देहरादून। आपदाग्रस्त क्षेत्र में फिर आपदा की आहट की ओर इशारा कर रही है। यह हम नहीं कह रहे हैं। तपोवन घाटी में आयी आपदा के बाद आपदा पर अध्ययन करने वाली कई टीमों के अध्ययन के बाद भू-वैज्ञानिकों ने फिर आपदा की आहट का इसारा किया है। वाडिया संस्थान के निदेशक डॉ. कालाचांद के मुताबिक जो झील दिखी है, वह ध्वस्त हो चुकी ऋषिगंगा परियोजना से करीब छह किमी ऊपर है। रैणी गांव से भी यह झील ऊपर है। झील की जानकारी राज्य व केंद्र सरकार को दे दी गई है।
आपको बता दें कि रैंथी पर्वतीय के हैंगिंग ग्लेशियर के टूटने से ऋषिगंगा नदी पर एक झील बन गई थी। जब यह झील टूटी तो निचले क्षेत्रों में बड़ी तबाही का कारण बनी। अब इसी ऋषिगंगा नदी पर एक और झील बनती दिख रही है। इस बात की पुष्टि वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के विज्ञानियों ने हेलीकॉप्टर से किए सर्वे (एरियल सर्वे) के बाद की। हालांकि, अधिक ऊंचाई से लिए गए चित्रों के चलते यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा कि झील का वास्तविक आकार कितना है।
वाडिया संस्थान के निदेशक डॉ. कालाचांद साईं के मुताबिक, झील का आकार करीब 10 से 20 मीटर दिख रहा है। झील अभी बन रही है या पहले से बनी है, इसका पता नहीं चल पाया है। यदि झील का निर्माण अभी हुआ है तो इसका आकार बढ़ सकता है, या यह जल्द टूट भी सकती है।
बहुत संभव है कि हैंगिंग ग्लेशियर टूटने के साथ जो मलबा आया था, वह कुछ बीच में ही रह गया हो। उससे भी झील का निर्माण संभव है। हालांकि, इस तरह का मलबा कच्चा हो सकता है और कभी भी नदी का बहाव सामान्य हो सकता है। एरियल चित्रों के मुताबिक, झील में अधिक पानी जमा नहीं है और अभी डरने जैसी कोई बात नहीं है। रिमोट सेंसिंग के जरिये भी झील के आकार पर नजर रखी जाएगी।
आपदाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा करने के बाद वाडिया संस्थान की एक टीम दून लौट आई है, जबकि एक टीम वहीं मौजूद है। वापस लौटी इस टीम में डॉ. समीर के तिवारी, डॉ. अमित कुमार व डॉ. अक्षय वर्मा शामिल हैं। इस टीम ने वापसी के दौरान विभिन्न क्षेत्रों से नदी के पानी के सैंपल भी लिए।
सैंपलिंग हरिद्वार तक की गई। ताकि अध्ययन के माध्यम से यह देखा जा सके कि इसमें गाद आदि की स्थिति क्या रही। इसी तरह संस्थान के पास निचले क्षेत्रों में गादयुक्त पानी पहुंचने से पहले के सैंपल भी हैं। दोनों में आए अंतर का भी पता लगाया जाएगा।