सावन:भगवान शिव ने कहा है श्रावण मास का हर दिन पर्व

उदय दिनमान डेस्कः भगवान शिव को सावन बहुत प्रिय है। इसलिए इसी महीने में शिव पूजा का बहुत महत्व होता है। श्रावण का हर दिन अपने आप में खास होता है। सोमवार से रविवार तक हर दिन की गई शिव पूजा से अलग-अलग शुभ फल मिलता है। इस महीने हर दूसरे-तीसरे दिन कोई शुभ तिथि, तीज-त्योहार और उत्सव होता है। इसलिए ग्रंथों में सावन के महीने को पर्व भी कहा गया है।

भगवान शिव ने ब्रह्माजी के पुत्र सनत्कुमार को बताया कि सावन मुझे बहुत ही प्रिय है। शिवजी कहते हैं कि सावन महीने का हर दिन एक पर्व है। इस महीने की हर तिथि पर व्रत किया जाता है। इस महीने के एक दिन भी पूरे विधि-विधान और भक्ति से व्रत कर लिया जाए तो वो भी मुझे बहुत प्रिय लगता है। सावन महीने के महत्व को पूरी तरह बताने के लिए ही ब्रह्माजी के चार मुख, इंद्र की हजार आंखे और शेषनाग की दो हजार जीभ बनी है।

द्वादशस्वपि मासेषु श्रावणो मेऽतिवल्लभ:। श्रवणार्हं यन्माहात्म्यं तेनासौ श्रवणो मत: ।। श्रवणर्क्षं पौर्णमास्यां ततोऽपि श्रावण: स्मृत:। यस्य श्रवणमात्रेण सिद्धिद: श्रावणोऽप्यत: ।।
भगवान शिव कहते हैं कि, सभी महीनों में मुझे श्रावण अत्यंत प्रिय है। इसकी महिमा सुनने योग्य है। इसलिए इसे श्रावण कहा जाता है। इस महीने में पूर्णिमा पर श्रवण नक्षत्र होता है इस कारण भी इसे श्रावण कहा जाता है। इस महीने की महिमा को सुनने से ही सिद्धि मिलती है। इसलिए भी इसे श्रावण कहा गया है।

देवी पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में बिना कुछ खाए और बिना पानी पिए कठिन व्रत और तपस्या की थी। फिर शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया। इसका एक कारण ये भी है कि भगवान शिव श्रावण महीने में पृथ्वी पर अपने ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि हर साल सावन में भगवान शिव अपने ससुराल आते हैं।

माना जाता है की सावन के महीने में ही समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला उसे भगवान शंकर ने गले में ही रोक लिया और सृष्टि की रक्षा की। लेकिन विष पीने से भगवान का कंठ नीला पड़ हो गया। इसलिए उनका नाम नीलकंठ महादेव पड़ा। जहर का असर कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल चढ़ाना शुरू किया। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्व है।

कुछ विद्वानों ने मार्कंडेय ऋषि की तपस्या को भी श्रावण महीने से जोड़ा है। माना जाता है कि मार्कंडेय ऋषि की उम्र कम थी। लेकिन उनके पिता मरकंडू ऋषि ने उन्हें अकालमृत्यु दूर कर लंबी उम्र पाने के लिए शिवजी की विशेष पूजा करने को कहा। तब मार्कंडेय ऋषि ने श्रावण महीने में ही कठिन तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न किया। जिससे मृत्यु यानी काल के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे। इसलिए शिवजी को महाकाल भी कहा जाता है।

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