भूकंप से हिला उत्तर भारत

नई दिल्ली। दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर भारत के कई हिस्सों में मंगलवार रात काफी देर तक भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। मंगलवार रात करीब 10:20 पर आए भूकंप की वजह से इमारतें हिलने लगीं और डर के मारे लोग घरों और कार्यालयों से बाहर निकल आए। भूकंप का केंद्र अफगानिस्तान में हिंदू कुश क्षेत्र रहा।

जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंसेज के अनुसार, भूकंप 184 किमी (114 मील) की गहराई पर आया। यहां रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता 6.6 दर्ज की गई। भूकंप के झटके भारत के अलावा तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, उजबेकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान और किर्गिस्तान में भी महसूस किए गए।

भारत में दिल्ली-एनसीआर के अलावा हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड में भी भूकंप के तेज झटके लगे। अहसास होते ही लोग घरों से बाहर निकल आए। भूकंप के अन्य झटकों की आशंका के चलते काफी लोग देर रात तक घरों के बाहर खुले में ही डटे रहे।

दिल्ली फायर सर्विस के डायरेक्टर अतुल गर्ग ने बताया कि उन्हें फोन पर सूचना मिली कि शकरपुर में एक इमारत झुक गई है। जब वो उस जगह पर पहुंचे तो कोई इमारत झुकी हुई नहीं मिली। शुरुआती कॉल कुछ पड़ोसियों ने की थी। बिल्डिंग में रहने वालों को कॉल की जानकारी नहीं थी।

दिल्ली की एक महिला ने बताया, “मैं सोफे पर बैठी थी और अपने बेटे से बात कर रही थी जब वह हिलने लगा। मैंने शोर मचाया। सभी लोग बाहर निकले, बहुत तेज झटके महसूस किए गए।” एक अन्य महिला ने कहा, “मैं अपना बिस्तर लगा रही थी जब मेरे पति ने शोर मचाया और मुझे बाहर निकलने के लिए कहा। सभी लोग बाहर जमा हो गए।”

नोएडा के सेक्टर-92 के रजत विहार के सी ब्लॉक स्थित आरडब्ल्यू के अध्यक्ष राजीव शर्मा ने बताया कि हम सब लोग दहशत में थे और इस भूकंप की आशंका से अपने बच्चों और पालतू जानवरों (कुत्तों) के साथ अपने फ्लैटों से बाहर निकल आए। मैंने 30 सेकंड से अधिक समय तक भूकंप के झटके महसूस किए, पंखा हिल रहा था।

मुझे लगता है, प्रशासन को ‘भूकंप की स्थिति का सामना कैसे करें’ के लिए अभ्यास की व्यवस्था करनी चाहिए क्योंकि हमें नहीं पता कि भूकंप के कारण कोई बुरी स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो कैसे निपटें? और, यह अभी जरूरी है क्‍योंकि ये भूकंप बार-बार आते हैं। मैं नोएडा प्रशासन और प्राधिकरण से सभी सेक्टरों में कवायद की व्यवस्था करने की अपील करता हूं।

अमेरिकी भू-विज्ञानी चार्ल्‍स एफ रिक्‍टर ने सन 1935 में एक ऐसे उपकरण का इजाद किया, जो पृथ्‍वी की सतह पर उठने वाली भूकंपीय तरंगों के वेग को माप सकता था। इस उपकरण के जरिए भूकंपीय तरंगों को आंकड़ों में परिवर्तित किया जा सकता है।

रिक्‍टर स्‍केल आमतौर पर लॉगरिथम के अनुसार कार्य करता है। इसके अनुसार एक संपूर्ण अंक अपने मूल अर्थ के 10 गुना अर्थ में व्‍यक्‍त होता है। रिक्‍टर स्‍केल में 10 अधिकतम वेग को दर्शाता है।

धरती मुख्य तौर पर चार परतों से बनी हुई है, इनर कोर, आउटर कोर, मैनटल और क्रस्ट। क्रस्ट और ऊपरी मैन्टल को लिथोस्फेयर कहते हैं। ये 50 किलोमीटर की मोटी परत, वर्गों में बंटी हुई है, जिन्हें टैकटोनिक प्लेट्स कहा जाता है।

ये टैकटोनिक प्लेट्स अपनी जगह से हिलती रहती हैं लेकिन जब ये बहुत ज्यादा हिल जाती हैं, तो भूकंप आ जाता है। ये प्लेट्स क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर, दोनों ही तरह से अपनी जगह से हिल सकती हैं। इसके बाद वे अपनी जगह तलाशती हैं और ऐसे में एक प्लेट दूसरी के नीचे आ जाती है।

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