द्रोण तपस्थली में गुरु रामराय डेरा ‘देहरादून’

देहरादून : महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य ने यहाँ कठोर तप किया था। शहर से 8 कि०मी० उत्तर-पूरब में द्वारा गाँव ही गुरु द्रोणाचार्य की तपस्थली थी। द्रोण के नाम से ही इस घाटी को द्रोण या दून घाटी कहा जाने लगा। मान्यता है कि मुगल सम्राट औरंगजेब के समय सत्रहवीं सदी के अंत में उदासीन समुदाय के रामराय जी को अपने पिता के उत्तराधिकारी के रूप में गुरु की मान्यता नहीं मिली तो अपने समर्थकों के साथ वे दून में रहने लगे। गुरु रामराय के इस क्षेत्र में डेरा डालने से यहाँ का नाम डेरादून (देहरादून) पड़ा। इससे पूर्व इस स्थान का नाम पृथ्वीपुर था। गुरु रामराय की स्मृति में प्रतिवर्ष चैत्रपदी पंचमी (होली के पांचवें दिन) से 15 दिन का झंडा मेला लगता है। यहाँ गुरु रामराय का झंडा व गुरुद्वारा भी है।
सन् 1871 से जिला मुख्यालय के रूप में देहरादून नगर रेल तथा सड़क मार्ग से भारत के प्रमुख शहरों से जुड़ा है। यहाँ के लिए दिल्ली से हवाई यात्रा की सुविधा उपलब्ध है। देहरादून अपने नैसर्गिक सौंदर्य एवं स्वास्थ्यवर्द्धक जलवायु के लिए विख्यात है। हिमालय की शिवालिक श्रेणी में स्थित इस शहर के चारों ओर शाल एवं शीशम के जंगलों ने हरियाली की छटा बिखेरी है। पूरब में गंगा व पश्चिम में यमुना नदी के बीच यह नगर 709 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। वर्तमान में 6 लाख से अधिक आबादी वाला यह नगर महानगर परिषद का दर्जा ले चुका है।
देहरादून में पल्टन बाजार, राजपुर रोड, चकराता रोड व लक्ष्मण चौक प्रमुख व्यापारिक केंद्र हैं। यहाँ पर स्थित प्रमुख शैक्षिक संस्थाओं ने इस शहर को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्रदान की है। चकराता रोड पर स्थित वन अनुसंधान शाला की सन् 1929 में निर्मित भव्य इमारत, वनस्पति विज्ञान संग्रहालय तथा ग्यारह सौै एकड़ क्षेत्र पर फैले अनेक प्रयोगात्मक वन प्रमुख रूप से दर्शनीय हैं।
सन् 1932 में स्थापित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी भारत की सेना के कमांडर प्रशिक्षण की प्रमुख संस्था है। इससे पूर्व सन् 1922 में इंडियन मिलिट्री कॉलेज की स्थापना हुई थी। यह संस्था सैन्य अधिकारियों को प्रशिक्षित कर राष्ट्र की सेवा में महत्वपूर्ण योगदान देती रही है। सर्वे ऑफ इंडिया का मुख्यालय भी देहरादून में है। हाथीबड़कला तथा रायपुर रोड पर इसके सर्वे केंद्र हैं।
इस संस्थान में देश के मानचित्रों की टोपोसीट व सैंसेस तैयार की जाती हैं। इसके अलावा सन् 1956 में स्थापित तेल एवं प्राकृतिक गैस का निदेशालय, भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, राष्ट्रीय दृष्टिबाधितार्थ संस्थान, आर्डिनेंस फैक्ट्री आदि राष्ट्रीय स्तर के संस्थान देहरादून में स्थित हैं। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियालौजी, भारतीय दूर संवेदी संस्थान भी यहाँ हैं। अब यह नगर उत्तराखंड राज्य की अस्थायी राजधानी है।
आवासीय शिक्षण संस्था के रूप में सन् 1935 में स्थापित दून स्कूल देश की ख्याति प्राप्त शिक्षण संस्था है। इसके अलावा सन् 1854 में स्थापित सी०एन०आई० ब्यायज इंटर कॉलेज, जो देहरादून की शिक्षण संस्थाओं में सबसे पुराना है। फॉरेस्ट कॉलेज के रूप में सन् 1878 में स्थापित रेंजर्स कॉलेज, महादेवी कन्या पाठशाला जिसकी शुरूआत सन् 1902 में श्रीमती महादेवी वर्मा जी के द्वारा की गई थी। इसमें सन् 1914 में हाईस्कूल, 1938 में इंटर, 1958 में डिग्री कॉलेज तथा 1956 में पी०जी० की कक्षाएँ शुरू हुईं। इसी प्रकार सन् 1904 में एक मॉडल स्कूल के रूप में स्थापित डी०ए०वी, पी०जी० कॉलेज जो 1922 ई० में इंटरमीडिएट, 1946 में डिग्री ओर 1950 में स्नातकोत्तर महाविद्यालय बन गया।
प्राइवेट विद्यालयों में सन् 1966 में सेंंट थामस कॉलेज, सेंट जोसेफ एकेडमी (1934), कर्नल ब्राउन 1926, कैंब्रियन हॉल 1954, हिन्दू नेशनल इंटर कॉलेज 1920, साधूराम इंटर कॉलेज 1925, गुरुनानक इंटर कॉलेज 1936, गोरखा इंटर कॉलेज 1925, लड़कियों के लिए कन्या गुरुकुल महाविद्यालय 1923, महावीर जैन कन्या पाठशाला 1927, नारी शिल्प मंदिर इंटर कॉलेज 1930, रामप्यारी गर्ल्स इंटर कॉलेज 1944 ऐसी शिक्षण संस्थाएँ हैं जिन्होंने देहरादून को शिक्षा के क्षेत्र मेें गौरवशाली स्थान दिलाया है।
इनके अलावा सन् 1948 में महिलाओं के लिए खोला गया औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, सन् 1950 में ट्रैनिंग फार दि एडल्ट ब्लाइंड जो 1967 में नेशनल सेंटर फॉर दि ब्लाइंड बना, भी देहरादून की प्रमुख संस्थाओं में गिने जाते हैं। वर्तमान में यहाँ 13 केन्द्रीय विद्यालय तथा कई प्राइवेट विद्यालय संचालित हैं।
बासमती तथा लीची की महक व मिठास का गुणगान किए बिना देहरादून का वर्णन अधूरा है। माना जाता है कि मुगलों के शासनकाल सन् 1742 के आसपास अफगानिस्तान से लाकर यहाँ बोया गया बासमती धान का बीज संसार में अपनी महक बिखेर रहा है। लीची के संबंध में कहा जाता है कि 19वीं सदी के मध्य में चीन से लाकर यहाँ लगाई गई थी।
यहाँ की जलवायु इन फसलों के लिए अनुकूल होने से कालांतर में ये यहाँ की प्रमुख फसलें बन गईं। हालांकि कृषि भूमि पर आवासीय भवन बनने से इनका उत्पादन कम हो गया है।सन् 1975 में मेरठ मंडल से गढ़वाल मंडल में मिलाए गए देहरादून में कई ऐसे दर्शनीय स्थल हैं जिनकी नैसर्गिक छटा, धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते रहते हैं।
सैकड़ों धाराओं के कारण सहस्रधारा नाम से प्रसिद्ध यह स्थल देहरादून नगर से 14 कि०मी० की दूरी पर स्थित है। पहाड़ की गुफा से अविरल रूप में प्रवाहित कैल्शियम के पानी की इन धाराओं से जल की बूंदें आसपास की फूल-पत्तियों पर गिरकर उनके आवरण को पत्थर के सदृश बना देती है। यहीं पर गंधक के पानी का एक स्रोत भी है। चर्म रोगों में उपयोगी इस पानी में पर्यटक स्नान करते हैं। देहरादून से रोडवेज, प्राइवेट बसें व टैक्सी यहाँ आती रहती हैं। यहाँ ठहरने के लिए टूरिस्ट बंगला व होटल की पूर्ण सुविधा है।
देहरादून शहर से 6 कि०मी० दूर दक्षिण-पश्चिम में टपकेश्वर महादेव का शिवलिंग दर्शनीय है। यहाँ प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि को ऐतिहासिक मेला लगता है। यहाँ वर्ष भर पर्यटक आते रहते हैं। इस मंदिर की व्यवस्था पल्टन बाजार (देहरादून) स्थित जंगम शिवालय द्वारा की जाती है। यहाँ श्रावण मास में पूजा-अर्चना का विशेष महात्म्य माना जाता है। केदारखंड में वर्णित है कि द्रोणाचार्य ने इस स्थान पर शिव की उपासना की थी तथा धनुर्विद्या की शिक्षा व योग का वर शिव से मांगा था। शिव वृद्ध ब्राह्मण का वेष रखकर यहीं प्रकट हुए थे। शिव के प्रकट होने से टपकेश्वर महादेव तथा द्रोण की तपस्थली होने से दून (द्रोण) घाटी का नामकरण हुआ।
देहरादून क्षेत्र के अंतर्गत यहाँ से 10 कि०मी० दूर मालसी डियर पार्क, क्लेमेंटटाउन में बुद्धा टेंपल, 12 कि०मी० दूर ऋषिकेश रोड पर लक्ष्मण सिद्ध मंदिर, पश्चिम की ओर 50 कि०मी० दूर ऐतिहासिक महत्व के कालसी में अशोककालीन शिलाखंड (लाट) पर अभिलेख, 45 कि०मी० दूर डाक पत्थर विद्युत उत्पादन पावर हाउस, चकराता रोड पर 19 कि-मी- की दूरी पर पिकनिक स्थल भागीरथी रिजोर्ट्स को देखने भी पर्यटक जाते हैं।

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