लखनऊ: इसे आप क्या कहेंगे लापरवाही, राजनीति या फिर कुछ ओर…। हमारे भाग्यविधाताओं ने अपने चक्कर में दो हजार परिवार तबाह कर दिए और हम अभी भी चुपचाप है। कोरोना से सिस्टम तो हार गया लेकिन हम नहीं हारेंगे। या फिर यह कहे कि हम तो बेमौत मरते रहेंगे। ताजा मामला उप्र का है यहां पंचायत चुनाव में डयूटी करने वाले 2000 कर्मचारियों को कोरोना ने लील लिया। गलती किसकी है उन कर्मचारियों की या फिर प्रदेश सरकार की। चलिए जानते हैं पूरा मामला।
उत्तर प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर के बीच हुए पंचायत चुनाव सरकारी कर्मचारियों की जान पर भारी पड़ गए। कई परिवारों से उनका सहारा छिन गया। किसी बच्चे से मां का आंचल तो किसी से पिता का साया छिन गया। इन चुनावों में संक्रमित हुए 2 हजार से ज्यादा सरकारी कर्मचारियों की जान चली गई।
आंकड़ों को देखें तो कोरोना से 706 शिक्षकों की मौत तो मतगणना से पहले ही हो चुकी थी। मतगणना के बाद यह संख्या एक हजार के पार जाने की आशंका है। इसकी पुष्टि उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ और प्रदेश का बेसिक शिक्षा विभाग भी कर रहा है।
उत्तर प्रदेशीय माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिनेश चन्द्र शर्मा ने पिछले दिनों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखे पत्र में मृतकों का जिक्र किया है। उन्होंने करीब 10 पन्नों की चिट्ठी के साथ 706 शिक्षकों की सूची भी जारी की है। इसमें जिलेवार मौतें और नाम दर्ज हैं। हालांकि पिछले एक हफ्ते में मृतकों की संख्या काफी बढ़ गई है। अब प्रदेश के सभी संगठन ऐसे कर्मचारियों के परिवारों को 50 लाख रुपए का मुआवजा दिलाने की मांग करने लगे हैं।
कोरोना संक्रमण में सरकारी कर्मचारियों की मौतें होने से अब दूसरे कर्मचारी भी दहशत में हैं। सचिवालय के कई कर्मचारियों ने दफ्तर आना बंद कर दिया है। नगर निगम के कई कर्मचारी भी ऑफिस नहीं आ रहे।