नई दिल्ली। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक रिपोर्ट बताती है कि यमुना के मैदानों को भूकंप से ज्यादा खतरा है। पूर्वी दिल्ली, लुटियंस दिल्ली, सरिता विहार, पश्चिम विहार, वजीराबाद, करोलबाग और जनकपुरी जैसे इलाकों में बहुत आबादी रहती है, इसलिए वहां खतरा ज्यादा है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, छतरपुर, नारायणा, वसंत कुंज जैसे इलाके बड़ा भूकंप झेल सकते हैं।
इसके अलावा दिल्ली में जो नई इमारतें बनी हैं, वे 6 से 6.6 तीव्रता के भूकंप को झेल सकती हैं। पुरानी इमारतें 5 से 5.5 तीव्रता का भूकंप सह सकती हैं। इसका साफ मतलब है कि दो दिन पहले नेपाल में जिस तीव्रता की भूकंप हुई, उससे दिल्ली को काफी नुकसान हो सकता था।
साल 2008 और 2015 में नेपाल भूकंप के बाद दिल्ली की पुरानी इमारतों को ठीक करने की कवायद शुरू की थी। इसी के बाद दिल्ली सचिवालय, दिल्ली पुलिस मुख्यालय, विकास भवन, गुरु तेग बहादुर अस्पताल की इमारत को मजबूत भी किया गया था।
दिल्ली में करीब दो हजार अनधिकृत कालोनियां और बड़ी संख्या में लालडोरा क्षेत्र है। अकेले अनधिकृत कालोनियों में ही 40 लाख से भी अधिक की आबादी रहती है। बावजूद इसके यहां निर्माण कार्य के लिए कोई मानक तय नहीं हैं।
दिल्ली एनसीआर में सभी जगह यूं तो अवैध निर्माण और नियमों की अनदेखी कर किए जा रहे निर्माण कार्य को लेकर संबंधित ठेकेदार एवं बिल्डर के खिलाफ कार्रवाई के तमाम प्रविधान हैं। लेकिन वोट बैंक की राजनीति और भ्रष्टाचार के खेल में सब फाइलों तले दब जाते हैं। आंख तभी खुलती है जब कहीं हादसा हो जाता है। तब एफआइआर भी हो जाती है, ठेकेदार या बिल्डर गिरफ्तार भी हो जाता है व निर्माणाधीन बिन्डिंग सील भी हो जाती है।
दिल्ली में इमारतों को भूकंप रोधी और उनकी मजबूती सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली हाइकोर्ट के आदेश पर 2019 में एक एक्शन प्लान बना था। इसके तहत दो साल साल में सभी ऊंची इमारतों और अगले तीन वर्ष में सभी इमारतों की ढांचागत मजबूती सुनिश्चित करने को कहा गया था, लेकिन यह कार्य 10 प्रतिशत भी नहीं हुआ है। अर्पित भार्गव, अधिवक्ता एवं याचिकाकर्ता
पुराने निर्माणों की मजबूती के लिए रेट्रोफिटिंग का कंसेप्ट तैयार हो चुका है। ऐसे भवनों का स्ट्रक्चरल इंजीनियर से सर्वे कराकर उसकी मजबूती के प्रयास किए जा सकते हैं। नए मकानों में भूकंप रोधी तकनीक का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। धीरे धीरे ही सही, लेकिन लोगों में जागरूकता अब आ रही है।