकल्पिक मुद्राओं की तलाश करने के साथ-साथ स्विफ्ट का विकल्‍प विकसित करने की इच्छा बढ़ रही है।

प्रिटोरिया विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर एडवांसमेंट ऑफ स्कॉलरशिप के प्रोफेसर डैनी ब्रैडलो ने संभावित मुद्रा विकल्पों के बारे में बताया। उन्‍होंने कहा कि इस बात में संदेह है कि बहुत से लोग सोने के स्‍टैंडर्ड पर वापस जाना चाहेंगे। साथ ही क्रिप्टोकरेंसी एक असंभावित विकल्प है क्योंकि वे जोखिम से भरे हैं। हालांकि अलग ब्रिक्स मुद्रा पर भी विशेषज्ञ सशंकित हैं।

यू ने कहा कि ब्रिक्स मुद्रा बनाने के लिए संस्थानों के एक समूह की जरूरत होगी।। संस्थागत निर्माण के लिए एक स्‍टैंडर्ड मानना पड़ता है और आधारभूत मूल्यों की भी जरूरत होती है। इन्हें हासिल करना बहुत कठिन है, हालांकि असंभव नहीं है। रूस और यूरेशिया पर ध्यान केंद्रित करने वाली स्‍ट्रैटेजिक फर्म मैक्रो-एडवाइजरी के निवेश विश्लेषक क्रिस वीफर ने ब्रिक्स मुद्रा के विचार को ‘गैर-स्टार्टर’ बताया है। वीफर ने कहा कि विभिन्न सरकारों के लोग भी जानते हैं कि ऐसा नहीं होने वाला है, या बहुत लंबे समय तक नहीं होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *