अज्ञात झरने में छुपा है जोशीमठ के धंसने का रहस्य

जोशीमठ। शहर के सबसे निचले हिस्से में बसी जेपी कालोनी में फूटे झरने में शहर के घरों की दीवारों के दरकने, जमीन फटने और सड़कों के धंसने का रहस्य छुपा है।

ये जमीन के नीचे जमा पानी है जो शहर में बने घरों, होटलों, भवनों की बुनियाद को खोखला कर रहा है। हैरत की बात यह है कि तबाही के मुहाने पर सीढ़ीदार ढंग से बसे इस शहर में आज तक कोई सरकार ड्रेनेज सिस्टम का इंतजाम नहीं कर पाई।

बरसात का कुछ पानी ढलान पर बसे इस शहर में ऊपर से नीचे उतरता हुआ नीचे बह रही अलकनंदा नदी में मिल जाता है बाकी पानी शहर की उस धरती में रिसता रहता है जो ग्लेशियर से बहाकर लाए गए लूज वोल्डर और मिट्टी के मलबे से बनी है।

आधुनिक टाउनशिप के रूप में बसी जेपी कालोनी में जब सब लोग गहरी नींद में सो रहे थे तब 2/3 जनवरी की रात अचानक एक झरना फूट पड़ा।

झरने का मटमैला पानी दिन रात लगातार बह रहा है। विशेषज्ञों की टीम हैरत में है कि इतनी तेज बहाव से झरना आखिर कहां से प्रकट हो गया? सैकड़ों गैलन बहता हुआ मटमैला पानी आखिर कहां से आ रहा है?

ये पानी, किसी चौबीस घंटे चलने वाले ट्यूबवेल जैसा है जो पिछले करीब पांच दिन से लगातार जेपी कालोनी की दीवार तोड़ते हुए बदरीनाथ हाईवे के नीचे से खेत खलिहान पार करते हुए आगे अलकनंदा नदी तक बह रहा है।

उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) के भूवैज्ञानिक डॉ. पीयूष रौतेला इस अज्ञात झरने को ईश्वरीय वरदान मानते हैं। वे कहते हैं कि ये किस्मत की बात है कि जमीन के नीचे बह रहे पानी को निकलने का एक रास्ता मिल गया।

वर्ना ये पानी जोशीमठ में जमीन के नीचे रिसता रहता। पानी का ये सोता कालोनी के ऊपरी हिस्से में एक पहाड़ी दर्रे से आ रहा है। लेकिन वैज्ञानिकों को इस पानी का मूल स्रोत नहीं मिला क्योंकि वह जमीन के नीचे कहीं हैं। कालोनी के ऊपर कोई पहाड़ नहीं है जहां ग्लेशियर से पिघलकर पानी आ रहा हो।

कालोनी के ऊपर फिर मानवीय बस्ती है। यानी ये पानी पथरीली जमीन में ही कहीं से रिस रहा है। अब तक कोई एक दर्जन भू वैज्ञानिक यहां आ चुके हैं। लेकिन कोई भी इस झरने के फूटने की गुत्थी सुलझा नहीं सका है।

जोशीमठ बचाओ समिति के अतुल सती का कहना है कि ये पानी एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगाड़ जलविद्युत परियोजना की किसी टनल का हो सकता है। लेकिन एनटीपीसी इस आरोप को खारिज कर चुका है। एनटीपीसी का कहना है कि उनकी सुरंग जोशीमठ के किसी भी निकटतम स्थान से एक किमी से अधिक दूर और शहर के नीचे की तरफ है।

पानी नीचे से ऊपर नहीं जाता। वैज्ञानिक कहते हैं जमीन के भीतर रिसता हुआ ये पानी किसी अदृश्य भूगर्भीय प्राकृतिक नाले में जमा हुआ और कालोनी के एक कोने में फूट पड़ा। जेपी कालोनी व्यवस्थति ढंग से बसी टाउनशिप है। कालोनी में बरसाती पानी निकलने के लिए एक चैनल बना रखा है।

ये चैनल इन दिनों सूखा था। जैसे ही ये सोता फूटा जेपी के इंजीनियरों ने इस बहते मटमैले पानी को तत्काल अपनी पक्की नालियों से जोड़ दिया। अब ये पानी व्यवस्थित रूप से नीचे बह कर नदी की तरफ निकल रहा है।

डा. रौतेला कहते हैं, पानी को बाहर निकलने का अच्छा रास्ता मिल गया। पिछले चार दिन में हजारों गैलन पानी की सुरक्षित निकासी हो चुकी है। अगर ऐसा न होता तो ये पानी जमीन की सतह पर रिस कर मकानों की बुनियादों को खोखला कर सकता था।

इतना पानी जमीन के अंदर कहां से आ रह है जबकि बरसात का मौसम भी नहीं है? डॉ. रौतेला कहते हैं ये अभी जांच का विषय है। क्या ये किसी परियोजना की टनल का लीकेज है? इसका जवाब भी डॉ. रौतेला के पास अभी तक नहीं है। वे कहते हैं कि ये सब वैज्ञानिक जांच से ही साफ होग। इसमें अभी वक्त लगेगा।

इस झरने का स्रोत देखने के लिए हमारी टीम जब कालोनी के ऊपरी हिस्से में गई तो वहां एक पहाड़ी दर्रे से ये पानी निकलता दिखा। लेकिन दिलचस्प बात ये है कि पहाड़ी झरने का पानी आम तौर पर साफ होता है। लेकिन इस झरने का पानी मटमैला और ढेर सारी मिट्टी लिए हुए है।

ऐसा रंग आमतौर पर जमीन से बोरिंग के तुरंत बाद निकले पानी का होता है। लेकिन कुछ देर मटमैला पानी निकलने के बाद इतना साफ होता है कि उसे पीया जा सकता है। लेकिन यहां तो चौबीस घंटे लगातार गंदा पानी ही निकल रहा है।

जोशीमठ बचाओ समिति के लोगों का कहना है कि ये पानी एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगाड़ जलविद्युत परियोजना की किसी टनल का हो सकता है। जबकि एनटीपीसी का साफ कहना है कि इस इलाके में दूर दूर तक उनकी कोई टनल नहीं है। फिर ये पानी कहां का है ये एक बड़ा सवाल है।

एक भू वैज्ञानिक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ये शहर के नीचे एकत्र लूज बोल्डर और मिट्टी में जमा पानी है इसीलिए इतना मटमैला है। ये वो पानी है जो शहर में ड्रेनेज सिस्टम न होने के कारण बाहर नहीं निकल पाया, लेकिन इस बहाव ने कालोनी में अपनी निकासी का रास्ता ढूंढ लिया।

जेपी कालोनी टाउनशिप प्लान के तहत बसी है लेकिन ऊपर जोशीमठ शहर में ड्रेनेज का का कोई इंतजाम नहीं। यही वजह है कि पानी बह कर नीचे नदी की तरफ निकल जाने के बाजाय जमीन में एकत्र हो रहा है।

आपदा प्रबंध सचिव रंजीत सिन्हा ने इसके लिए स्थानीय प्राधिकरणों के इंजीनियरों को कड़ी फटकार भी लगाई। उन्होंने कहा कि ड्रेनेज सिस्टम के पैसे के लिए वे केन्द्र सरकार का इंतजार न करें। आपदा प्रबंधन इसके लिए अलग से बजट देगा। बस जल्दी इस पर काम शुरू किया जाए।

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