नदी में समाती चली गई ट्रेन, 800 यात्रियों की हुई मौत !

उदय दिनमान डेस्कः एक रेल दुर्घटना ऐसी भी है, जिसे देश की सबसे बड़ी और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी ट्रेन दुर्घटना करार दिया गया था. इस हादसे में पूरी की पूरी ट्रेन 800 से ज्‍यादा यात्रियों के साथ नदी में समा गई थी. बाद में भी गोताखोर सिर्फ 286 शवों को ही ढूंढ पाए थे.

भारतीय रेलवे के इतिहास में कई बड़ी दुर्घटनाएं भी दर्ज हैं. लेकिन, 43 साल पहले हुए एक भीषण ट्रेन एक्‍सीडेंट को भारतीय रेलवे के इतिहास में देश की सबसे बड़ी और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दुर्घटना करार दिया गया था. ये रेल हादसा बिहार में हुआ था.

खचाखच भरी इस ट्रेन में 800 से ज्‍यादा लोग सवार थे. दुर्घटना में सभी की मौत हो गई थी. इस रेल हादसे ने देश ही नहीं पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया था. जानते हैं कि ये हादसा कब हुआ और किस ट्रेन के साथ हुआ था? साथ ही जानते हैं कि इतना बड़ा ट्रेन हादसा आखिर हुआ कैसे था?

हादसे का शिकार हुई पैसेंजर ट्रेन 416-डीएन 6 जून 1981 की शाम बिहार के मानसी से सहरसा जा रही थी. बता दें कि उस समय खगड़िया से सहरसा जाने वाली ये अकेली ट्रेन थी. लिहाजा, ट्रेन के अंदर ही नहीं, ऊपर और खिड़की, दरवाजों पर भी यात्री लदे हुए थे.

यहां तक कि इंजन के आगे-पीछे भी यात्री बैठे हुए थे. जब ट्रेन बदला स्‍टेशन से सहरसा की ओर बढ़ी, तभी तेज आंधी के साथ जोरदार बारिश शुरू हो गई. रास्‍ते में बागमती नदी पड़ती है. ट्रेन को बागमती नदी पर बने पुल नंबर 51 से गुजरना था.

जबरदस्त बारिश के कारण पटरियों पर फिसलन थी. कुछ ही देर में बागमती नदी भी लबालब भर गई थी. हिम्‍मत जुटाकर ड्राइवर ने ट्रेन को पुल पर चढ़ा दिया. पुल पर चढ़ने के कुछ ही देर बाद ड्राइवर को इमरजेंसी ब्रेक लगाने पड़े. ब्रेक इतने जोरदार लगे कि ट्रेन की 9 में से 7 बोगियां पुल को तोड़ते हुए नदी में समाती चली गईं.

हर-तरफ चीख पुकार मचने लगी. नदी में डूबते-उतराते यात्री मदद के लिए चीखने लगे. लेकिन, उनकी चीख सुनकर उनको बचाने वाला वहां कोई नहीं था. सब अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे.

लगातार हो रही भीषण बारिश ने हालात बद से बदतर कर दिए. राहत व बचाव कार्य शुरू होने में कई घंटे की देरी हो गई. जब तक बचाव अभियान शुरू हुआ, तब तक सबकुछ खत्म हो गया था. सरकारी आंकड़े कहते हैं कि इस हादसे में 300 लोगों की मौत हुई थी.

वहीं, स्थानीय लोगों ने बाद में बताया कि मरने वालों की संख्या कम से कम 800 थी. रेलवे रिकॉर्ड के मुताबिक, ट्रेन में 500 यात्री थे. हालांकि, बाद में दो रेलवे अधिकारियों ने स्‍वीकार किया कि ट्रेन में सवार यात्रियों की संख्या कहीं ज्‍यादा थी.

भीषण बारिश थमने के बाद भी नदी में डूबे लोगों के शव निकालने में कई हफ्ते लग गए थे. यही नहीं, गोताखोर केवल 286 लोगों के शव ही ढूंढने में सफल हो पाए थे. सैकड़ों यात्रियों का कभी पता ही नहीं चल सका. अब सवाल ये उठता है कि इतना बड़ा ट्रेन हादसा हुआ कैसे? इसको लेकर कई थ्योरी आई थीं.

एक थ्‍योरी के मुताबिक, ट्रैक पर गाय-भैसों का झुंड आने की वजह से ड्राइवर को इमरजेंसी ब्रेक लगाने पड़े और ट्रेन पटरियों से फिसलकर नदी में गिर गई. इसके बाद लबालब भरी नदी में ट्रेन समाती चली गई. वहीं, कुछ थ्‍योरीज में कहा गया कि आंधी और बारिश के कारण लोगों ने सभी खिड़की-दरवाजे बंद कर दिए थे.

इससे तेज तूफान आया तो ट्रेन पर दबाव पड़ा और बोगियां पुल तोड़कर नदी में गिर गईं.भारत में गायब हुई ट्रेन, ढूंढते रहे चीन-रूस और अमेरिका, 43 साल बाद मिली.अरुणाचल पर अमेरिका ने निकाली चीन की हेकड़ी, कहा- LAC पार किया तो…

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