आज भी धड़कता है श्रीकृष्ण का हृदय !

ओडिशा :जगन्नाथ रथ यात्रा 2023 का प्रारंभ 20 जून से होने वाला है. ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ का वि​श्व प्रसिद्ध मंदिर है, जहां पर भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ सिंहासन पर विराजमान हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर में जहां पर भगवान जगन्नाथ हैं, वहां भगवान श्रीकृष्ण का हृदय आज भी धड़कता है. हर 15 से 20 साल में मंदिर में जगन्नाथ जी,

बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां बदल दी जाती हैं और उसमें नया कलेवर डाला जाता है. केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि जगन्नाथ पुरी मंदिर के रहस्य को समझने के लिए भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु से जुड़ी घटना और उसके बाद इस मंदिर के निर्माण के कारण को समझना होगा.

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण मानव के रूप में जन्मे थे, इसलिए वे भी कालचक्र से बंधे थे. उनके भी शरीर का अंत होना था. महाभारत युद्ध के काफी समय बाद वे वन में एक पेड़ के नीचे लेटे हुए थे, तभी एक बहेलिया को उनके पैर मछली जैसे प्रतीत हुए और उसने बाण चला दिया. उससे भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु हो गई.

बताया जाता है कि पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण के शरीर का अंतिम संस्कार किया. अग्नि ने उनके पूरे शरीर को जला दिया, लेकिन उनका पवित्र हृदय नहीं जल पाया. वह धड़क रहा था. तब पांडवों ने उनके हृदय को समुद्र जल में प्रवाहित कर दिया.

वह पवित्र हृदय जल में बहते हुए पुरी के तट पर पहुंच गया, जो एक लट्ठ का स्वरूप ले लिया था. वहां के राजा इंद्रद्युम्न को रात में स्वप्न आया, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने उनको दर्शन दिया और लट्ठ स्वरूप हृदय के बारे में बताया. अगली सुबह राजा पुरी के समुद्र तट पर पहुंचे और उसे अपने साथ लेकर आए.

देव शिल्पी विश्वकर्मा ने उस लट्ठ की मदद से भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियां बनाईं. उनको ही श्री जगन्नाथ मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित किया गया. बताया जाता है कि जहां पर ये मूर्तियां स्थित हैं, वहां पर भगवान श्रीकृष्ण का हृदय आज भी धड़कता है.

जगन्नाथ मंदिर के मूर्तियों की यह विशेषता है कि हर 15 या 20 साल पर उनको बदल दिया जाता है. नीम की लकड़ी से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां बनाकर नव कलेवर रस्म होती है. इसमें मंदिर के पुजारी आंखों पर पट्टी बांधकर नव कलेवर रस्म निभाते हैं, जिसमें पुरानी मूर्तियों को हटाकर नई मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा होती है.

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