धारचूला में खुलेगा उत्तराखंड का पहला कीड़ा जड़ी ग्रोथ सेंटर

पिथौरागढ़ : प्रदेश का पहला कीड़ा जड़ी ग्रोथ सेंटर धारचूला के गलाती गांव में बनेगा, इसके लिए वन विभाग ने पहल शुरू कर दी है। अगले वर्ष से इस कारोबार में लगे लोगों को कीड़ा जड़ी के कारोबार में किसी तरह की दिक्कत नहीं आएगी।

पिथौरागढ़ जिले की सीमांत तहसील धारचूला और मुनस्यारी के उच्च हिमालयी के बुग्यालों में कीड़ा जड़ी तैयार होती है। कई वर्षों से स्थानीय लोग बुग्यालों से इसका संग्रह कर कारोबार करते हैं, लेकिन कीड़ा जड़ी के कारोबार के लिए अभी तक कोई स्पष्ट पालिसी नहीं बनी है। मुनस्यारी क्षेत्र में जहां वन पंचायतों के माध्यम से कीड़ा जड़ी-बूटी विदोहन की अनुमति दी जाती है, वहीं धारचूला में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। कई बार कीड़ा जड़ी ले जा रहे लोगों को तस्करी के आरोप में दबोच लिया जाता है।

सरकार ने अब इस कारोबार को वैधानिक रूप देने के लिए धारचूला के गलाती में पहला कीड़ा जड़ी ग्रोथ सेंटर बनाने का निर्णय लिया है। इसके लिए मुख्यमंत्री ने घोषणा कर दी है। जमीन का चयन हो चुका है। डीपीआर बनाने का काम चल रहा है। ग्रोथ सेंटर बनने के बाद इसका कारोबार करने वाले लोग ग्रोथ सेेंटर में अपना रजिस्ट्रेशन कराएंगे। अपना माल ग्रोथ सेंटर में लाएंगेे, जहां इसका प्रसंस्करण किया जाएगा। इसके बाद किसान इसे देश के किसी भी कोने में ले जाकर बेच सकेंगे। ग्रोथ सेंटर बनने से कीड़ा जड़ी के जरिए बड़ी संख्या में रोजगार सृजित होने की उम्मीद है।

 

पिथौरागढ़ के उपप्रभागीय वनाधिकारी नवीन पंत ने बताया कि धारचूला तहसील के गलाती गांव में ग्रोथ सेंटर स्वीकृत हो चुका है। डीपीआर बनाने की कार्रवाई की जा रही है। अगले वर्ष तक इसे अस्तित्व में लाने की कोशिश की जा रही है। सेंटर में प्रसंस्करण के लिए मशीनें लगाई जाएंगी। अभी तक कीड़ा जड़ी का दोहन एक तरफ से अवैध रहा है। इसका दोहन करने वालों को भी उचित मूल्य नहीं मिल रहा था और सरकार को भी कुछ भी हासिल नहीं हो रहा था। अब यह वैध होगी और सरकार स्तर पर इसका निर्यात भी होगा।

 

चीन तिब्बत की यारसा गंबू, भारत और नेपाल की कीड़ा जड़ी का इतिहास लगभग 1500 वर्ष पुराना है। लगभग 1500 वर्ष पूर्व जब तिब्बत, चीन में इस कीड़ा जड़ी के फंगस को चरने वाले जानवरों की क्षमता बढ़ते देख इस तरफ मानवों का ध्यान गया। इसके बाद से चीन में इसका प्रयोग किया जाने लगा। लगभग पांच सौ साल पूर्व तिब्बती वैद्य इसका प्रयोग अस्थमा, जोड़ों के दर्द, स्पर्म वृद्धि आदि में किया करते थे। तब भारत और नेपाल में इसकी कोई जानकारी नहीं थी।

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के आयुष विभाग के नेशनल मेडिकल बोर्ड के तहत एलएसएम पीजी काॅलेज के वनस्पति विज्ञान के विभागाध्यक्ष डाॅ. सीएस नेगी के अनुसार यारसा गंबू फंगस पैरासाइटिक (परजीवी) है। यह छह माह कीड़े की शक्ल में रहता है। बर्फ पिघलने के बाद फंगस के रूप में जमीन से बाहर निकलता है।

 

हिमालय में सब अल्पाइन रीजन में कीड़ा जड़ी पाई जाती है। इसमें उच्च हिमालय के अलावा मध्य हिमालयी वह भू-भाग जो 32 सौ से लेकर चार हजार मीटर के अंतर्गत आता है उन स्थानों पर पाई जाती है। पिथौरागढ़ जिले में मध्य हिमालयी छिपलाकेदार कीड़ा जड़ी का सबसे बड़ा भंडार है। जिले में मुनस्यारी के रालम, राजरंभा, नागनीधूरा, नामिक, धारचूला, बंगापानी के छिपलाकेदार, सुमदुंग, दारमा के सौन, नागलिंग, बालिंग, फिलम, व्यास के नज्यांग धुरा आदि क्षेत्रों में पाई जाती है। इसके अलावा बागेश्वर जिले के कपकोट तहसील के उच्च हिमालयी, चमोली, उत्तरकाशी में भी पाई जाती है। पिथौरागढ़ जिले में सर्वाधिक होती है। जानकारों के अनुसार कुल उत्पादन का अस्सी प्रतिशत पिथौरागढ़ जिले में होता है।

 

पिथौरागढ़ के पूर्व डीएफओ रामगोपाल वर्मा के अनुसार कीड़ा जड़ी दोहन की प्रक्रिया वर्ष 1998 से तेज हुई। जब तिब्बत से आए कुछ व्यापारियों ने इसकी पहचान कराई। स्थानीय लोगों के अनुसार 1992 से जब भारत चीन व्यापार नए सिरे से प्रारंभ हुआ तो तिब्बत चीन के व्यापारियों द्वारा भारतीय व्यापारियों को भारतीय क्षेत्र में इस तरह की कीड़ा जड़ी होने की बात बताई और उसे लाने पर मुंहमांगा दाम देेेेने का प्रलोभन दिया। बाद में इस जड़ी की पहचान भी बताई। इसी के साथ तिब्बत की यारसा गंबू कीड़ा नाम से प्रसिद्ध हो गई। क्षेत्र के ग्रामीण इसका दोहन करने लगे। इसके संग्रहण के लिए स्थानीय छोटे ठेकेदार पैदा होने लगे।

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