काल के मुॅह में जिंदगी की तलाश

संतोष ‘सप्ताशु’
देहरादून। काल के मुह में समाये अपने जिगर के टुकडे़ का इंतजार कर रही आखों को उम्मीद है कि उनके जिगर के टुकडे़़ वापस आएंगे, लेकिन मन कह रहा है कि काल मुह में समाने के बाद वापस आना मुश्किल है। फिर भी दिल है कि मानता ही नहीं कि उनके जिगर के टुकडे़ काल के ग्रास बन गये है। क्योंकि शासन और प्रशासन की नौटंकी ने उलझन में रखा है। जल प्रलय आने के एक सप्ताह बाद भी अपनों के पाने की तमन्ना के पीछे का सबसे बड़ा कारण टर्नल ही हैं। क्योंकि टर्नल में हवा और पानी के साथ जीने की तमन्ना सिर्फ वे अन्य लोग नहीं बल्कि अपनों के पास जाने की आस भी है। वैसे तो पहाड़ में जिंदगी पहाड़ जैसी है और इसे हम पहाड़ी होने के नाते जन्म से ही मससूस करने के साथ-साथ जीते भी हैं। जीवन वैसे भी एक दूसरे की आस, उम्मीद और सहारे से ही आगे बढ़ती है। जल प्रलय में लापता लोगों में से कुछ के टर्नल के अंदर फसे होने और उनके जिंदा होने की उम्मीदें बाकी हैं या नहीं यह तो समय ही बताएगा। लेकिन उम्मीद सभी के दिलों में हैं।

चमोली में ऋषिगंगा नदी पर मलबे की वजह से बने झील जैसे फॉरमेशन को रेस्क्यू वर्कर्स के लिए चुनौती बताया गया था। इस झील से पानी कभी भी ओवर फ्लो होने का खतरा माना जा रहा था। उत्तराखंड के DGP अशोक कुमार ने शनिवार शाम को कहा कि इस झील से लगातार पानी डिस्चार्ज हो रहा है। अब यह खतरनाक इलाका नहीं है।

कुछ रिपोर्ट्स में ITBP के प्रवक्ता विवेक पांडे के हवाले से कहा गया है कि ढाई किलोमीटर लंबी मुख्य टनल के साथ वाली टनल में ड्रिलिंग पूरी हो गई है। ये ड्रिलिंग 75 मिमी चौड़ी और करीब 12 मीटर लंबी है। इसी के जरिए मुख्य टनल से मलबा और कीचड़ बाहर आया है। विवेक पांडेय के मुताबिक, अच्छी बात ये है कि इस टनल में अब मलबे और कीचड़ का प्रेशर नहीं आ रहा है। खराब बात ये है कि तकनीकी दिक्कतों की वजह से इसमें कैमरा नहीं जा पाया है। अब कोशिश इस छेद को 250 से 300 मिमी चौड़ा करने की है।

गुरुवार को ये काम धौलीगंगा का पानी बढ़ने के बाद रोका गया था। ITBP, NDRF और आर्मी की टीमें दोबारा मुख्य टनल से मलबा निकालने के काम में जुट गई थीं। शुक्रवार को एक बार फिर मुख्य टनल के साथ वाली टनल में ड्रिलिंग का काम नई मशीनों के साथ शुरू किया गया। उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार के हवाले से रिपोर्ट्स में कहा गया कि दोबारा ड्रिलिंग की कोशिश कामयाब हो गई है। उम्मीद है कि फंसे हुए वर्कर्स तक इसके सहारे पहुंचा जा सकता है।

इसके बाद रैणी गांव के पास 250 मीटर लंबी और 150 मीटर चौड़ी झील मिली है। ये जगह पेंग गांव से करीब 3 किमी ऊपर पहाड़ पर है। गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूगर्भीय विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ. नरेश राणा के नेतृत्व में गई 8 मेंबर्स की टीम ने मुआयने के दौरान इस झील को देखा। टीम के अनुसार ऋषिगंगा के मुहाने पर झील बनी है। ऐसा आपदा के समय मलबे के इकट्‌ठा होने से हुआ है।

झील की वजह से ऋषिगंगा का पानी रुक गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, झील में कम मात्रा में पानी रिस रहा है। ये रिसाव बड़ी तबाही का कारण न बने इसलिए जल्द ही झील को पंचर करना होगा, क्योंकि झील में पानी पूरा भरा हुआ है और ये ओवरफ्लो हो सकता है। 11 फरवरी से ही यहां से हल्का-फुल्का रिसाव हो रहा है। अगर ये ज्यादा मात्रा में हुआ तो राहत और बचाव कार्यों को बड़ा झटका लग सकता है। लगातार पानी के बढ़ते दबाव से झील टूटी तो निचले इलाकों में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो सकते हैं।

चमोली की जिलाधिकारी स्वाति भदौरिया ने कहा कि इलाके से अब तक 36 शव बरामद किए जा चुके हैं। दो लोग जिंदा मिले हैं। अब 168 लोगों की तलाश जारी है। इनमें से 39 वर्कर्स टनल के अंदर फंसे होने की आशंका है। NDRF के कमांडेंट पीके तिवारी ने बताया कि नदी के किनारे वाले इलाके में शवों की तलाश लगातार की जा रही है।

 

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