सोशल मीडिया: मुसलमानों का मंडांण !

क्या यह है?
इन दिनों सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसके विषय में लोगों को बडी़ जिज्ञासा है। इसमें पहाड़ की जागर शैली के नृत्य में कुछ इस्लाम वेशधारी लोग नृत्य कर रहे हैं। यह नृत्य साधारण नहीं,देवता अवतरण वाला नृत्य यानी मंडांण है। कुछ लोगों का कहना है कि टिहरी के लंबगांव (भरपूर) में यह मंडांण आयोजित हो रहा है। बताया जाता है कि नृत्य करने वाले सभी हिंदू हैं । यह भी बताया जा रहा है कि यह पीर का नृत्य है।
जहाँ तक मुझे लगता है,यह नृत्य गढ़वाल में पीर या सैयद का है,क्योंकि मुगलकाल में कुछ मुस्लिम उत्तराखंड आए। यहाँ उनकी मृत्यु हुई और वे हमारे देवताओं की तरह मानव देह पर अवतरित होने लगे। उन्हें अनिष्टकारी माना जाता है,लेकिन यह भी मान्यता है कि मनुष्यों पर प्रसन्न होने पर वे कल्याण भी करते हैं। उनके जागरों में अभी भी वही मुगल संबंधी शब्दों ‘सलाम अलेकुम’ का इस्तेमाल होता है। हो सकता है लोगों ने अपने भय को समाप्त करने के लिए यह प्रथा आरंभ की हो या यहाँ सदियों से रह रहे मुसलमानों ने हमारी देवता अवतरण की संस्कृति अपना ली हो।एक मुल्लादीन पीर का जागर भी गढ़वाल में प्रचलित है। यह एक प्रकार की प्रेम गाथा है। मुल्लादीन का प्रेमसंबंध अमोली गांव की लक्षिमा से था,जो उसकी मृत्यु का कारण भी बना। घड्याळा पर उसका जागर गाया जाता है।आपको बता दें कि गढ़वाल में मुस्लिम वर्षों से रहते आ रहे हैं। उन्होंने यहाँ के अधिकांश रीति-रिवाज,भाषा,परंपराएं अंगीकार की हुई हैं।
पता चला है कि रुद्प्रयाग जिले के डांगी गांव में मुस्लिम परिवार कई पीढ़ियों से रहते हैं। ये देवताओं को भी पूजते और मण्डाण भी आयोजित करते हैं।इनकी भाषा ठेठ गढ़वाली है। एक संभावना यह है कि यह नृत्य डांगी गांव में हो रहा हो। चंबा के चुरेड़गांव और खासपट्टी क्षेत्र में मुसलमान लोग सदियों से रहते आ रहे हैं। ये लोग धर्म के प्रति बहुत कट्टर नहीं हैं और इनका व्यवहार सौहार्दपूर्ण होता है। मेरे मित्र वरिष्ठ पत्रकार गौरव मिश्रा ने गढ़वाली मुसलमानों पर शोध कर अनेक तथ्य उजागर किए हैं।यह भी पता चला है कि पौडी़ क्षेत्र में भी पठान का घड्याळा लगता है। पूजा के रूप में उसे पान-सिगरेट चढ़ाया जाता है। पीला वस्त्र और बर्छी उसके प्रतीक हैं।
वहीं, बालगंगा पीजी कॉलेज,सेंदुल में हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. दर्मियान सिंह भंडारी जी बताते हैं कि टिहरी गढ़वाल के जाख हिंदाव में पीर बाबा की मजार बनी हुई है। गांव के बीच वाले भाग मे यह मजार है। यद्यपि आवासीय मकानों से यह दूरी पर है, पर इस स्थान के ऊपर नीचे लगभग तीन ओर से आवासीय मकान हैं। कमरा बना है और कमरे के अंदर मजार है, बाहर जिला पंचायत टिहरी द्वारा बैठने के लिए लम्बा चौड़ा टीन शेड बनाया गया है। यहां भी पीर बाबा अन्य गढ़वाली देवी देवताओं की तरह अवतरित होते हैं। ढ़ोल दमाऊं पर पर नृत्य करते हैं,
