उत्‍तराखंड के जनजाति क्षेत्र में दिवाली का जश्‍न

चकराता : जौनसार में देश की दीपावाली से एक माह बाद बूढ़ी दीपावली मनाने की परंपरा वर्षों से है। जिसके पीछे तर्क है कि जौनसार बावर में लोगों को श्रीराम के वनवास से लौटने की सूचना एक माह बाद मिली थी। इसलिए क्षेत्र के लोग एक माह बाद दीपावली मनाते हैं।

यहां पर ईको फ्रेंडली दीपावली होती है, पटाखे जलाकर प्रदूषण नहीं किया जाता, यहां सिर्फ भीमल की लकड़ी की मशाल जलाई जाती है, जिसके बाद जश्न शुरू हो जाता है। हालांकि बावर व जौनसार के कुछ गांवों में इस बार देश के साथ दीपावली मनाई गई थी।

छुट्टी होने की वजह से नौकरीपेशा परिवार भी अपने पैतृक गांवों को लौटे थे, लेकिन जौनसार के अधिक गांवों में आज भी बूढ़ी दीपावली मनाने की परंपरा बरकरार है। दीपावली के विशेष व्यंजन चिउड़ा मूड़ी हर घर में बनाए गए हैं। घरों को रंगाई पुताई कर सजाया जा चुका है।

बूढ़ी दीपावली में मेहमान नवाजी का भी रिवाज है। बूढ़ी दिपावली पर विवाहित बेटियों के अपने मायके आने की परंपरा भी है। पर्व पर पंचायती आंगनों में लोक संस्कृति की छटा भी बिखरती है। क्षेत्र में बूढ़ी दीपावली 22 से 26 नवंबर तक मनाई जाएगी।

बूढ़ी दीपावली के चलते साहिया, कालसी व चकराता के बाजारों में भी रौनक है। ग्रामीण गर्म कपड़ों की खरीदारी करते नजर आ रहे हैं। मिंडाल गांव निवासी सुनीता देवी, अमिता देवी, नागो देवी, आकांक्षा नेगी, अमीषा नेगी, अंजलि, मोनिका जोशी, राधिका, स्वाति, दीक्षा आदि का कहना है कि बूढ़ी दीपावली का जश्न मंगलवार से शुरू हो जाएगा।

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