भटक रहे हैं लोग

देहरादून: उत्तराखंड में यूपी आवास विकास की दो हजार करोड़ से ऊपर की परिसंपत्तियों का मामला अधर में लटक गया है। उत्तराखंड ने इन परिसंपत्तियों के विक्रय के लिए जो विनियम बनाए थे, उन पर यूपी कोई जवाब देने को ही तैयार नहीं है। इस वजह से 17 साल से लोग इन संपत्तियों के लिए भटक रहे हैं।

यूपी से उत्तराखंड अलग होने के बाद यूपी आवास विकास की जमीनों का मामला बड़ा मुद्दा रहा है। 2006 में उत्तराखंड सरकार ने यूपी आवास विकास की संपत्तियों की खरीद-फरोख्त पर रोक लगा दी थी। इस पर यूपी सरकार का कहना था कि यह संपत्ति उनकी है, इसलिए इस पर रोक स्वीकार नहीं की जाएगी। मामला हाईकोर्ट में गया था, जिस पर 2015 में हाईकोर्ट ने भी यूपी पर रोक का आदेश जारी किया था।

पिछले वर्ष यूपी और उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों के बीच इस मामले को लेकर समझौता हुआ था, जिसमें तय हुआ था कि यूपी आवास विकास की जमीनों का आवंटन यूपी-उत्तराखंड मिलकर करेंगे। इन संपत्तियों से आने वाली आय से संपत्ति और कानूनी देनदारी का भुगतान करने के बाद बाकी रकम का दोनों राज्यों के बीच आधा-आधा आवंटन हो जाएगा।

दिसंबर में उत्तराखंड सरकार ने इन जमीनों की खरीद-फरोख्त से रोक तो हटा दी थी, लेकिन कोई विनियम न होने की वजह से प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई थी। शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के निर्देश पर इन जमीनों के आवंटन, दाखिल खारिज आदि के लिए विनियम बनाया गया था। उत्तराखंड आवास एवं नगर विकास प्राधिकरण ने विनियम का ड्राफ्ट यूपी को भेजा था, लेकिन एक साल बाद भी यूपी सरकार इस पर कोई निर्णय नहीं ले रही है।

देहरादून, काशीपुर, हल्द्वानी, जसपुर, हरिद्वार में उत्तर प्रदेश आवास विकास की बेशकीमती संपत्तियां हैं। उक्त परिसंपत्तियों की कीमत लगभग दो हजार करोड़ रुपये आंकी गई है। 9 नवंबर 2000 को राज्य निर्माण के बावजूद लगभग 19 वर्षों में उक्त परिसंपत्तियों के संबंध में दोनों राज्यों के बीच समझौता नहीं हो पाया था। अब समझौते के बाद मामला लंबित है।

उत्तराखंड की स्थापना के बाद इन जमीनों को लेकर हमेशा विवाद रहा। यूपी सरकार ने करीब छह साल पहले अपने विनियम बदल दिए थे। इससे पूर्व के नियम यहां लागू थे। उत्तराखंड का यह विनियम इसलिए बनाया जा गया है, ताकि इन जमीनों के आवंटन की पूरी प्रक्रिया तैयार की जा सके। आवंटन के नियम, दाखिल खारिज के मानक इसमें शामिल होंगे।

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