पीर के साथ उनकी माँ भी अवतरित होती है और किसी स्त्री पर ही अवतरित होती है।यहां उल्लेखनीय यह है कि यह दोनों माँ बेटे ज़ब अवतरित होते हैं तब वह चिरान करने वाला आरा और कुल्हाड़ी की खोज करते हैं। पानी की खोज करते हैं,
चिरान करने की कल्पना करके आरे के साथ नृत्य करते हैं,पेड़ काटने की कल्पना के साथ नृत्य किया जाता है, लेकिन यह सब केवल साल भर मे एक बार ही किया जाता है अन्य दिनों सामान्य रूप से ही पीर अवतरित होते हैं।
ब हरहाल, इस वीडियो में देखने में ये पश्वा पारंपरिक प्रतीत होते हैं,क्योंकि गैरपहाडी़ कभी भी हमारी जागरशैली के संगीत पर इतना सधा नृत्य नहीं कर सकता है। ढोल की आवाज में वादक के शब्द दब गए हैं,इसलिए कुछ समझ में नहीं आ रहा। अभी इस संबंध में वैसे पूरी तरह कुछ कहना जल्दबाजी होगी।
इन पश्वाओं ने हाथ में कलावा,कडा़,गले में रुद्राक्ष की माला और माथे पर तिलक लगाया हुआ है,जो सनातन के प्रतीक हैं और कोई कट्टर मुसलमान ऐसी चीजों को धारण नहीं कर पाएगा। अतः माना जा सकता है कि यह परंपरा हिंदू-मुस्लिम की मिश्रित संस्कृति का हिस्सा है।
कुछ लोग इसे इस्लाम द्वारा पहाड़ के सनातन धर्म पर प्रहार बता रहे हैं, लेकिन ऐसा कहना अनुचित होगा, क्योंकि कोई मुसलमान हिंदुओं के प्रतीकों को अपना ही नहीं सकता। यदि वह ऐसा करता है तो वह अपने मजहब और जिंदगी दोनों को खतरे में डालेगा।
इसी वीडियो के एक भाग में कुछ महिलाएं भी इन मुस्लिम वेशधारी पश्वाओं के साथ पहाडी़ वेशभूषा में देवनृत्य कर रही हैं। मुस्लिम वेशधारी पश्वाओं के हाथों में चिमटे अथवा टिमरू दंड हैं,ये भी पहाड़ के जागर अनुष्ठान का हिस्सा हैं। इस्लाम में मूर्ति पूजा, देवता अवतरण (वह भी महिलाओं पर) के लिए स्थान ही नहीं,इसलिए यह हो ही नहीं सकता कि ये लोग विशुद्ध मैदानी मुसलमान हों और एक षड्यंत्र के तहत यहाँ आए हों।
अतः कहा जा सकता है कि यह दिवंगत आत्माओं की प्रसन्ना के लिए उन गढ़वाली मुसलमानों का मंडांण नृत्य है,जो पीढि़यों से यहाँ रह रहे हैं और यहीं के संस्कार-संस्कृति में रच-बस गए हैं। अथवा हिंदू लोग इस आयोजन को कर रहे हैं। इस वीडियो के आधार पर कहा जा सकता है कि इसमें सांप्रदायिक षड्यंत्र जैसी कोई बात नहीं है। इसे हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द्र नृत्य (मंडांण)भी कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
वहीं,टिहरी पुलिस ने चेतावनी जारी कर कहा कि कुछ लोग वीडियो के बारे में गलत प्रचार कर रहे हैं। सही तथ्य जानने के बाद ही इसे प्रसारित करें। बताया गया कि यह वीडियो हिमांशु कलूडा़ ने छह माह पहले यू-ट्यूब पर डाला था।
1 व्यक्ति, खड़े रहना और भोजन की फ़ोटो हो सकती है
डॉ.वीरेन्द्र बर्त्वाल,देहरादून जी की फेसबुक वाल से साभार

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